जीवन ईश्वर है या ईश्वर जीवन?

November 1991

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ताओ धर्म के दार्शनिक बहुत समय तक विचार कर इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि जीवन मनुष्य के लिए ईश्वर का सर्वोपरि उपहार है। इसकी गरिमा इतनी बड़ी है जितनी इस संसार में अन्य किसी सत्ता की नहीं। इसलिए उसे ईश्वर के समतुल्य माना जाय तो इसमें कुछ भी अत्युक्ति न होगी।

ईश्वर की झाँकी जीवसत्ता की संरचना और संभावनाओं में देखी जा सकती है। यदि उसकी ठीक तरह उपासना की जाए तो वे सभी वरदान उपलब्ध हो सकते हैं जो ईश्वर के अनुग्रह से किसी को कभी मिल सके हैं। यह प्रत्यक्ष देवता है। हमारे इतना समीप है कि मिलन से उत्पन्न असीम आनन्द की अनुभूति अहर्निशि की जा सके।

जीवन का उद्देश्य है, अपने अन्तराल में छिपे दिव्य का, अद्भुत का, सुन्दर का दर्शन करना। उसे ईश्वर के साथ जोड़ देना जो इस ब्रह्माण्ड की आत्मा है, पूर्ण है और वह सब है, जिसमें मानवी कल्पना से कहीं अधिक सौंदर्य का सुख का सागर लहराता है।

ईश्वर को हमें समझना है तो हम जीवन को समझें। ईश्वर को पाना है तो जीवन को प्राप्त करें। जीवन रहित जिन्दगी से आगे बढ़ें, गहरे घुसें, अपने आपको निर्मल करें और उस महान अवतरण को प्रतिबिम्बित करें, जो प्रेम के रूप में आत्मसत्ता के अन्तराल में आलोक की एक किरण जैसा विद्यमान हैं।


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