1943 में विश्व-संग्राम समाप्त होगा?

January 1943

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

क्या 1943 में विश्व में शान्ति स्थापित होगी? इसका जवाब ‘एस्ट्रालाजिकल मैगजीन’ बंगलौर के सम्पादक ने ‘हाँ’ में दिया है। ग्रहों की स्थिति से मालूम होता है, कि मंगल का जोर होने से नया साल संसार के लिये पीड़ादायक है। भीषण संग्राम होंगे, अकाल का राज्य रहेगा, भूकम्प, आँधी और तूफान का जोर रहेगा और भीषण नरसंहार होगा।

‘युद्ध’ का भविष्य क्या है? रूस को शायद दो मोर्चों पर लड़ना पड़े, मगर अन्त में उसकी विजय होगी। जर्मनी, इटली और यूरोप के अन्य देशों में गृह युद्ध होंगे व भीषणा दुर्भिक्ष पड़ेगा। जापान में नारकीय घटनाएं घटेंगी और उनका जापान के भविष्य पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। जापान की महत्वकाँक्षाओं पर तुषारापात रहेगा। मित्र राष्ट्र खोये अड्डों और देशों को पुनः विजय करके जय लाभ करेंगे। इस साल अनेक निर्णयात्मक युद्ध होंगे और इनमें मित्र राष्ट्रों का पलड़ा भारी रहेगा और विजयी होंगे और युद्ध से पीड़ित संसार में अन्त में शान्ति स्थापित होगी।

भारत का अगला साल कैसा गुजरेगा? अराजकता फैलेगी। राजनीतिक गति अवरोध को दूर करने के प्रयत्नों के सफल होने की संभावना कम है। राष्ट्रीय नेताओं के जेल से छूटने की आशा है। यह भी संभव है कि इस साल भारत को वास्तविक सत्ता प्राप्त हो जाये।

1943 का भविष्य

इस समय युद्ध, अकाल, बाढ़ और बीमारी अपना शिकार ढूँढ़ने में एक दूसरे से प्रतियोगिता कर रहे हैं। क्या समस्त संसार में 1943 के अन्दर शान्ति स्थापित होगी? इसका जवाब ‘एस्ट्रालाजिकल मेगजीन’ ने इस प्रकार दिया हैः-

ग्रहो की स्थिति

राजा चन्द्रमा

मन्त्री मंगल

शस्याधिपति शुक्र

धन्याधिपति बृहस्पति

मेघाधिपति मंगल

रसाधिपति सूर्य

निरसाधिपति शुक्र

सेनाधिपति मंगल

अर्धाधिपति मंगल

पश्त्राधिपति श्रीकृष्ण

इससे स्पष्ट है कि मंगल चार पदों का अध्यक्ष हैः- मन्त्री, मेघाधिपति, सेनाधिपति और अर्धाधिपति। सूर्य निम्न कक्षा में चला गया है। फलतः राजा और शासक नाममात्र के होंगे और वास्तविक शक्ति सेना के हाथ में होगी। चन्द्र राज्य परिवार का होते हुए भी नीच गृह के साथ पड़ा है। गृह राज्य के महत्वपूर्ण विभाग मंगल के पास है।

मंगल का प्रभाव

नया साल मकर लगन के साथ आरम्भ होता है। इसका फल संस्कृत ग्रन्थों के अनुसार यह होगा कि उत्तरीय देशों में महान विनाश होगा। राजा और राज्य परिवारों को कष्ट होगा पश्चिमी देशों में फसल अच्छी होगी। वर्षा ठीक न होगी। मंगल ही इस साल गृह राज्य का प्रधान मन्त्री और प्रधान सेनापति है। इस कारण इसका क्या नतीजा होगा यह सहज ही में अन्दाजा किया जा सकता है। मंगल खूनी लड़ाइयां, भूकम्प, ज्वालामुखी पहाड़ों का फटना, सामुद्रिक तूफान राजाओं में गलतफहमी का कारण होगा। अतः इस साल भयंकर रक्तपात होगा। सब गृह राहू और केतू के बीच में इस साल के शुरू में आये हैं और सूर्य का बुध के साथ होना अनिष्टकर है। नीरसाधिपति केन्द्र में है। अतः रुई, रेशम और धातुओं के व्यापार में कुछ सुधार होगा। गुड़, चीनी, नमक, मक्खन, बिनौला और महँगे होंगे और कही-कही अप्राप्य हो जायेंगे। अन्नों का भाव बहुत अस्थिर रहेगा और विनाशक ऊँचाई पर पहुँच जायेगा। वर्षा का मालिक इस साल मंगल है, इसलिये हवा ज्यादा चलेगी मगर वर्षा अपर्याप्त होगी।

मंगल का प्रभाव

मंगल के सेनापति होने से संसार भर में बुराई का जोर होगा। शस्य नष्ट हो जायेगा। राजाओं के बीच विकराल युद्ध होंगे। शुक्र चल अवस्था में है। अतः बुराई तेजी से फैलेगी। स्त्रियों की शिकायतें ज्यादा सुनाई देंगी। धर्म प्रचारकों की आवाज ज्यादा कमजोर पड़ जायेगी।

मृत्यु

बृहस्पति का शनि से तीसरे लगन में होना भी खराब है। इसका फल यह होगा कि लंका और विन्ध्याचल के बीच के देशों में लोगों की बहुत मृत्युएं होगी। भूमध्य रेखा और 20 दशांश के बीच अर्थात् दक्षिण भारत, लंका, वर्मा, हिन्द चीन, स्याम, मलाया, मिश्र, और फ्रेंच पश्चिमी अफ्रीका, वेस्टइण्डीज, पनामा नहर में बहुत मौतें होगी। अक्टूबर 1943 में दुर्भिक्ष, अन्न का अभाव और आतंक होगा।

मित्र राष्ट्र विजयी होंगे।

1940 में हमने कहा था कि मित्र राष्ट्र अन्त में बहुत मुसीबतें उठाकर विजयी होंगे। 1943 के शुरू में बृहस्पति चक्रगति होकर मई 1943 में कर्क राशि में प्रविष्ट होगा। इसलिये जब तक वृहस्पति सीधी चाल में नहीं आता तब तक मित्रराष्ट्रों को कुछ पराजयों का मुँह देखना पड़ेगा, लेकिन बृहस्पति के ठीक होते ही हालत सुधर जायेगी। 1943 ई अग्निकाण्डों, भूकंपों, विस्फोटों, सम्पत्ति और जीवन के विनाश के लिये प्रसिद्ध होगा। मंगल के सेनापति होने से लड़ाई का जोर रहेगा। फलतः आदमी बड़ी तादाद में मरेंगे। दुर्भिक्ष और बीमारी से भी लाखों आदमी मरेंगे। जनता उत्तेजित रहेगी और मजदूरों के झगड़े दुनिया भर में जोरों पर होंगे। अराजकता का सर्वत्र राज्य रहेगा और शान्त और गंभीर विचारों और सलाहों का निरादर होगा जंगलों, पुराने किले बन्दियों और रणक्षेत्रों में प्राणी की महान बलि दी जायेंगी दुर्भिक्ष से नागरिक लोग ऊब उठेंगे और भारी मुसीबतें उठायेंगे। बड़ी-बड़ी व्यापारिक फर्में दिवालिया हो जायेंगी और उनका नाम भी मिट जायेगा।

भारत में

भारत में अराजकता फैलेगी। राजनीतिक अवस्था अस्थिर रहेगी। प्रभावशाली लोगों द्वारा राजनीतिक गति अवरोध दूर करने के लिये प्रयास किए जावेंगे। मगर उनकी सफलता की आशा बहुत कम है। बृहस्पति के कर्म में प्रविष्ट होने के साथ भारत की हालत कुछ सुधर जायेगी और शायद राष्ट्रीय नेता जेलों से छूट जावें। गम्भीर, भावुक स्थितियों में से कुछ वास्तविक सत्ता मिल जायेगी। पाकिस्तान की आवाज और अधिक बुलन्द होगी, लेकिन कमी भी अस्तित्व में आयेगी।

पनडुब्बियों का उपद्रव

इंग्लैण्ड में लोग अधिक आशावान होंगे और अंग्रेज अपनी वीरता और धीरता से शत्रुओं पर विजयी होंगे। अटलाँटिक में पनडुब्बियों का उपद्रव बढ़ेगा। यूरोप भूखण्ड में बीमारी, अकाल और सख्त सर्दी का जोर रहेगा। जर्मनी, इटली और नाजी अधिकृत देशों में व्यापक गृह-युद्धों के होने की सम्भावना है। जर्मनी के लिये यह साल निश्चित रूप से खराब है। जर्मनी सेना को भारी क्षति पहुँचेगी। हिटलर का भाग्य सूर्य अस्त हो जायेगा।

संयुक्त राज्य अमेरिका

संयुक्त राज्य अमेरिका में व्यापक छल-कपट और षड़यन्त्र आदि का राज्य रहेगा। खोये अड्डों और देशों को पुनः लेकर मित्र राष्ट्र विजय लाभ करेंगे।

रूस का भविष्य

रूस के लिये यह साल अच्छा है। केवल दूसरी तिमाही में कुछ खराब समय उनका आ गया। रूसी फौजें बहुत बहादुरी दिखावेंगी। सम्भव है कि रूस को दो-दो मोर्चों पर लड़ना पड़े। मगर वह हमलावरों को पराजित कर देगा।

चीन और भारत

चीन जापानी आक्रमण को रोकेगा। चीन भारतीय मामलों में अधिक दिलचस्पी लेगा। यह भी सम्भव है कि इन दोनों देशों में और घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित होकर किसी किस्म की मैत्री हो जाय। संयुक्त राज्य से मदद अधिक मिलेगी।

जापान

जापान पर जोरों की बम वर्षा होगी। जापान की महत्वाकाँक्षाओं पर तुषारापात होगा। साइबेरिया में जापान की लड़ाई सम्भव है। जापान में नाटकीय घटनायें घटेंगी और इनके भविष्य के अगले बहुत सालों पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा।

निर्णयात्मक

इससे ख्याल है कि लड़ाई इस साल निर्णयात्मक रुख पकड़ेगी और नतीजा मित्र राष्ट्रों के पक्ष में होगा। एक से अधिक निर्णयात्मक लड़ाइयां होंगी और मित्रों की प्रभुता स्थापित होगी तथा वृहस्पति के कर्म छोड़ते ही युद्ध ग्रस्त संसार में शान्ति के आसार दिखाई देंगे।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118