जिओ और जीने दो

July 1942

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मनुष्य इस विश्व का सर्वोच्च प्राणी है, निस्संदेह ईश्वर ने उसे इतना श्रेष्ठ, उच्च और महान इसलिये बनाया है कि वह एक आदर्श जीवन जी सके इतनी अत्यधिक सुविधा साधन सामग्री देकर एक उत्तम शरीर के साथ प्राणी इस लोक में भेजने में प्रभु का कुछ महान उद्देश्य छिपा हुआ है। मानसिक और आध्यात्मिक चेतना के असाधारण क्रियाशील तन्तुओं का निर्माण ऐसी अद्भुत कारीगरी के साथ हुआ है कि हम इन साधनों के सदुपयोग से पिता के समस्त अधिकारों को प्राप्त करने में समर्थ हो सकते हैं। जिस मानव की रचना पर परमात्मा ने इतना श्रम किया है, यदि वह पशुओं से कुछ भी ऊँची उपयोगिता सिद्ध न कर सके तो, यही कहा जायगा कि इतना श्रम निरर्थक गया।

इस देवदुर्लभ शरीर को पाकर हमें अपना गौरव प्रदर्शित करना होगा। सिंह कभी सड़े हुए माँस की ओर मुँह उठा कर नहीं देखता, क्या हम तुच्छ विषय भोगो की वेदी पर अपनी श्रेष्ठता को बलिदान कर देंगे? एक सम्राट क्या कभी भिखमंगों के सा आचरण करता है? हमें यह शोभा नहीं देता कि ऐसे कामों पर उतारू हों जो मनुष्य को कलंकित करते हैं। हंस प्यासा मर जायेगा पर दूध में से पानी छाँट देने का गुण न छोड़ेगा। हमें न्याय और अन्याय का अन्तर करके केवल न्याय को स्वीकार करना होगा। ताकि हमारी महत्ता सुरक्षित रहे। चकवा वर्ष दिन तक प्यासा मरता है पर सूखे हुए गले को स्वाति के जल से ही भिगोता है। हम गरीबी का जीवन बितावेंगे, कष्ट सहेंगे पर अन्याय से उपार्जित धन ग्रहण न करेंगे। भौंरा सुगन्धित पुष्पों के आस-पास रहता है। हम भी सज्जनों और सद्विचारों के बीच अपना स्थान बनावेंगे। मानव जीवन की महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ हमें इस बात के लिए बाध्य करती हैं कि ऐसा जीवन जियो जो जीने योग्य हो, जिससे हमारे पद के गौरव पर कलंक न आवे।

धिक्कार है इस जिंदगी पर जो मक्खियों की तरह पापों की विष्ठा के ऊपर भिनभिनाने में और कुत्ते की तरह विषय भोगो की झूठन बांटने में व्यतीत होती है। उस बड़प्पन पर धिक्कार है जो खुद खजूर की तरह बढ़ते है पर उनकी छाया में एक प्राणी भी आश्रय नहीं पा सकता। सर्प की तरह धन के खजाने पर बैठ कर चौकीदारी करने वाले लालची किस प्रकार सराहनीय कहे जा सकते है? जिनका जीवन तुच्छ स्वार्थों को पूरा करने की उधेड़ बुन में निकल गया हाय! वे कितने अभागे हैं सुर दुर्लभ देह रूपी बहु मूल्य रत्न इन दुर्बुद्धियों में काँच और कंकड़ के टुकड़ों के बदले बेच दिया, किस मुख से वे यह कहेंगे कि हमने जीवन का सदव्यय किया। इन कुबुद्धियों को तो अन्त में पश्चाताप ही प्राप्त होगा, एक दिन उन्हें अपनी भूल प्रतीत होगी। पर उस समय अवसर हाथ से चला गया होगा और धुन कर पछताने के अतिरिक्त और कुछ हाथ न रहेगा।

मनुष्य! जिओ और जीने योग्य जीवन जिओ। ऐसी जिन्दगी बनाओ जिसे आदर्श और अनुकरणीय कहा जा सके। विश्व में अपने ऐसे पद चिन्ह छोड़ जाओ जिन्हें देख कर आगामी संतति अपना मार्ग ढूँढ़ सके। आपका जीवन सत्य से, प्रेम से न्याय से, भरा हुआ होना चाहिए। दया सहानुभूति, आत्म निष्ठ, संयम, दृढ़ता उदारता आपके जीवन के अंग होने चाहिए। शारीरिक और मानसिक बल का संचय और उसका सदुपयोग यह प्रथम कर्तव्य है, जिस की ओर हर घड़ी दत्तचित्त रहना चाहिए। बिना इसके जीवन नहीं हो सकता।

न केवल उच्च जीवन स्वयं जियो वरन् दूसरों को भी वैसा ही जीवन जीने दो। परमात्मा का आत्मा के प्रति आदेश है कि जिओ और जीने दो अपनी निर्बलता है। वासना स्वार्थपरता एवं कुभावनाओं को हटा कर गौरवपूर्ण पद प्राप्त करो और सिर ऊँचा उठा कर जीने योग्य जिन्दगी जिओ और उस सात्विक शक्ति का प्रयोग दूसरे निर्बलों को जीवन की शक्ति प्रदान करने में करो। यह प्रक्रिया अत्यन्त ही नीच श्रेणी की होगी कि तुम स्वयं ऊंचे उठो पर दूसरों को नीचा दबाओ। स्वयं स्वतन्त्रता की इच्छा करो और दूसरों को बन्धनों में जकड़ो। यह तो अपने बल का दुरुपयोग करना होगा। दूसरों की छाती पर खड़े होकर ऊपर बढ़ने की भावना इतनी सत्यानाशी और नारकीय है कि इसके द्वारा विश्व का बहुत भारी अहित हुआ है। बलवान व्यक्ति जब जालिम का रूप धारण करता है तो वह प्रभु की इस सुरम्य वाटिका में निर्दय कुल्हाड़े का काम करता है। ऐसा क्रूर जीवन पिशाच ही बना सकता है, मनुष्य के लिए वैसा संभव नहीं है। जीने दो दूसरों को भी स्वतन्त्रतापूर्वक जीने दो। जो भूले भटके हों उन्हें राह पर लाओ पर खबरदार किसी के मूलभूत अधिकारों पर हस्तक्षेप मत करो। अमुक व्यक्ति अमुक परिवार में उत्पन्न हुआ है। इसलिये उसके मानवोचित अधिकार दबाये जाएं यह सोचना बड़ी ही निर्दयता होगी। एक सच्चा मनुष्यता का उपासक यह नहीं कह सकता कि स्त्रियों पर पुरुषों की अपेक्षा अधिक बन्धन लगाने चाहिए। शूद्रों के मानव अधिकारों का अपहरण करना चाहिए। ऐसी अनुदारता पाषाण हृदय में ही होना संभव है सत्य का प्रेमी न्याय का उपासक अपने अंतःकरण की ग्रंथियों को खोल डालता है। वह स्वयं उच्च जीवन जीता है, इसलिए दूसरों के जीवन की भी कद्र करता है। टुच्चा आदमी स्वयं सड़ी हुई नालियों की रूढ़ियों में बुजबुजाता हुआ गर्हित जीवन बिताता है, इसलिए वह दूसरों की भी टाँग पकड़ कर नारकीय पराधीनता में सड़ने के लिए पीछे घसीटता है। वह दूसरों को तुच्छ समझता है। क्योंकि स्वयं तुच्छता में पड़ा हुआ है, वह दूसरों से घृणा करता है, क्योंकि उसने स्वयं अपनी आत्मा को घृणित बना रखा है।

आप टुच्चे मत बनिये, आप बढ़ रहे हैं उन्नति के पथ पर चल रहे हैं, इसलिए दूसरों को भी बढ़ने दीजिये। आप अपनी आत्मा को मुक्त बनाने के लिये प्रयत्नशील हैं। इसलिए दूसरों को भी स्वतन्त्रता का आनन्द लेने दीजिए। स्वयं बढ़िये और दूसरों को बढ़ने के लिए प्रोत्साहन कीजिये। आप महान बनिये दूसरों में महानता लाने का प्रयत्न करिए। पाठकों ! तुम ईश्वर के राजकुमार हो, इसलिए वैसा जीवन जीओ जो राजकुमारों के योग्य है। संसार के प्राणी तुम्हारे भाई हैं इसलिए उनके साथ अच्छा ही व्यवहार करो जैसा एक भाई दूसरे के साथ करता है। जिओ, प्रसन्नता पूर्वक जिओ दूसरों को भी उसी तरह जीने दो।


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