शांतिकुंज में दो महत्वपूर्ण सत्रों की श्रृंखला

September 1979

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शक्ति पीठों के कार्यकर्ताओं की ट्रेनिंग-

जहां गायत्री शक्ति पीठें बन रही हैं, वहां निर्माण कार्य के साथ-साथ स्थायी कार्यकर्ताओं का प्रबंध करना भी आवश्यक होगा। इनकी खोज, नियुक्ति और ट्रेनिंग इन्हीं दिनों करने की आवश्यकता है। यह कार्य भी निर्माण कार्य का आवश्यक अंग समझा जाय।

शक्ति पीठों के इर्द-गिर्द की तीस-तीस मील परिधि तक उनका कार्यक्षेत्र होगा। इसका नक्शा इन्हीं दिनों बनाया जाय और उनके गांव तथा रास्ते अंकित किये जांय। इसकी एक प्रति शक्ति पीठ के दफ्तर में रहे। दूसरी हरिद्वार, तीसरी मथुरा भेजी जाय। इस कार्यक्षेत्र के विचारवान एवं भावनाशील लोगों से संपर्क स्थापित करने का प्रयास भी निर्माण कार्य के साथ-साथ ही चल पड़ना चाहिए।

कार्यक्षेत्र में शक्ति पीठ की स्थापना का उद्देश्य तथा प्रयास का परिचय जन-जन का बताया जाना चाहिए। इसके लिए महापुरश्चरण योजना के अंतर्गत वहां छोटे-छोटे यज्ञ आयोजन करने की श्रृंखला बनानी पड़ेगी। इन आयोजनों द्वारा ही शक्ति पीठों के लिए 24 लाख गायत्री मंत्र लेखन संग्रह हो सकेगा। प्राण प्रतिष्ठा के समय 25 कुंडी यज्ञ होंगे। उनमें नैष्ठिक उपासक ही आहुति देंगे। इन्हें भी इन यज्ञ आयोजनों के द्वारा ही उत्पन्न तथा उत्साहित किया जा सकेगा। संपर्क बढ़ाने तथा उत्साह उभरने से शक्तिपीठों को अपने कार्यक्षेत्र में अधिक सहयोग, समर्थन भी मिलेगा। इन कार्यों के लिए कुशल कार्यकर्ताओं की आरंभ से ही आवश्यकता पड़ेगी।

हर शक्ति पीठ में पांच परिव्राजकों की आवश्यकता पड़ेगी। वे उसी कार्य क्षेत्र के होंगे। इसके लिए उपयुक्त व्यक्ति अभी से खोजे जाने चाहिए। निर्माण कार्य की देखभाल तथा कार्यक्षेत्र में दौड़-धूप के दुहरे कार्य में इन्हें अभी से लगाया जाना चाहिए। यह कार्यकर्ता नव-निर्मित शक्ति पीठ के कार्यक्षेत्र के हों तो अधिक उत्तम है। निश्चिंत मन से जो स्थायी रूप से कार्य करने की स्थिति में हों यह स्थान दिया जाय। उनकी निर्वाह व्यवस्था भी की जानी चाहिए।

इस प्रयोजन के लिए निश्चित किये गये कार्यकर्ताओं की एक-एक महीने के ट्रेनिंग का सिलसिला 1 नवंबर से शांतिकुंज में आरंभ हो रहा है। इनमें शक्ति पीठों द्वारा चुने गये और भेजे गये कार्यकर्ताओं को ही स्थान दिया जायेगा। शिक्षण एक समय में सीमित लोगों का ही हो सकता है अस्तु जिन्हें जिस महीने सम्मिलित होना ही वे अभी से स्थान सुरक्षित करालें।

ब्रह्मवर्चस् साधना-सत्र

ब्रह्मवर्चस् सत्र भारतीय महीनों में चलेंगे और एक महीने के होंगे। गायत्री पुरश्चरण अनिवार्य होगा। जो चाहेंगे पूर्ण चांद्रायण एवं सौम्य चान्द्रायण व्रत भी करेंगे। हर साधक की स्थिति और आवश्यकता के अनुरूप उसे विशेष साधनाएं भी बताई जायेंगी। पंचकोशों के अनावरण एवं कुंडलिनी जागरण की प्रक्रिया इसी साधना में सम्मिलित है। विशिष्ट साधनाओं के लिए शीत ऋतु सर्वोत्तम मानी गई है।

मार्गशीर्ष में सत्र 4 नवंबर से 3 दिसंबर तक- पौष 3 दिसंबर से 2 जनवरी तक का, माघ का 2 जनवरी से 1 फरवरी तक का- 1 फरवरी से 2 मार्च तक का होगा। यह सत्र नियमित रूप से चलते रहेंगे, पर अभी स्थान सुरक्षित इन्हीं चार सत्रों के लिए ही किये जा रहे हैं। जिन्हें जिस मास सम्मिलित होना हो आवेदन-पत्र भेजकर स्वीकृति प्राप्त कर लें।

वर्ष 42 सितम्बर 1979 वार्षिक चन्दा 12 अंक 9 दस वर्ष का चन्दा 100


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