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November 1991

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अंधा मनुष्य सर्प की आशंका से गले में डाली गई पुष्प माला को भी उतार फेंकता है। अविवेकी लोग सत्परामर्श को भी घाटा पड़ने की आशंका से उपेक्षापूर्वक अनसुना कर देते हैं।

जाना चाहिए। दायित्व जीवट वाले प्राणवान तथा संकीर्ण स्वार्थपरता की बेड़ियों से मुक्त उन लोगों का है, जो लोकमानस के परिष्कार एवं प्रशिक्षण का महत्व समझते हैं और राष्ट्रीय संदर्भ में उसके उपयुक्त माध्यम के रूप में उपादेयता को जानते है।

धर्मतन्त्र रूपी मन्दिर में जल रही जन आस्था की ज्योति के बुझने में घाटा ही घाटा है। इसका अभ्यासी जनमानस इससे दिग्भ्रान्त हो जाएगा। अतः जरूरत इस बात की है कि इसको पर्याप्त मात्रा में प्राण वायु पहुँचायी जाय। यह काम सुभाष चन्द्र बोस, चन्द्रशेखर, विवेकानन्द, दयानंद जैसे महामानवों की परम्परा का है। आस्था संकट से जूझने के लिए जब भावनाशील, पवित्र अन्तःकरण, उत्कृष्ट चिन्तन एवं श्रेष्ठ आचरण वाले प्रबुद्ध जन इस क्षेत्र में उतरेंगे तभी धर्म तन्त्र को परिमार्जित, परिशोधित, नवनिर्धारित कर धार्मिक नीतिमत्ता के प्रति आस्था की ज्योति जगाए रखी जा सकती है। यह ज्योति ही मानवीय अन्तःकरण को आनन्दित, पुलकित, प्रफुल्लित रख कर प्रगति पथ पर बढ़ते रहने का पाथेय जुटाती रह सकेगी।


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