प्रलय की समीपता

January 1943

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कुछ दिन पूर्व ‘तेज’ अखबार में संसार के प्रसिद्ध ज्योतिषियों की एक सम्मिलित भविष्यवाणी छपी थी। वह इस प्रकार है -

“नवम्बर सन् 1941 ई. में एक स्याह सितारा निकलेगा, जो इस समय केवल दूर दर्शक यन्त्र से ही दिखाई देता है। ख्याल है कि मई सन् 1943 ई. को के पहले सप्ताह के बाद यह सितारा साफ तौर पर दिखाई देने लगेगा। अँधेरी रात में जब आकाश निर्मल होगा, तो उस समय तेज दिखाई देने वाले लोगों को ‘एलडीवेरिन’ अर्थात् लाल रोशनी वाले तारे की दाहिनी तरफ एक छोटा सा तारा चमकता हुआ दिखाई पड़ेगा। सन् 1944 के बहार के मौसम में यह तारा भली भाँति दिखाई देने लगेगा ओर धीरे-धीरे इसमें प्रकाश बढ़ना आरम्भ हो जायेगा। यहाँ तक कि जनवरी सन् 1953 ई. में जब हम आकाश की तरफ देखेंगे, तो हमको एक बहुत बड़ा रोशन सितारा मालूम होने लगेगा।

सन् 1935 ई. में इसका पूर्व की ओर आना आरम्भ होगा और धीरे-धीरे मेष राशि में प्रवेश करेगा और बृहस्पति के पास जा पहुँचेगा। इस समय इस सितारे में इतना प्रकाश बढ़ जायेगा कि बृहस्पति का प्रकाश भी इसके आगे मन्द हो जायेगा।

जनवरी सन् 1953 ई. से इस सितारे का आकार बड़े वेग से बढ़ने लगेगा। यहाँ तक कि बढ़ते-बढ़ते जुलाई सन् 1953 ई. कि यह चौदहवीं रात के चाँद के बराबर हो जायेगा। इसके बाद भी इसका आकार बढ़ता रहेगा और 1 अगस्त सन् 1953 को वह और भी बड़ा दिखाई देने लगेगा। यह सितारा बढ़ते-बढ़ते इतना बढ़ जाय तो उसके विनाशकारी लक्षण आरम्भ होंगे, जो इतने आश्चर्य जनक और भयानक होंगे कि जिनसे अब तक न तो संसार का काम, सुख और न आगे इससे अधिक विनाश की सम्भावना नहीं है। जुलाई सन् 1953 ई. के मध्य से समुद्र की लहरों की उथल-पुथल आरम्भ होगी और इस तूफान से न्यूयार्क स्पेन, फ्रांसिस्को और सब ही समुद्र के किनारे के नगरों में पानी की बाढ़ आयेगी और फिर भी समुद्र की लहरें बराबर बढ़ती रहेंगी। 1 अगस्त 1953 ई को यह लहरें समुद्र से 300 फुट ऊँची ही जायेगी और पानी की इस भयावनी दीवार के आक्रमणों से पृथ्वी का विनाश होने लगेगा, यहाँ तक कि वह सभी नगर जो समुद्र के पास स्थित हैं तबाह हो जायेंगे, कोई इमारत बाकी न बचेगी और न वहाँ के निवासी ही जीते जागते रह सकेंगे। जो लोग वहाँ से भागकर ऊँचे स्थानों पर जाना चाहेंगे, उनका भी यह पानी की बाढ़ पीछा करेगी क्योंकि पानी बराबर बढ़ता चला जावेगा।

अब यह सितारा आकाश में पश्चिम की ओर चलता हुआ दिखाई देगा और इसका आकार भी दिन पर दिन बड़ा होकर चाँद के आकार से दस गुना हो जायेगा, फिर यह सितारा पृथ्वी के पास आ जायेगा और फिर यह होगा कि नित्य दो बार समुद्रों से बहुत बड़ी लहरें उठा करेंगी, जो एक महाद्वीप को डुबो देंगी। यहाँ तक कि पहाड़ों की चोटियों के सिवाय सारी पृथ्वी पानी में डूब जायेगी वह लोग बड़े भाग्यशाली होंगे, जो कि पहाड़ की चोटी या किसी दूसरे स्थान पर जा पहुंचेंगे और जब 11 अगस्त को वह नीचे की और देखेंगे तो जहाँ तक उनकी दृष्टि जायेगी, पानी ही पानी लहराता हुआ दिखाई पड़ेगा और जब आकाश की ओर देखेंगे तो भयानक सितारा चमक रहा होगा। इस सितारे के उदय होने के बाद सूर्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ेगा और सन् 1953 ई. में जब हम इस सूर्य की तरफ देखेंगे तो महाद्वीप का आकार घट जाने के कारण पृथ्वी से बहुत भोग पत्थर मालूम पड़ेगा, यहाँ तक कि 1 जनवरी 1954 ई को सूर्य का आकार आजकल के आकार से आधा दिखाई देने लगेगा। अब धीरे-धीरे इस प्रलयकारी बाढ़ का वेग घट जायेगा और फिर यह दशा होगी कि पानी कही इन अवस्था में न दिखाई दे, जिधर भी दृष्टि जायेगी बर्फ के तूमे ही देख पड़ेंगे।


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