परिवर्तन एक समय साध्य प्रक्रिया

July 1984

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भगवान अनेक दैवी घटकों का समुच्चय है। समुद्र अनेक लहरों से मिलकर बनता है। दैत्य भी एक नहीं वरन् एक समूह होता है। यही बात दैव तत्व के सम्बन्ध में भी है। अनाचार की इस बेला में दैवी शक्तियों का एक समूचा गुच्छक कार्यक्षेत्र में उतर रहा है। उस समुदाय में एक इकाई हम भी हैं। किनका कितना परिचय लोगों को मिला। किनका न मिला इसका कोई महत्व नहीं। महत्व इतना ही है कि विनाश को दैत्य ही सब कुछ नहीं हैं। उससे भी बलिष्ठ देवत्व है, जो समय रहते मैदान में उतरता है और बिगड़ी को बनाकर रहता है। यह समय-समय पर भूतकाल में भी होता रहा है। यही अब भी होने जा रहा है। महान परिवर्तन के लिए देव शक्तियों की एक समूची शृंखला कार्यक्षेत्र में उतर रही है। इसकी गतिविधियों का अनुभव हम सब अगले ही दिनों करेंगे।

भले और बुरे कर्मों के प्रतिफल सभी जानते हैं। बीज बोने और उसके फलित होने में समय लगता है। मनुष्य की भली-बुरी कृतियाँ भी समय लेती हैं। इस बीच सर्वसाधारण को यह शिक्षा भी मिल जाती है कि क्या करने के क्या परिणाम होने चाहिए। यह शिक्षण मनुष्य के बड़े काम आता है। यदि अनायास ही सब काम निपट जाया करें, क्रियाओं की परिणति को गम्भीरतापूर्वक अनुभव करने का अवसर न मिले तो फिर यह संसार अनुभव शून्य होकर ही रह जाएगा।

वर्तमान विपन्नताएं चरम सीमा तक जा पहुँची हैं। मनुष्य अपनी भूल अनुभव करता है। तब महाविनाश को रोकने में दैवी शक्तियाँ बाधित होती हैं। इससे पहले ही सब कुछ सुधार दिया गया होता तो मनुष्य को वह सब सीखने के लिए न मिलता जो पिछले दिनों मिल चुका है या अगले दिनों मिलने वाला है। समय रहते दैवी शक्तियाँ बचाव का काम हाथ में ले रही हैं और हम सब देख ही रहे हैं।

हर काम का एक समय होता है। निर्धारित समय पूरा होने पर काम की उपयोगिता भी है और महत्ता भी। समय से पहले ही काम कर दिया जाय तो हो तो सकता है पर उसकी खूबसूरती चली जाती है। बच्चा एक दिन तो बड़ा होगा ही, बड़ा होने पर उसका विवाह भी होगा। इसलिए जो बच्चा छोटा है उसके विवाह की चर्चा करने में हर्ज नहीं, पर वह कार्य भी यदि अभी कर दिया जाय तो इसे अनुपयुक्त माना जायेगा और बाल विवाह कह कर उसकी निन्दा की जायेगी।

गर्भ में बच्चा नौ महीने तक पककर परिपक्व होता है। कोई उसे एक दो महीने में ही निकालने की कोशिश करे तो उसमें हानि ही हानि है। समय तक उसे पकने देना ही चाहिए। यही बात फसल पकने के सम्बन्ध में भी है। हथेली पर सरसों केवल बाजीगर जमाता है। इतने पर भी उससे तेल कहीं निकलता है। ये सब कपोल कल्पनाएं मिथ्या हैं।

कहा जा सकता है कि यदि दैवी शक्तियाँ रोकथाम करने में समर्थ हैं, तो समय रहते वह सब क्यों नहीं करती। इतनी हैरानी उत्पन्न होने के बाद क्यों चेतती हैं? इसके उत्तर में यही कहा जा सकता है कि प्रत्येक घटनाक्रम के पीछे मनुष्य को सीखने लायक बहुत कुछ होता है। किस मार्ग पर चलने का क्या परिणाम हो सकता है इसे देखने अनुभव करने से भी मनुष्य बहुत कुछ सीखता है। अस्तु दैवी शक्तियों का हस्तक्षेप तभी चलता है जब जन सामान्य की अपनी क्षमताएं चूक जाती हैं।

आशा यही की जाती है कि जब मनुष्य बिगाड़ कर सकता है, तो उसी को बनाना या सुधारना भी चाहिए। बनाने, सुधारने के उपाय पिछले दिनों मनुष्य करता रहा है। इन दिनों भी कर रहा है, पर वे इस स्तर के नहीं जितने के होने चाहिए। ऐसी दशा में जब स्थिति हर दृष्टि से बेकाबू हो जाती है तभी भगवान हस्तक्षेप करते हैं। अन्यथा यही आशा करते हैं कि बिगाड़ने वाले सुधारें भी। सुधारने की प्रक्रिया इन दिनों परोक्ष जगत में चल रही है। समय आने पर सामान्यजन उसका प्रत्यक्ष रूप भी देखेंगे।


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