वृद्धा की कुपित आत्मा

July 1942

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लन्दन से कोई 8 कोस दक्षिण की और एप्सम नामक एक छोटी सी बस्ती है। उसमें पिट पैलेस नामक महल में लार्ड टामस लिटेलटन रहते थे। लिटेलटन के पास आयरलैंड और इंग्लैंड में बड़ी भारी जमींदारी थी और धन धान्य से उनके खजाने भरे हुए थे। राज दरबार में उनकी पर्याप्त मान सम्मान प्राप्त था। धन वैभव यौवन और वासना का मद मिल कर एक ऐसा नशा आता है जो मनुष्य को पागल बना देता है। लिटेलटन को ईश्वर ने सुन्दर शरीर और अच्छा स्वास्थ्य दिया था। छोटा पात्र इस देन को हजम न कर सका उसका पेट ऊपर को उफनने लगा। यौवन और वैभव से मदान्ध होकर इन्होंने इंद्रिय लिप्सा को अपना ध्येय बना लिया। सुरा और सुन्दरी दो ही उनकी उपास्य देवियाँ थीं। ऐसे अनेक मित्रों का सहयोग उन्हें अनायास ही प्राप्त हो गया जो इन्हीं व्यसनों के प्रेमी थे। लार्ड महोदय पैसे को पानी की तरह बहाते हुए विलासिता में सराबोर रहने लगे। उन्होंने अगणित कुमारी और सती साध्वी महिलाओं को अपने जाल में फँसाने में पर्याप्त सफलता प्राप्त की। उनके मन यौवन पर असंख्य स्त्रियों का सतीत्व निछावर हो सका था। फिर भी वे कुँआरे ही बने हुआ थे। भाला जिसने मधु चूस कर फूल को फेंक देने की भौंरे जैसी नीति अपना ली हो, वह किसी को अपनी जीवन संगिनी क्यों बनाने लगा।

आयरलैंड में जहाँ लार्ड लिटेलटन की जमींदारी थी वहाँ एक गरीब वृद्धा स्त्री अपनी तीन लड़कियों के साथ टूटी-फूटी झोंपड़ी में रहती थी। उस विधवा वृद्धा ने अपने पति के मर जाने के बाद इन लड़कियों की बड़ी मुसीबतों के साथ हृदय के प्यार से सींच कर पाला था। वह गरीब थी फिर भी शहजादियों से अधिक अपनी लड़कियों पर प्यार करती थी। बड़ी कठिनाइयों से उन्हें पढ़ा-लिखा कर सुशिक्षित बनाया था। अब वे सयानी हुई थी जहाँ वे धर्म मर्यादा और सुख का जीवन व्यतीत करें। किंतु एक विचित्र षड़यंत्र ने बुढ़िया का हृदय चूर-चूर कर दिया।

लार्ड महोदय जब अपनी जमींदारी के सम्बन्ध में इस गाँव में गये, तो अद्वितीय रूप, यौवन सम्पन्न तरुणी कन्याओं को देखकर उनका मन बेकाबू हो गया। फिर क्या था, दलालों ने किसी न किसी प्रकार उन लड़कियों को फंसा लिया और उन्हें उस माकीय वासना की तृप्ति का साधन बनना पड़ा। वे बेचारी इंग्लैंड आ गई और ऐसी फंसी कि उस जीर्ण बुढ़िया माता को दर्शन देने तक कभी न पहुँची। बुढ़िया छाती पर पत्थर रख कर जैसे-तैसे दिन काटने लगी। वह सोचती थी शायद लार्ड महोदय एक लड़की से स्वयं पाणिग्रहण कर लेंगे ओर शेष को किसी भली जगह विवाह देंगे, किन्तु जब उसे यह पूरी तरह विश्वास हो गया कि लड़कियों को कुछ दिन बाद झूठी पत्तलों की भाँति फेंककर उनका भविष्य अन्धकारमय बना दिया जायगा तो बुढ़िया का हृदय हाहाकार कर उठा वह बीमार पड़ गई और लड़कियों का नाम रटती आँसुओं की अविरल धारा बहाती हुई लोक से प्रयाण कर गई।

जिस समय आयरलैंड में उस बुढ़िया का प्राणान्त हुआ था, उस समय लार्ड महोदय रात्रि की क्रीड़ा समाप्त करके सुख निद्रा में सो रहे थे। अचानक किसी शब्द को सुन कर उनकी नींद खुल गई उसने समझा कि शायद काँच की खिड़की के पास कोई पक्षी रहा है। फिर उन्होंने ध्यान से देखा तो मालूम हुआ कि पक्षी नहीं बल्कि सफेद कपड़े पहने एक वृद्धा स्त्री खड़ी हुई है। ये उठ बैठे और घूर-2 कर उसे पहचानने का प्रयत्न करने लगे। अब वे पहचान गये कि यह उन कुमारियों की माता है और लाल नेत्र निकाल कर बड़े क्रोध से उन्हें घूर रही है। अंगारे की तरह उसका चेहरा तेज तमतमा रहा है। लार्ड महोदय का कलेजा थर थर काँपने लगा,उनकी नसों में खून जमने लगा।

मूर्ति और अधिक निकट हो गई और गम्भीर स्वर से बोली-दुष्ट! तेरी मौत आ पहुँची, अब तू मरने को तैयार हो जा! लिटेलिटन ने आवेश में विह्वल होकर पूछा- ‘क्या मृत्यु? क्या मेरी मृत्यु? क्या मैं एक दो महीने में ही मर जाऊंगा? बुढ़िया ने दाँत पीसते हुए कहा-”एक दो महीने में नहीं, तीन दिन के अन्दर। देख, सामने वाली घड़ी में इस वक्त बारह बज रहे हैं परसों ठीक इसी वक्त आकर में तुम्हें ले जाऊंगी” इतना कहकर मूर्ति अदृश्य हो गईं।

भयभीत लिटेलटन विक्षिप्त की दशा में सन्न पड़े रहे। नौकर ने देखा कि उनके शरीर से बेशुमार पसीना बह रहा है, किसी प्रकार उन्हें सावधान करके उठाया गया। उन्होंने रात्रि की घटना सबको सुनाई पर मित्रो ने हंसी में उड़ा दिया। वे पार्लियामेण्ट की बैठक में गये और चर्चा में भी शामिल हुए, पर चित्त स्थिर न था। उनके मित्रों ने भ्रम समझकर उसे निवारण का यह उपाय किया कि घड़ी दो घण्टे तेज कर दी। जब रात्रि के दस बज रहे थे तो घड़ी ने बारह बजाए। लार्ड महोदय पूर्ण स्वस्थ थे, और प्रसन्नता से उछल पड़े कि वह केवल भ्रम था अब मेरा कुछ नहीं हो सकता। इस प्रकार प्रसन्न होते हुए वे शयन गृह में चले गये, मित्र बेखबर न थे। जैसे ही घड़ी ने दो बजाए और वास्तविक बारह बजे तो मित्र उनके कमरे में धीरे-2 घुसे। देखा कि उनका मृत शरीर पलंग पर पड़ा हुआ है।

यह घटना एक असाधारण व्यक्ति और पार्लियामेंट के सदस्य की है इसलिये उन दिनों इसकी सारे देश में चर्चा रही और पीछे इसे प्रामाणिक पुस्तकों में लेखबद्ध कर लिया गया।


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