ब्रह्म की आराधना (Kahani)

November 1991

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ज्ञानी के घर बेटा जन्मा। बड़ा सुन्दर था। सबने आकर बधाइयाँ दीं। कहा कि आप बड़े भाग्यशाली हैं जो की ऐसी सन्तति पाई। ज्ञानी ने आसमान की ओर देख कर कहा “सब उसका है।” जो भी आता, उसका एक ही जवाब होता। दुर्योगवश कुछ ही दिनों बाद बालक एक बीमारी से मर गया। अब जो भी मिलने जाता, सान्त्वना देता। ज्ञानी वैसे ही ऊपर की ओर देखकर कहता “जिसका था, उसने ले लिया।” लोगों ने कहा इतने सुन्दर बेटे की मौत का तुम्हें जरा भी गम नहीं? ज्ञानी बोला “जिसने भेजा जितने दिन रोकना चाहा, रोका व जब चाहा बुला लिया। उसमें मेरे हाथ या बस की क्या बात है। इसीलिए कहता हूँ सब ऊपर वाले की लीला है।”

हम सब भी अकारण दुख-सुख में डूब कर भ्रम पाले रहते हैं। जीवन मृत्यु का सत्य यदि हमेशा ध्यान में रहे तो कभी मोह अकारण न सताए।

इस घटना के बाद घर पहुँच कर इब्राहीम ने अपने छोटे से मकान और दौलत को गरीबों में बाँट दिया और स्वयं एक छप्पर तले रहने लगे व कंगालों एवं जरूरतमंदों की खिदमत करने लगे। कहते हैं कि इस बार की सेवा से खुश होकर पैगम्बर मुहम्मद ने इब्राहीम को उनके झोंपड़े में दर्शन व आशीर्वाद दिये, जो एक सच्चे संत हमें सेवा साधना का सच्चा रूप समझाती है व विराट ब्रह्म की आराधना करने की प्रेरणा देती है।


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