अर्जुन और कृष्ण में विवाद चल रहा था। अर्जुन कह रहे थे कि मनुष्य उदार तभी हो सकता है जब वह स्वयं अच्छी स्थिति में हो। कृष्ण कहते थे कि उदारचेता स्वयं मुसीबत में होने पर भी सत्प्रयोजनों में सहायता करने से नहीं रुकते।
समाधान के लिए कृष्ण अर्जुन को वहाँ ले गये जहाँ कर्ण घायल अवस्था में मरणासन्न पड़े थे। इन दोनों ने संत का वेश बना लिया था।
कर्ण ने आगन्तुक संतों का अभिप्राय पूछा। उन ने किसी परमार्थ कार्य के लिए धन की आवश्यकता बतायी। कर्ण विचार करने लगे। जीवन भर किसी याचक को खाली हाथ वापस नहीं जाने दिया अब कैसी विषम बेला है कि उस व्रत का निर्वाह टूट रहा है।
अचानक उन्हें ध्यान आया कि उनके दो दाँतों में सोना लगा है। प्रसन्नता खिल उठी। उन ने दोनों दाँत पत्थर से तोड़े और दोनों संतों के हाथ पर रख दिए।
दांत लेकर वे दोनों चल दिये। कृष्ण ने कहा अर्जुन देखा न उदारचेता स्वयं मुसीबत में होते हुए भी सत्कर्मों के लिए सहायता करने में नहीं चूकते।