दुष्टों पर दया मत करो

July 1942

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(महात्मा शेखसादी)

दुष्टों पर दया करना सज्जनों के ऊपर जुल्म करना है। जालिम को माफ करना सताये हुओं पर जुल्म करना है। अगर तुम कमीनों के साथ मेलजोल रखोगे और उन पर मेहरबानी करोगे तो वे तुम्हारी हिमायत से अपराध करेंगे और तुमको उनके अपराधों में हिस्सेदार बनना पड़ेगा।

जो सख्श दुष्ट को मार डालता है वह दुनिया को उसकी दुष्टताओं से बचाता है और अपने को ईश्वर के कोप से छुड़ाता है क्षमा, प्रशंसा योग्य है, तथापि अत्याचारी जालिम के जख्म पर मरहम न लगाओ। जो साँप की जात को बख्शता है वह यह नहीं जानता कि मैं आदम की औलाद को नुकसान पहुँचाता हूँ।

एक जवान ने अपने पिता से पूछा आप बुद्धिमान है, अपने अनुमान से मुझे कुछ उपदेश दीजिये। उसने उत्तर दिया सीधेपन और भलमनसाहत से काम ले मगर इतना सीधा न बन कि लोग तेरा अपमान करें और भेड़िये के से तेज दांतों से तुझे काट खावें

अत्याचारी से बढ़कर अभागा और कोई नहीं है क्योंकि विपत्ति के समय कोई उसका दोस्त नहीं होता।

अगर पत्थर हाथ में हो और साँप पत्थर के तले हो उस समय पशोपेश करना और देर करना बेवकूफी है। चीते के तेज दांतों पर रहम करना भेड़ों पर जुल्म करना है।

भले आदमियों को दुष्टों की गुस्ताखी और लापरवाही की दरगुजर न करनी चाहिए क्योंकि इससे दो नुकसान होते हैं एक तो भलमनसाहत का अपमान होता है। और दूसरे मूर्खता को बढ़ावा मिलता है।

कथा-


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles