चमत्कारी कहा जा सके (Kahani)

November 1991

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हजरत अबूबक सिद्धीकी मदीना के खलीफा बनाये गये। प्रश्न यह उठा कि उनको निर्धारित वेतन कितना मिले।

चूँकि उनके पूर्ववर्ती खलीफी का कोई वेतन नियत न था। वे आवश्यकतानुसार खर्च ले लिया करते थे। कोई नियत निर्धारण न था पर अब तो एक परम्परा बनाने की आवश्यकता पड़ी।

हजरत से कहा गया कि वे ही अपना वेतन निर्धारित कर लें। उनने उत्तर दिया इस क्षेत्र के साधारण मजदूरों को जो वेतन मिलता है वह ही मेरी भी नियत कर दिया जाय।

योग साधनाओं में ध्यान की विभिन्न साधनायें, आसन, प्राणायाम आदि विभिन्न प्रकार के अभ्यास इस दृष्टि से बनाये गये है जिससे शरीर के उन अवयवों तक की मालिश हो जाती है साधारण व्यायाम जिन पर प्रभाव नहीं डाल पाते। मर्मस्थलों में छिपी शक्तियों को उन्नयन करना,उभारना और उनका लाभ लेना इन क्रियाओं का उद्देश्य है। इनके द्वारा बुरी आदतों एवं कुसंस्कारों को,जो नाना प्रकार की व्यथाओं-वेदनाओं की जड़ है उनको बदल कर उनके स्थान पर स्वस्थ आदतों एवं सुसंस्कारों की स्थापना की जा सकती है।, इससे न केवल मन की कमजोरियाँ दूर होती है,वरन् प्रसुप्त पड़ी अंतःशक्तियाँ धीरे-धीरे जाग्रत एवं विकसित होकर ऐसे सत्परिणाम प्रस्तुत करती है जिन्हें चमत्कारी कहा जा सके।


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