कैसे होते हैं व्यक्तित्व सम्पन्न महामानव?

November 1991

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व्यक्तित्व क्या हैं? मोटे तौर पर तो इसका अर्थ बाह्य आकार-प्रकार और शारीरिक संरचना से लगाया जाता है। जो देखने में जितना मोटा-तगड़ा, लम्बा-तड़ंगा लगता है, उसे उतना ही उच्च व्यक्तित्व का समझा जाता है। अंग्रेजी में इसे “जाइण्ट पर्सनॉलिटी” कहते हैं, पर क्या मनुष्य का वास्तविक व्यक्तित्व सचमुच शारीरिक संगठन ही है? विचार करने पर ज्ञात होता है कि बात ऐसी है नहीं। यदि व्यक्तित्व का मापदण्ड शरीर-संरचना को माना जाय, तब तो पहलवान और जंगलों में रहने वाले कबीले के लोग ही भारी-भरकम व्यक्तित्व वाले साबित होंगे, जबकि मानवोचित गुणों की दृष्टि से उनका अन्तराल लगभग शुष्क होता है। जब मानवोचित गुण ही नहीं, तो उन्हें उस श्रेणी में कैसे रखा जा सकता है? वस्तुतः अन्तःकरण की उत्कृष्टता ही व्यक्तित्व का वास्तविक मापदण्ड है। जिसका अन्तस् जितना उदात्त होता है, वह उतना ही उच्च व्यक्तित्व वाला कहलाता है।

अधिकाँश मनोवैज्ञानिकों ने व्यक्तित्व को वंश परम्परा द्वारा निर्धारित होने की बात बताई है। उनका कहना है कि व्यक्तित्वों में विभिन्नता वंशपरम्परा के कारण है। किन्तु वाटसन् प्रभृति व्यवहार मनोविज्ञानी साँख्य योग का समर्थन करते हुए करते हुए वातावरण को ही व्यक्तित्व का प्रधान निर्धारक मानते हैं। साँख्ययोग ने इसे और भी स्पष्ट करते हुए कहा है कि संचित कर्मों की अपनी महत्ता है किन्तु व्यक्ति अपने व्यक्तित्व में अपनी इच्छानुसार परिवर्तन लाता है। शरीर का ढांचा, रूप, रंग पारिवारिक परिस्थिति, सामाजिक संबंध तथा आर्थिक अवस्था को मनुष्य अपने पुरुषार्थ से बदल सकता है। वर्तमान जीवन में ही उनमें व्यक्ति स्वयं बहुत कुछ परिवर्तन लाता है। अच्छाई अथवा बुराई को श्रेय अथवा प्रेय को व्यक्ति स्वयं ही अपनाता है, एवं उससे संबंधित योग्यता विकसित करता है। इसी को गीता ने आसुरी और देवी सम्पदा वाले दो व्यक्तित्वों में विभाजित किया है। आसुरी प्रवृत्ति वाले लोभ, मोह, अहंकार के दलदल में फँसकर वासना तृष्णा एवं अहंता की पूर्ति में और धंसते जाते हैं, इन आसुरी सम्पत्ति को जानकर भी व्यक्ति उससे दूर नहीं हो पाता वह चाहे तो इन्हें क्षणभर में तोड़ सकता है किन्तु अभ्यासवश तोड़ नहीं पाता। वहीं दैवी सम्पदा वाले उदात्त दृष्टिकोण एवं विस्तृत आत्मीयता अपनाकर अपने चिंतन चरित्र एवं व्यवहार में उत्कृष्टता का समावेश करते हैं फलस्वरूप गुण, कर्म स्वभाव की कसौटी में खरा सिद्ध हो कर आत्म सन्तोष एवं लोक सम्मान प्राप्त करते हैं।

गीता में व्यक्तित्व को और स्पष्ट करते हुए कहा है कि सत्व, रजस् एवं तमस गुणों के आधार पर तीन भागों में बाँटा गया है। सात्विक व्यक्ति चिंतन, चरित्र एवं व्यवहार में, प्रत्येक क्रियाकलाप में आयु,


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