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यदि मन के ऊपर अंकुश रखने में आपको कठिनाई मालूम पड़ती हो तो उसे लोक लाज के मजबूत रस्से से बाँध दीजिए। बहुत बार ऐसा होता है, कि मन में कोई बुरी प्रवृत्ति उठ रही है, किन्तु उसे चरितार्थ करना लोक लाज के विपरीत पड़ता है, तो अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा के लिये उस काम को करने से रुकना पड़ता है। लोक लाज की रक्षा के लिए बड़ी-बड़ी कुर्बानियाँ की जाती हैं। कोई हमें गरीब न समझे इस भय से लोग भीतर ही भीतर अनेक कष्ट सहकर भी बाहरी लिफाफा ठीक बनाये रहते हैं। विवाह शादियों में सामर्थ्य से बाहर खर्च कर डालते हैं। इसका कारण यही है, कि हर मनुष्य चाहता है, कि मेरे बारे में लोगों के मन में जो अच्छी प्रतिष्ठा युक्त भावनाएं हैं, वे वैसी ही बनी रहें, नष्ट न होने पावें। आप इस लोक लाज से अपने सदाचार को सम्बंधित कर लीजिये जिससे कि जब गिरने का मौका आवे, तभी संभल जाय, पतन की ओर जिस समय प्रवृत्ति हो उसी समय “कोई क्या कहेगा” ‘बड़ी बदनामी होगी’ आबरू धूलि में मिल जायेगी’ की प्रश्नावली अन्तःकरण में से उठ खड़ी हो और पतन मार्ग पर बढ़ते हुए पैर को जंजीर से पकड़ कर बाँध दे।