नित्य सहते लहर का टकराव-ऐसे कूल हैं। लोकहित की वेदिका के हम समर्पित फूल हैं॥ हम समर्पित फूल हैं॥
फूल जैसी जिंदगी सब लोग जीना चाहते हैं। जहर तो शिव के लिये-सब अमृत पीना चाहते हैं॥
किन्तु जग हित के लिये व्यक्तित्व वह भी है जरूरी। जो करें सबकी भलाई की जरूरत आज पूरी॥
बाड़ बन-हर फूल की रक्षा करे-वह शूल हैं। लोकहित की वेदिका के हम समर्पित फूल हैं॥
हर भटकती बेसहारा जिंदगी की हर नमी को। धूप, पानी से बचाने के लिये हर आदमी का॥
चाहिए ऐसे भवन, जिसमें छिपा ले आदमी सिर! तुम बनो शोभा की- किन्तु हम क्या हैं कहें फिर॥
जोड़ने हर ईंट को-गारा बनी-वह धूल हैं। लोकहित की वेदिका के हम समर्पित फूल हैं॥
कामना है हर कली को प्राणपूर्ण विकास दे हम। हर सुमन को स्नेह-सौरभ, भावपूर्ण सुवास दे हम॥
मुस्कराये पात नव, हर डाल झूमे मस्त होकर। विश्व-उपवन लहलहाये, हम हँसे निज सत्व खोकर॥
जो हरा रखती चमन को, भूमिगत वह मूल हैं। लोक हित की वेदिका के हम समर्पित फूल हैं॥
हम समर्पित फूल हैं॥
-माया वर्मा
*समाप्त*