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उन कार्यों को क्यों करते हो जिनके करने से न तो कीर्ति प्राप्त होती है और न लाभ मिलता है। जो मनुष्य इससे पाना चाहते हैं, ऊर्ध्व गति के इच्छुक है उन्हें ऐसे कार्यों से दूर रहना चाहिए जिससे कीर्ति में बट्टा लगने की आशंका हो। श्रेष्ठ पुरुषों की मैत्री सफलता दे सकती है, किन्तु आचरण की अपेक्षा तो मनोकामनाओं को ही पूर्ण कर सकने की क्षमता रखती है। खबरदार! कोई ऐसा काम मत करना जिसे सभी मनुष्य बुरा बताते और जिनके करने से माता-पिता को भी कलंकित होना पड़े। सूरत से कोई आदमी बुरा नहीं है। काला-पीला रंग भले बुरे की पहचान नहीं है। श्रेष्ठ पुरुष तो वह है जिसके आचरण श्रेष्ठ है।
अधर्म से धन कमा कर सम्पत्तिशाली बनने की अपेक्षा यही अच्छा है कि मनुष्य श्रेष्ठ आचरण करता हुआ गरीब बना रहे। जो पैसा दूसरों को रुला कर इकट्ठा किया जाता है। वह क्रन्दन कराता हुआ विदा होता है। निष्पाप नीति से जो धन प्राप्त किया जाता है। अन्त में वही सच्चा आनंद देगा। इसलिये भले आदमियों ! दया और न्याय से रहित पैसे को कभी छूने की कोशिश मत करना और खबरदार! किसी पर अन्याय का हाथ मत उठाना।
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