होठों पर खिलती मुसकान (Kahani)

February 1991

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

कोढ़ का दुःसाध्य रोगी था बड़ा नास्तिक और जिद्दी। सभी लोग उससे नफरत करते और कहकर निकल जाते कि अपने कर्मों का दण्ड भुगत रहा है। उसकी भी धारणा बन गई थी कि सभी लोग मुझसे नफरत करते हैं, अतः वह चलते राहगीरों को गालियाँ देता।

सन्त फ्रान्सिस उसकी गालियों की परवाह किये बिना ही आगे बढ़ गये और उसके पास पहुँच कर बोले, कि तुम भले ही मुझे कितनी गालियाँ दो, किन्तु मैं तुम्हारी मदद किये बिना न जाऊँगा। फ्रान्सिस की शीतल वाणी का उस पर आग पर पानी की तरह असर हुआ और ऐसा बदला कि अगले दिन से उसने लोगों को गाली देना बन्द कर दिया।

शालीनता की शिक्षा में ही हृदय-परिवर्तन का बल है।

प्रसन्नता जीवनी खुराक है। इसलिए दर्पण को बार-बार देख कर अपनी मुख मुद्रा को हँसमुख एवं प्रसन्नता भरी बनाये रहने का अभ्यास करते रहना चाहिए। कुछ समय के प्रयत्न से वह एक अच्छी आदत के रूप में स्वभाव का अंग बन जाता है। होठों पर खिलती मुसकान व्यक्तित्व की प्रखरता में चार चाँद लगा देती है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118