मुरझाये कुसुम के प्रति

July 1942

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

मुरझाये कुसुम के प्रति

(श्री बल्लभ)

खेद करो मन कुसुम! हृदय में अपने मुरझाने का।

जाने कब से चला आ रहा क्रम आने जाने का॥

तुम न रहोगे, किन्तु तुम्हारी, सुरभि सदैव रहेंगी।

विश्व विलास तुम्हारा श्रम है। वह यह कथा कहेगी॥

वह रज जिसमें लोट-लोट कर, बने कुसुम तुम योगी।

अन्त समय में वही तुम्हारी, कोमल शय्या होगी॥

वह कंटक जिनमें विध-विध कर, थे प्रसून तुम खेले।

रोवेगें इस सरस गन्ध को, नाम तुम्हारा ले ले॥

हे उदार! मधु-दान तुम्हारा, कौन भूल जावेगा ?

मधुप-समाज विवश रो-रो कर, अमर गान गावेगा॥

कोटि कल्प से भी बढ़कर है, साधन यह दो दिन का।

अहा! यही सच्चा गौरव है, नश्वर जग जीवन का॥


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118