मनुष्य के मस्तिष्क को यदि भानुमति का पिटारा कहा जाय, तो कोई अत्युक्ति नहीं होगी, क्योंकि इसमें इतनी और ऐसी-ऐसी अद्भुत और आश्चर्यजनक क्षमताएँ भरी पड़ी हैं, जिन्हें यदि जीवन्त जाग्रत कर लिया जाय, तो यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि मनुष्य दीन-हीन स्थिति में पड़ा नहीं रह सकता। यदा-कदा यही क्षमताएँ दुर्घटनावश जग पड़ती है, तो हर कोई यह विश्वास करने लगता है कि यदि प्रयासपूर्वक मनुष्य इन्हें जगा ले, तो मनुज - चोले में ही वह नारायण की क्षमता अर्जित करने में सफल हो सकता है ।
ऐसी ही एक महिला थी मोली फेंचर। बुकलीन के एक सामान्य परिवार में जन्मी, पली, बढ़ी फेंचर जब बड़ी हुई, तो उसे घुड़सवारी का शौक चर्राया। अपने मित्रों की तरह वह भी नित्य घुड़सवारी करने लगी, पर दुर्भाग्यवश 10 मई 1864 को घुड़सवारी के दौरान वह अचानक घोड़े की पीठ से गिर पड़ी मस्तिष्क में कुछ स्थानों पर चोटें आयी, किन्तु सब कुछ सामान्य रहा। 8 जून, 1864 को इसी घटना की पुनरावृत्ति हुई। इसके बाद उसने खाना- पीना बन्द कर दिया। लाभ भी इसी क्रम में धीरे-धीरे मिलने लगा। 3 फरवरी 1866 को 8 माह बाद डॉ. राबर्ट स्पाइयर ने जब मोली का परीक्षण किया, तो मोली की चाची ससन कासबी एवं पड़ोसी अत्यन्त प्रसन्न हुए कि चलो स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर रही है। उसी दिन अचानक न जाने क्यों उसने आँखें बन्द कर लीं और कई महीनों तक नहीं खोलीं। जब आँखें खुलीं, तब अपने जीवन काल के किसी भी व्यक्ति को पहचानने से इन्कार कर दिया। यहाँ तक कि अपने निजी डॉ एवं चाची तक को नहीं पहचान सकी। इसके बाद सदा लेटी ही रहती। उसका बायाँ हाथ सिर के नीचे 9 साल तक पड़ा रहा। इसी अवधि में उन्होंने 6000 अद्भुत पत्र लिखे, जो अपने आप में विलक्षण एवं मित्रों को प्रभावित करने वाले थे।
फरवरी 1875 को नौ वर्ष के बाद अकस्मात वह बिस्तर से उठी और चलने लगी, तो सीढ़ी से गिर पड़ी। आँख खुलते ही अपने निजी डॉक्टर के भाई डॉ एस फ्लीट स्पाइयर से बोल पड़ी “क्यों डॉक्टर! आपके भाई नये घर में क्या कर रहे हैं।” अपनी चाची को देखकर वह कहने लगी “क्यों चाची! तुम्हारे तो बाल काले दीखते थे, इतनी जल्दी बूढ़ी हो गई। “ स्वयं के द्वारा लिखित पत्रों को देखकर कहने लगी “यह तो किसी मृतात्मा द्वारा लिखे गये पत्र हैं।”
यह मोली की असाधारण शक्तियों के जागरण का श्रीगणेश मात्र था। इसी बीच न जाने किन कारणों से उसी आँखों की दृश्य क्षमता लुप्त हो गई और वह चिकित्सकीय दृष्टि से अन्धी हो गई। परन्तु उसने अनुभव किया कि अन्धी आँखों के बावजूद भी वह सब कुछ देख सकती है। इस संबंध में उसका कहना था “मुझे ऐसा लगता है, मानों मैं अपने दोनों भौहों के बीच में विद्यमान तीसरी आँख से देख रही हूँ।”कई बार तो दूर की रखी चीजों को भी देख लेती थी और कहती मुझे ऐसा लगता है कि मस्तिष्क के ऊपरी हिस्से से प्रकाश किरणें निकल रही हैं, जो वस्तुओं से टकराकर मेरे पास आती हैं और मैं उन्हें देख लेती हूँ।”
1875 में कलीन युनिवर्सिटी के भौतिकीविद् प्रोफेसर हेनरी एम, पार्श्बस्ट्र ने मोली को अतीन्द्रिय क्षमताओं के सम्बन्ध में जाँच-पड़ताल की। वे दो चीजों को विशेष रूप से जानना चाहते थे कि क्या मोली के पास वस्तुतः अतीन्द्रिय क्षमता है अथवा कोई हाथ की सफाई जैसा कुछ है। दूसरी, मोली इसका प्रयोग कैसे करती है। इसके लिए उन्होंने कई प्रयोग किये। एक मोटे कागज वाले लिफाफे में कुछ लिखकर मोली को दिया गया तो वह बिना किसी कठिनाई के पढ़ने लगी। जब कोट की पुरानी फाइल से एक कागज लाया गया, उसे भी जब लिफाफे में बन्द कर पढ़ने को दिया गया, तो वह उसे भी आसानी से पढ़ने लगी। इन सब परीक्षणों के बाद डॉ. हेनरी सन्तुष्ट हुए और इसे उन्होंने उसकी मौलिक अतीन्द्रिय क्षमता की संज्ञा दी व कहा कि हर दृष्टि से दृष्टि हीन होने के बावजूद वह छठी इन्द्रियों से सब कुछ देख सकती है। इसका कोई वैज्ञानिक प्रतिपादन उनके पास नहीं था।
संभव है, इसे कोई दुर्घटना से मस्तिष्क के किसी न्यूरान के अस्त−व्यस्त होने व अतीन्द्रिय क्षमता के जाग पड़ने की प्रक्रिया बताए। पर एक तथ्य तो सुनिश्चित है कि यह संभावना मस्तिष्क में विद्यमान है। कभी ऐसा समय भी था जब साधक स्तर के प्राणवान व्यक्ति अपनी इन्हीं संभावनाओं को साकार कर दिव्य क्षमताओं को हस्तगत कर लिया करते थे। ऋद्धि-सिद्धियों का भण्डार हमारे अपने ही अंदर विद्यमान है व हम चमत्कारों को बहिरंग में तलाशते रहते हैं। अंतर्मुखी हो साधना पुरुषार्थ किया जा सके तो उद्देश्यपूर्ण प्रयोजनों के लिए भी अतीन्द्रिय सामर्थ्यों को जगाना संभव है।