स्थूल प्रत्यक्ष होने के कारण इन्द्रिय-ज्ञान एवं यंत्र उपकरणों की सहायता से देखा जा सकता है। उसका नाम रूप भी होता है तथा विस्तार मूल्य भी। इतने पर भी उसका स्तर सीमित और क्षमता स्वल्प होती है। इस पर भी लोग उसका प्रत्यक्ष परिचय पाते हैं और हानि लाभ का शोक हर्ष अनुभव करते हैं।
सूक्ष्म की प्रकृति भिन्न है वह इन्द्रिय द्वारा बोधगम्य नहीं-प्राण की तरह। शरीर प्रत्यक्ष दीखता है पर प्राण की नाप-तौल-ऊंचाई, चौड़ाई, लम्बाई नापना कठिन है। किन्तु सभी जानते हैं शरीर की बुद्धि शक्ति आदि का आधार भूत कारण प्राण ही है। प्राण निकल जाने पर शरीर का मूल्य कानी कौड़ी भी नहीं रह जाता है।
पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति अदृश्य है। पर उसी के सहारे वह सौरमंडल में अपना स्थान बनाये हुए हैं। उसके अभाव में वह तिनके या पत्ते की तरह छितराकर कहीं से कहीं चली जाती है।
मनुष्य पशु वर्ग का प्राणी है। पर उसकी सूक्ष्म क्षमता का कोई आर-पार नहीं। महामानव ऋषि देवता जैसी प्रतिभाएं और किसी कारण नहीं मात्र अपनी सूक्ष्म शरीर की विशेषताओं के कारण ही कुछ से कुछ बन जाते हैं। गाँधी, बुद्ध जैसों की शारीरिक विशेषताएं नहीं उनका आन्तरिक वर्चस्व ही ऐसा था जिससे वे अपने समय का काया कल्प कर सकने में समर्थ हुए।
प्रकृति का सूक्ष्म शरीर अदृश्य है। ताप, ध्वनि, प्रकाश, चुम्बक आदि की किरणें जब किसी से टकराती हैं तब अपने अस्तित्व का बोध कराती हैं। अति शक्तिशाली मानी जाने वाली लेजर किरणें अदृश्य है। परमाणु की विखंडित इकाइयाँ अदृश्य होने पर भी अनन्त शक्ति की भाण्डागार है।
मनुष्य स्थूल स्थिति में हाड़ माँस का पुतला है। किन्तु जब वह परिष्कृत सूक्ष्म के क्षेत्र में प्रवेश करता है तब उसे देवात्मा कहते हैं। उसकी सामर्थ्य लगभग ईश्वर के समान होती हैं।