एक बार महामना पंडित मदनमोहन मालवीय ने बनारस हिन्दू विद्यालय के लिए एक सेठ से दान देने को कहा - उनकी बात सुनकर सेठ बोला मन्दिर बनवाना हो, तो हम से चन्दा ले लीजिए पंडित जी। चाहे जिस काम के लिए हम दान नहीं देते।
मालवीय जी ने तुरन्त समझ लिया कि सेठ को विद्या का महत्व ज्ञान नहीं है, इसलिए ये ऐसी बातें कर रहा है। उन्होंने धैर्य और नम्रतापूर्वक समझाया कि देश में मन्दिर तो पहले ही इतने हैं कि यदि वे अपनी सारी शक्ति लोगों का मनोबल चरित्र और नैतिकता जगाने में लगा दें, तो सारे विश्व की मूर्छा समाप्त हो सकती है। अब मन्दिरों की नहीं, ज्ञान-मन्दिरों की आवश्यकता है, जिससे नर, नारी, बाल, वृद्ध शिक्षित और सुसंस्कृत बन सके। सेठ मालवीय जी के कथन से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने विद्या विस्तार हेतु यथेष्ट दान देकर ससम्मान पंडित जी को विदा किया।
गायत्री सचमुच महाशक्ति है। उसका अवलम्बन लेने से एक साधारण व्यक्ति भी महा मानव स्तर के पुरुषार्थ सम्पन्न कर दिखा सकता है। सद्बुद्धि विस्तार, सौहार्द्र की भावना का प्रसार ही आज के समय की माँग है गायत्री की शब्दशक्ति को चेतना का ईंधन कह सकते हैं। समष्टिगत चेतना को जगाने के लिए हमें महाशक्ति का ही आश्रय लेना होगा। इस तथ्य को भली भाँति समझ लिया जाना चाहिए। देव संस्कृति ही अगले दिनों विश्व संस्कृति के रूप में व्यापक विस्तृत होगी एवं नवयुग का नेतृत्व करेगी। इसके दोनों ही स्तम्भों गायत्री एवं यज्ञ के तत्वदर्शन को जन-जन तक पहुंचाया जाना प्रस्तुत समय की सबसे बड़ी सेवा है।