(ऋषि तिरुवल्लुवर)
माथे पर चन्दन पोतने से क्या फायदा? जब कि मन में बुराइयों के ढेर जमा हो रहे हैं। बाहरी बनावट से कुछ काम न सरेगा जबकि दिल मक्कारियों की गठरी बना हुआ है। चेहरे को विशेष आकृति का बनाकर धर्मात्मा नहीं बना जा सकता है। ढोंग करना सज्जनों का काम नहीं, ठगों का व्यापार है। बाहर से उजला और भीतर से मैला मनुष्य उस गधे के तुल्य है जो शेर की खाल ओढ़े फिरता है, पर घरों पर चरता है। धर्मात्मा बनने वाला दुराचारी उस बधिक की तरह है कि जो जाल बिछा कर झाड़ियों के पीछे छिपा रहता है और भोली चिड़ियों को फँसाता है। अपवित्र मन को लेकर तीर्थ में जाने से कुछ लाभ न होगा।
मन में वासनायें भरी रहे और बाहर से त्याग का आडंबर करें, तो उससे क्या प्रयोजन? ढोंगी आदमी समझता है कि मैं दूसरों को खूब चकमा देता हूँ, परन्तु यथार्थ में वह अपने सिवाय और किसी को नहीं ठग सकता। जो दूसरों की दृष्टि में धर्मात्मा बनता है, पर अपनी दृष्टि में पापी है, वह अन्त समय बहुत पछतावेगा और कहेगा-हाय! मैंने अपने हाथों अपना नाश क्यों किया? जिनका हृदय पवित्र है, उन्हें आडम्बर की क्या जरूरत? अगर तुम्हारे हृदय में त्याग मौजूद है, तो न सिर घुटाने की जरूरत है और न जटा रखने की।
कथा-