साधना का उद्देश्य

August 1943

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(ले.- श्री योगी अरविन्द घोष)

ईश्वर के संसर्ग से अपनी आत्मा को पवित्र बनाकर और पाप से छुटकारा पाकर आध्यात्मिक विद्युत शक्ति से परिचालित होकर इस संसार में प्रकाश फैलाने के लिए, उस ज्योति की किरणों को संसार में बाँटने के लिये हमें आधार यंत्र (डायनमो) का काम करना होगा। जिस प्रकार एक ही सुरंग पूर्ण शक्ति युक्त होकर शब्द के साथ पर्वत माला को विदीर्ण कर देती है, उसी प्रकार ईश्वर की ज्योति से सम्पन्न होकर हमें संसार की सभी अशुद्धताओं और कुसंस्कारों को दूर करना होगा। इस तरह एक-एक मनुष्य साधना में सिद्ध होकर सैंकड़ों और हजारों प्राणियों के बीच, ज्ञान व शक्ति की ज्योति फैलाकर उनमें से अविद्या को दूर करेगा और उनका उद्धार करेगा। एक साधक की शक्ति के प्रकाश से सहस्रों जन धर्म में दीक्षित होंगे और सच्चिदानन्द के अगाध सागर में निमग्न होंगे।

मानव समाज के उद्धार का केवल एक ही मार्ग और एक ही उपाय है, जिसकी वह आज तक उपेक्षा करता आया है उस मार्ग का नाम है- शक्ति साधना और आत्मोपलब्धि। इसलिये हमें पुनः उसी मार्ग का अनुसरण करना होगा, उसी पथ पर लौटना होगा, जहाँ से हमें ईसा की पवित्रता व पूर्णता, मुहम्मद का आत्मविश्वास और आत्मसमर्पण श्री चैतन्य देव का प्रेम व आनन्द, परमहंस राम कृष्ण का संसार के सभी धर्मों का समन्वय तथा एकीकरण व सूक्ष्म मानवता की प्राप्ति होगी।

इन सब भावों को एकत्रित करके एक प्रबल स्रोत बहाना होगा। पतित पावनी, सकल मल हारिणी, पवित्र ललिता, भागीरथी गंगा की भाँति नाशवान इस संसार तथा अर्द्धमृत इस मानव जाति के बीच में इसे प्रवाहित कर देना होगा। निश्चय मानो कि इस पृथ्वी पर एक बार पुनः स्वराज्य की स्थापना होगी। यही साधना का उद्देश्य है।


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