पशु-पक्षी भी संवेदना शून्य नहीं

September 1979

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डा. हिलवर्ट सिग्लर एक प्रख्यात जीव विज्ञानी के रूप में जाते हैं। जीव-जन्तुओं के अध्ययन के लिए एक बार जंगल गये। पेड़-पौधों के प्राकृतिक सौंदर्य का अवलोकन करते हुए वे वन में घूम रहे थे कि एकाएक उनकी दृष्टि एकाएक उनकी दृष्टि एक मार्मिक दृश्य पर पड़ी। ‘जे’ नामक एक पक्षी एक दूसरे पक्षी की चोंच में दाना अपनी चोंच से दे रहा था। ध्यान से देखने पर उन्होंने पाया कि दूसरे पक्षी का जबड़ा टूटा हुआ था तथा उसके हाव-भाव से स्पष्ट था कि उसके जबड़े में तकलीफ है। वह दाने को अपनी चोंच से उठा पाने में असमर्थ लग रहा था। इस मार्मिक दृश्य से उनका हृदय उद्वेलित हो उठा।

वैज्ञानिकों की एक गोष्ठी में डा. सिग्लर ने उक्त घटना का उल्लेख करते हुए कहा, “मानवोचित गुणों दया, करुणा, सेवा, सहयोग के आधार पर ही मनुष्य को सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी कहा गया है। किन्तु अन्य प्राणी भी इन प्रवृत्तियों से रहित नहीं हैं। परमात्मा ने उन्हें भी सहयोग, सहानुभूति, सम्वेदना से युक्त कर रखा है। आज मनुष्य अपनी मूल प्रवृत्तियों से अलग भले ही हट गया हो किन्तु ये नगण्य प्राणी अपनी संवेदनशीलता से मनुष्य को चुनौती देते हैं।”

परमात्मा ने मनुष्य को अन्य प्राणियों की तुलना में अतिरिक्त क्षमताएँ, विशेषताएँ दीं। सोचने-विचारने के लिए बुद्धि दी कि वह अपने छोटे से परिवार ही के भरण-पोषण तक उलझ कर न रह जाए, मानव समूह से भी आगे बढ़कर प्राणि मात्र की समस्याओं को हल करे, उनकी देख-रेख एवं सहयोग करे। किन्तु देखा यह जा रहा है कि अन्य जीव-जन्तुओं को सहयोग करना तो दूर रहा वह अपने सजातीय मनुष्य तक अपनेपन का विस्तार न कर सका। व्यक्तिगत स्वार्थों की पूर्ति में लगी बुद्धि सम्वेदनाओं को रौंदती चली गई और मनुष्य अपनी गरिमा को खो बैठा।

सृष्टि के अन्य प्राणियों ने परमात्मा द्वारा प्रदान की गई क्षमता का भरपूर उपयोग किया। कभी-कभी तो इनकी करुणा, सहयोग एवं मैत्री की प्रवृत्ति को देखकर हैरत में पड़ जाना पड़ता है।

आस्ट्रेलिया के जंगलों में पाये जाने वाली चिंपेंजी को एक अमेरिकी पर्यटक ने एक मिठाई का डिब्बा दिया। डिब्बा को खोल कर खाने की बजाय वह लेकर जंगल की ओर चला। कौतूहल वश उक्त पर्यटक ने चिंपेंजी का पीछा किया। आगे बढ़ने पर देखा कि चिंपेंजी एक स्थान पर जाकर रुक गया तथा मुँह से विचित्र प्रकार की आवाज निकाली। फलस्वरूप सात आठ चिंपेंजी दौड़ते हुए चले आये। वे अलग-बगल की झाड़ियों में छिपे थे। सभी ने एकत्रित होकर मिठाई के डिब्बे को खोला तथा डिब्बे को जमीन पर उलट दिया। एक घेरे में बैठ कर सभी मिठाई को खाने लगे। किसी प्रकार का झगड़ा आदि उन्होंने नहीं किया। बिना किसी ईर्ष्या भाव के सबने मिठाई खायी।

जानवरों में इतनी एकता, सामूहिकता एवं सहयोग, करुणा, दया की भावना देखी जा सकती है तो मनुष्य को क्षमता, योग्यता तो और भी बड़ी-चढ़ी है। शक्ति, सामर्थ्य एवं बुद्धि जैसी विभूतियाँ मनुष्य के पास ऐसी हैं कि इनका सदुपयोग मानवीय गुणों के पोषण, अभिवर्धन एवं प्रसार के लिए कर सके तो मनुष्य ही नहीं अन्य प्राणियों के दुःख-दर्द निवारण का ठोस आधार बन सकता है।

मनुष्य की महत्ता का प्रतिपादन उसकी शक्ति, बुद्धि बल के आधार पर नहीं किया गया है वरन् उसकी भाव-संवेदनाओं करुणा, दया, सेवा, सहयोग जैसे श्रेष्ठ गुणों के आधार पर किया गया है। आवश्यकता इसकी है कि मनुष्य अपनी गरिमा समझे तथा उसके अनुरूप आचरण करे। सामान्य जीवों से भी इसकी प्रेरणा ली जा सकती है।


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