(ले.- स्वामी रामतीर्थ)
मूर्ख लोग जो अपनी असली आत्मा को नहीं जानते, जो स्वार्थी और अहंकारी हैं, अपने महलों और राज भवनों को भी कारागारों, कब्रों और नरकों से बदतर बना लेते हैं, अपनी तुच्छ चिन्ताओं, नीच अधम इच्छाओं और काल्पनिक भय तथा शंकाओं से वे अपनी जंजीरें आप गढ़ लेते हैं।
वेदाँत तुम्हें बताता है कि तुम्हारा सुख तुम्हारा अपना ही कार्य है। साँसारिक कामनायें उसमें हस्तक्षेप करने वाली कौन हैं? सत्य को अनुभव करो और मुक्त हो जाओ बहुत से लोग समझते हैं कि ईश्वर को प्राप्त करना कठिन है, परन्तु वेदान्त कहता है कि तुम तो स्वयं ही ईश्वर हो, ईश्वर के सिवाय और कुछ भी नहीं है। तुम्हें ईश्वर बनना नहीं, उसको केवल जानना बाकी है।
एक मनुष्य है जिसके घर में बहुत बड़ा खजाना है और वह उसे भूल गया है। एक दूसरा मनुष्य है जिसके घर में कोई खजाना नहीं है। वे दोनों खजाने के लिये खोदना शुरू करते हैं। जिस मनुष्य के खजाना है, किन्तु उसे भूल गया है, वह खोदने से पा ही जायेगा। निधि तुम्हारे पास मौजूद है। अतःकृपण या कंजूस न रहो, उसे काम में लाओ। तुम्हारी आत्मा स्वभाव से अपवित्र या पापी नहीं है। वह एक व्यक्ति के पाप से पतित नहीं हो गई है और न उद्धार के लिये दूसरे व्यक्ति के पुण्य पर निर्भर करती हैं।
सात्विक सहायताएं
इस मास कागज फंड में निम्न सहायताएं प्राप्त हुई हैं-
अखण्ड ज्योति इन महानुभावों के प्रति अपनी हार्दिक कृतज्ञता प्रकट करती है।
श्री. के. नन्द व्यास गरोठा
श्री. सुशील चन्द्र गुप्ता हरदोई
श्री. ठाकुर प्रसाद सिंह नौतनवा
श्री. वी. डी. वर्मा मंझना
श्री. नोनुप्रसाद सिंह घुरियारी