राहगीर को काशी जाना था (kahani)

July 1984

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राहगीर को काशी जाना था। सो रास्ता चलने समय उसकी दृष्टि मील के पत्थर पर पड़ी, काशी की दूरी और दिशा का संकेत उस पर खुदा था।

राहगीर रुक कर वहीं बैठ गया। अंकन गलत नहीं हो सकता। प्रामाणिक लोगों ने लिखा है। काशी आ गई अब आने जाने की जरूरत क्या रही?

कोई समझदार उधर से निकला ओर पत्थर के पास आसन जमाकर बैठने का कारण जाना तो कहा- “पत्थर पर संकेत भर है- काशी पहुँचना है तो पैरों से चलकर दूरी पार करनी होगी।”

भोले व्यक्ति ने अपनी भूल मानी और बिस्तर समेट कर चल पड़ा। बात समझदारी की समझाया जाना कठिन है। वे शास्त्र को पढ़ते और सुनते रहते हैं और सोचते रहते हैं कि इतने भर से धर्म धारण का- आत्म-कल्याण का उद्देश्य पूरा हो जाएगा।


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