गायत्री नगर भावी विश्व निर्माण की एक छोटी किन्तु शानदार योजना है। अपने ही पुरुषार्थ से अपनी उचित आवश्यकताएँ पूरी करने, वर्तमान को हँसता-हँसाता बनाने और उज्ज्वल भविष्य की फुलवारी खिलाने के सारे बीज उसमें मौजूद हैं। हर समझदार ऐसी आजीविका चाहता है जिसमें चोरी बेईमानी न करनी पड़े। साथ ही ऐसा काम बन पड़े जिससे देश, धर्म, समाज, संस्कृति को आत्म-सन्तोष और लोक-सम्मान प्रदान करने वाली सेवा साधना भी निभ सके। इन तथ्यों को मिलाकर यह योजना बनी है।
जन-जागरण के गायन, वादन, प्रवचन आदि की झंकार गाँव-गाँव पहुंचनी चाहिए। गायत्री नगर के निवासियों में से जिनकी योग्यता इस प्रकार विकसित हो सकेगी उन्हें आठ महीने जीप गाड़ियों में प्रचार कार्य हेतु बाहर रहना पड़ेगा। चार महीने यहाँ रहेंगे। जिनमें साहित्यिक अभिरुचि होगी, उन्हें प्रेस, टाइपराइटर शिक्षण, साहित्य सृजन सम्बन्धी कार्यों में लगा दिया जायेगा। जिनमें अभिनय के तत्व होंगे, उन्हें वीडियो में स्थान दिया जायेगा। यह वे प्रचार कार्य हैं जिनमें संलग्न होना आमन्त्रित प्रतिभाओं के लिए अनिवार्य है।
समाजसेवियों की, अध्यापनकर्ताओं की, साहित्य सृजन में रुचि लेने वालों की शिक्षा तद्नुरूप ही होगी, पर साथ ही यह भी ध्यान रखा जायेगा कि यह लाभ नौकरी के लिए तो नहीं किया जा रहा है। हमें ऐसे लोकसेवी बसाने हैं जो राष्ट्र-निर्माण के कार्य में लगें और औसत भारतीय के गुजारे पर सन्तोष करें।
नगर की आर्थिक पूर्ति के लिए मुख्य योजना दयालबाग आगरा जैसी है जिससे वहाँ के निवासी, उनके बच्चे बड़ी संख्या में वहीं रहते हुए उद्योग-धंधों से ही अपनी आजीविका चला लेते हैं। यह प्रक्रिया आरम्भ कर दी गयी है।
जिसे उच्चस्तरीय मन को लुभाने वाले उज्ज्वल भविष्य का निर्धारण होने के साथ-साथ प्रेम और सहयोग से भरे वातावरण में भर पेट सम्मान के साथ साफ-सुथरे कपड़े पहनने ओर भोजन पाने का अवसर हो, वहाँ कौन न रहना चाहेगा। हमारा प्रत्यक्ष तो नहीं, पर परोक्ष संरक्षण यहाँ हमेशा उपलब्ध होते रहने के कारण इस योजना से लाभान्वित होने वाला अपने भाग्य को सराहता ही रहेगा।
फिर यह अपील क्यों छपी? इसका एक कारण है कि सुसंस्कारी, सुव्यवस्थित परिवार बस सकें तो आगंतुकों, दर्शकों को उत्साह मिलेगा और वे भी अपने-अपने क्षेत्रों में ऐसा ही निर्माण आरम्भ कर देंगे। आरम्भ में ही यदि कूड़ा-करकट भर गया तो संख्या पूरी हो जाने पर भी वातावरण न बन सकेगा। जिन आदर्शों के स्वप्न देखे गये हैं, उनकी पूर्ति यदि हो सकी तो अभी का एक विद्यालय अनेकों गुना विकसित होकर रहेगा।
हमारी इच्छा है कि इस अपील का आलोक उन तक पहुँचे जो शरीर से श्रमशील, मन से बुद्धिमान और चरित्र से प्रखर-पवित्र हैं यह बन पड़ा तो योजना आगे चलकर ऐसी शानदार सिद्ध होगी जिसे देखकर किसी को भी हमारे अदृश्य हो जाने का अभाव खटकेगा नहीं।