(लेखक-स्वर्गीय स्वामी सर्वदानन्द जी महाराज)
ज्ञान को आगे रखकर कर्म (पुरुषार्थ) करना चाहिये पुरुषार्थ से सारे कार्य सिद्ध होते हैं आलस में जीवन बिताना उसे नीरस फीका बनाना है आलस सब दुःखों का मूल है यह दरिद्रता लाता है, और ऐश्वर्य ले जाता है ईश्वर प्राप्ति के लिए जो पुरुषार्थ होता है उसे परम पुरुषार्थ कहते हैं लौकिक और परलौकिक सुख दोनों इसी में हैं अतएव मनुष्य को पुरुषार्थी-उद्योगी यत्नशील होना चाहिये।
अंधकार को दूर करने का उपाय प्रकाश है- दीपक जलाओ, मल विक्षेप आवरण यह तीनों दोष अन्धकार हैं। अशुभ कर्मों के करने से मनुष्य के अन्तःकरण में मल बढ़ता है। कृत अशुभ कर्मों के लिए पछतावा और आगे को उनके विपरीत शुभ कर्म करने से मल दूर हो जाता है। मल के दूर होते ही उपासना अपना बल बढ़ाना प्रारंभ करती है। इच्छा की बहुतायत से विक्षेप बढ़ता है। मन का राजा होता है। इस कारण मन में चंचलता बढ़ती है- इसलिए मनुष्य को कम से कम 1 घंटा चित्तवृत्ति निरोध का अनुष्ठान अभ्यास द्वारा मन को एकाग्र करने का यत्न करना चाहिए। इसी का नाम उपासना है यही विक्षेप दूर करने का एक मात्र उपाय है। अब मल और विक्षेप के कम होने से प्रभु भक्ति की इच्छा उत्तरोत्तर बढ़ेगी। ऐसी अवस्था आने पर जिज्ञासु उत्तम अधिकारी होकर स्वयं अपने पुरुषार्थ से अज्ञान आवरण को दूर करने में करने लग जाता है, और कृतार्थ हो जाता है- ऐसे उत्तमाश्य महाशयों का जीवन प्राणी मात्र के हितार्थ होता है। जब सबके सुख में अपना सुख प्रतीत होने लगा और सारी सत्ता एक ही मान ली तो फिर वहाँ अनिष्ट चिन्ता नहीं रहती और निर्वाण पद प्राप्त हो जाता है।