महाकवि होमर का कथन है कि “विनाश की पीठ पर नव निर्माण की आधारशिला रखी जाती है” एक वस्तु के नष्ट होने से ही उसके परमाणु दूसरी वस्तु बनाने में समर्थ होते हैं। नई तलवार बनाने के लिए किसी पुराने लोहे को अग्नि में तपाने और कूटने की क्रिया किये बिना काम न चलेगा। अंकुर उत्पन्न होने से पूर्व बीज का गलना आवश्यक है। तत्वदर्शी आत्माएं जानती हैं कि भविष्य में सुन्दर युग का निर्माण होने वाला है इसके लिए वर्तमान संसार को आग में गला कर तपाया जा रहा है हथौड़े की करारी चोटों से पीट पीट कर उसका नया स्वरूप बन रहा है। वर्तमान हाहाकारी परिस्थितियाँ बहुत अप्रिय एवं दुखद प्रतीत होती हैं तो भी इनके अन्तराल में एक सुखदायक भविष्य छिपा हुआ हमें दृष्टिगोचर होता है।
निस्संदेह संसार का यह ढांचा बिल्कुल बदल जाने वाला है जिसमें असत्य, लूट, छल, कपट, पाखंड, शोषण, घमंड, अपहरण, अत्याचार की प्रधानता है। इसके स्थान पर वह संसार बनेगा जिसमें कर्तव्य पालन, सेवा सद्भाव और भ्रातृत्व की प्रचुरता होगी। इस परिवर्तन कार्य का श्रेय ईश्वरीय अवतार को ही प्राप्त होगा। यहाँ भ्रम में पड़ने की जरूरत नहीं है। ईश्वर अवतार का अर्थ है “व्यापक सत्ता का एक ही स्थान पर प्रकट होना” हम नहीं समझते वरन् यह समझते हैं कि न्याय तुला का संतुलन ठीक करने के लिए, धर्म की ग्लानि का निवारण करने के लिए, दुष्कृतों का विनाश और साधुओं का परित्राण करने के लिए, एक ऐसा दिव्य आध्यात्मिक प्रचंड प्रवाह अदृश्य लोक में उत्पन्न होता है जिसमें संसार की सारी परिस्थितियों को बदल देने का बल होता है। उस ईश्वरीय प्रवाह को जागृत आत्माएं अनुभव करती हैं और तदनुसार कार्य करने के लिए उद्यत हो जाती हैं। रावण वध करने के लिए जो दिव्य आध्यात्मिक प्रवार लोक में उत्पन्न हुआ था उसमें असंख्य लोगों ने भाग लिया यद्यपि राम का कार्य सबसे ऊंचा गया और उन्हें ही अवतारी महापुरुष की उपाधि मिली तो भी वास्तव में वह कार्य अकेले राम ने ही नहीं कर लिया था, वरन् अनेक स्वार्थ त्यागियों का उसमें सहयोग था। कंस की दुर्नीति नष्ट करने का श्रेय कृष्ण को मिला तो भी अवतारी शक्ति की प्रेरणा से हजारों लोगों ने उस न्याय संतुलन में हाथ बटाया था। अमुक अवतारी महापुरुष ही युग परिवर्तन कर्ता था, या उसी ने धर्म स्थापना की ऐसा कहना उपयुक्त न होगा क्योंकि एक व्यक्ति फिर चाहे वह कितना ही महान क्यों न हो अन्य सहयोगियों की सहायता के बिना अपना काम पूरा नहीं कर सकता। इस बात को भली प्रकार स्मरण रखना चाहिए कि अवतार व्यक्तियों के रूप में नहीं वरन् एक प्रवाह, जोश, विचार परिवर्तन, उत्साह, उमंग के रूप में होता है। वह जोश ईश्वर निर्मित होने के कारण दिव्य अलौकिक एवं विशेष प्रभावशाली होता है, उससे असंख्य व्यक्ति प्रभावित होते हैं और अवतार की प्रेरणानुसार अधर्म को नष्ट करके धर्म स्थापना के लिए विशेष रूप से प्रयत्न करते हैं। अन्त में वह उद्देश्य पूरा होकर ही रहता है।
चारों ओर फैले हुए पाप पाखंड को नष्ट करने के लिए वर्तमान समय में जो ईश्वरीय अवतारी प्रेरणा अदृश्य लोक में उत्पन्न हुई है, उसका प्रभाव जागृत आत्माओं पर विशेष रूप से पड़ रहा है। जिसका अन्तःकरण जितना ही पवित्र है, जिसकी आत्मा जितनी ही निर्मल है वह उतना ही स्पष्ट रूप से ईश्वर की आकाशवाणी को, समय की पुकार को, सुन रहा है और अवतार के महान कार्य में सहायता देने के लिए तत्पर हो रहा है। समय की समस्याओं को वह ध्यान पूर्वक अनुभव कर रहा है और सुधार कार्य में क्रियात्मक सहयोग प्रदान कर रहा है। जिन लोगों की आत्माएं कलुषित है, पाप, अनीति और घोर अन्धकार ने जिनके अन्तःकरण को ढ़क रखा है, वे उल्लू और चमगादड़ की तरह प्रकाश देखकर चिढ़ रहे हैं। वे कुछ काल से फैली हुई अनीति को सनातन बताकर पकड़े रहना चाहते है। सड़े गले कुविचारों का समर्थन करने के लिए पोथी पत्र ढूंढ़ते हैं। किसी पुराने व्यक्ति की लिखी हुई कुछ पंक्तियाँ यदि उन सड़े गले विचारों के समर्थन में मिल जाती हैं तो ऐसे प्रसन्न होते हैं मानो यह पंक्तियाँ साक्षात् ईश्वर ने ही लिखी हों। परिस्थितियाँ रोज बदलती हैं और उनका रोज नया हल ढूँढ़ना पड़ता है। इस सच्चाई को वे अज्ञान ग्रस्त मनुष्य समझ न सकेंगे और ‘जो कुछ पुराना सब अच्छा जो नया सो सब बुरे’ कहकर अपने अज्ञान और स्वार्थ का समर्थन करेंगे।
दीपक बुझने को होता है तो एक बार वह बड़े जोर से जलता है, प्राणी जब मरता हे तो एक बार बड़े जोर से हिचकी लेता है। चींटी को मरते समय पंख उगते हैं, पाप भी अपने अन्तिम समय में बड़ा विकराल रूप धारण कर लेता। युग परिवर्तन की संध्या में पाप का इतना प्रचंड, उग्र और भयंकर रूप दिखाई देगा जैसा कि सदियों से देखा क्या सुना भी न गया था। दुष्टता हद दर्जे को पहुँच जायगी, एक बार ऐसा प्रतीत होगा कि अधर्म की अखंड विजयदुन्द भी बज गई और धर्म बेचारा दुम दबा कर भाग गया, किन्तु ऐसे समय भयभीत होने का कोई कारण नहीं, यह अधर्म की भयंकरता अस्थायी होगी, उसकी मृत्यु की पूर्व सूचना मात्र होगी। अवतार प्रेरित धर्म भावना पूरे वेग के साथ उठेगी और अनीति को नष्ट करने के लिए विकट संग्राम करेगी। रावण के सिर कट जाने पर भी फिर नये उग आते थे फिर भी अन्ततः रावण मर ही गया। संवत् दो हजार के आसपास अधर्म नष्ट हो हो कर फिर जीवित होता हुआ प्रतीत होगा उसकी मृत्यु में बहुत देर लगेगी, पर अन्त में वह मर ही जायेगा।
तीस वर्ष से कम आयु के मनुष्य अवतार की वाणी से अधिक प्रभावित होंगे वे नवयुग का निर्माण करने में अवतार का उद्देश्य पूरा करने में विशेष सहायता देंगे। अपने प्राणों की भी परवा न करके अनीति के विरुद्ध वे धर्म युद्ध करेंगे और नाना प्रकार के कष्टों को सहन करते हुए बड़े से बड़ा त्याग करने को तत्पर हो जावेंगे। तीस वर्ष से अधिक आयु के लोगों में अधिकाँश की आत्मा भारी होगी और वे सत्य के पथ पर कदम बढ़ाते हुए झिझकेंगे। उन्हें पुरानी वस्तुओं से ऐसा मोह होगा कि सड़े गले कूड़े कचरे को हटाना भी उन्हें पसंद न पड़ेगा। यह लोग चिरकाल तक नारकीय बदबू में सड़ेंगे, दूसरों को भी उसी पाप पंक में खींचने का प्रयत्न करेंगे, अवतार के उद्देश्य में, नवयुग के निर्माण में, हर प्रकार से यह लोग विघ्न बाधाएं उपस्थित करेंगे। इस पर भी इनके सारे प्रयत्न विफल जायेंगे, इनकी आवाज को कोई न सुनेगा, चारों ओर से इन मार्ग कंटकों पर धिक्कार बरसेंगी, किन्तु अवतार के सहायक उत्साही पुरुष पुँगब त्याग और तपस्या से अपने जीवन को उज्ज्वल बनाते हुए सत्य के विजय पथ पर निर्भयता पूर्वक आगे बढ़ते जावेंगे।
अधर्म से धर्म का, असत्य से सत्य का, अनीति से नीति का, अन्धकार से प्रकाश का, दुर्गन्ध से मलयानिल का, सड़े हुए कुविचारों से नवयुग निर्माण की दिव्य भावना का घोर युद्ध होगा। इस धर्म युद्ध में ईश्वरीय सहायता न्यायी पक्ष को मिलेगी। पाँडवों की थोड़ी सेना कौरवों के मुकाबले में, राम का छोटा सा वानर दल विशाल असुर सेना के मुकाबले में, विजयी हुआ था, अधर्म अनीति की विश्व व्यापी महाशक्ति के मुकाबले में सतयुग निर्माताओं का दल छोटा सा मालूम पड़ेगा, परन्तु भली प्रकार नोट कर लीजिए, हम भविष्यवाणी करते हैं कि निकट भविष्य में सारे पाप प्रपंच ईश्वरीय कोप की अग्नि में जल-जल कर भस्म हो जायेंगे और संसार में सर्वत्र सद्भावों की विजय पताका फहरा वेगी।