बात गुजरात के छोटे से गाँव की है उस दिन सुबह ही सुबह वहाँ के एक संभ्रांत सज्जन की, राह चलते अहमदाबाद की सड़क पर एक ग्रामीण से भेंट हुई। वह ग्रामीण अपने कन्धे पर लोहू लुहान कुत्ते को बिठाये धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा था। उन सज्जन पर न रहा गया। आखिर सहज भाव से पूछ ही बैठे-’क्यों पटेल! इस कुत्ते को कहाँ ले जा रहे हो।’
‘मेरे गाँव का यह आवारा कुत्ता है। किसी के घर में घुसकर कुछ नुकसान कर दिया होगा सो इसकी इतनी पिटाई हुई कि रीढ़ की एक हड्डी टूट गई और घाव हुआ सो अलग। आप देख ही रहे हैं कि घावों से खून छलक रहा है। गाँव में दो-चार लोगों ने बताया कि यदि शहर के मवेशी अस्पताल में इसका इलाज कराया जाये तो अच्छा हो सकता है।
दो-तीन मोटर वालों से भी मिन्नतें करता रहा, पर उन्होंने भी मोटर में जगह न दी। अतः पैदल ही कन्धे पर बिठाये, इसे यहाँ तक ले आया। यदि अच्छा हो गया तब तो ठीक हैं, अन्यथा भगवान की मर्जी।’ इस प्रकार पटेल ने सारी बात कह सुनाई।
वह सज्जन इलाज के लिए उस पटेल को दो-तीन रुपये भी देते रहे, पर उसने एक भी पैसा न लिया। वह घर से दो रुपये लेकर चला था। उसे बात करते काफी देर हो गई थी। कुत्ता भी कन्धे पर ही बैठा था। अतः नमस्कार किया और मवेशी अस्पताल की राह पूछकर चल दिया।
वे सज्जन उस पटेल को जाते हुए देखते रहे और तब तक खड़े रहे जब तक कि वह उनकी आँखों से ओझल न हो गया। कभी उन्हें उस ग्रामीण में भगवान बुद्ध की करुणा दिखाई देती और उस समय का दृश्य सामने घूमने लगता जब यज्ञ मण्डप में बलिदान के लिए आये मेमने की रक्षा उनके द्वारा की गई थी। थोड़ी ही देर में अब्राहमलिंकन का वह दृश्य दिखाई देने लगा जब उन्होंने दल-दल में फँसे एक सुअर को निकाला था और उन्हीं कपड़ों से धारा सभा के अधिवेशन में चले गये थे।
कहाँ बौद्ध धर्म के प्रचारक भगवान तथागत और कहाँ अमेरिका जैसे महान राष्ट्र के राष्ट्रपति पर, इनकी तुलना उस अशिक्षित ग्रामीण से की भी कैसे जा सकती थी। उन सज्जन को तो उस समय ऐसा अनुभव हो रहा था मानो करुणा ने ही मोतियों को एक सूत्र में पिरोदिया है।