स्काईलैब तो मर गया पर प्रेत शान्ति अभी भी शेष है

September 1979

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धरती और समुद्र के चप्पे-चप्पे पर कब्जा कर लेने के बाद अब मनुष्य की लिप्सा आकाश पर आधिपत्य जमाने की है। उपार्जन तो इस खोखले बेपेंदी के लोटे से क्या होना है, पर जासूसी करने तथा लड़ाई का मोर्चा खड़ा करने के लिए यह क्षेत्र अधिक सुविधाजनक समझा जा रहा है। अस्तु लोभ संवरण भी नहीं होता। अन्तरिक्षयानों में जितनी धन राशि व्यय होती है उसे सुनने पर कानों को यह विश्वास नहीं होता कि इतना वैभव धरती पर लगाने से तो उसकी समृद्धि में चार चाँद लग सकते थे फिर असीम को मापने की विडम्बना में इतना अपव्यय आखिर किया ही क्यों जा रहा है?

आकाश की स्थिति जाँचना बुरी बात नहीं है, पर उससे पहले धरती की उपलब्धियों को अधिक बढ़ाने और उनका सही विवरण करके वर्तमान जन समुदाय को दरिद्रता, रुग्णता और अशिक्षा जैसी विपत्तियों से बचाना भी तो एक काम है। धरती को श्मशान बनाने वाले अन्तरिक्ष का दोहन करने से पूर्व यदि इस प्रकार सोच सकने में समर्थ होते तो यह परिस्थितियाँ ही सामने न आने पाती जिनके लिए आज जन-जन को चिन्तित होना पड़ रहा हैं।

इन दिनों प्रायः चार हजार छोटे-बड़े अन्तरिक्ष यान आकाश में परिभ्रमण कर रहे हैं। अगले दिनों इनका विस्तार जिस क्रम से किया जाना है योजना के अनुसार सन् 2000 तक इसमें से अत्यधिक वृद्धि होने से एक नई कठिनाई यह उत्पन्न हो जायगी कि पृथ्वी के इर्द-गिर्द घूमने के लिए कोई उपयुक्त परिक्रमा पथ तक शेष नहीं रह जायगा। इन उपग्रहों की औसत आयु 10 वर्ष मानी गई है। यन्त्र का कार्य काल असीम नहीं होता उनके पुर्जे घिसते हैं फलतः उनकी कार्य शक्ति भी समाप्त हो जाती है। उपग्रह प्रेषण का सिलसिला सन् 71 से आरम्भ हुआ है। अब उनका मरणकाल आरम्भ होने ही वाला है इन लाशों की विधिवत् अन्त्येष्टि न होने से उनके अंजर-पंजर अन्तरिक्ष को महामारी के दिनों वीभत्स बने हुए श्मशान से भी बुरे हो जायेंगे। अन्तरिक्ष शाटल बनने और मलवा धरती पर लाने की योजना पूरी होने में तो अभी बहुत देर है।

स्काईलैब अब तक छोड़े गये अन्तरिक्ष यानों में सबसे बड़ा था। यह प्रति 63 मिनट पर पृथ्वी की एक परिक्रमा करता था? पृथ्वी से 836 कि.मी. ऊँचाई पर उसका परिक्रमा पथ था। अनुसन्धान कार्य के लिए सन् 1673 में तीन वैज्ञानिकों के दल ने इसमें बैठकर यात्रा की। प्रथम दल 28 दिन, दूसरा 56 तथा तीसरा 84 दिन तक यान में अन्तरिक्ष के संदर्भ में शोध कार्य करता रहा। तीनों दलों ने सूर्य का 740 घण्टों में टैलिस्कोप द्वारा अवलोकन करके 17500 से भी अधिक चित्र खींचे। स्काईलैब द्वारा कुल मिलाकर 46 हजार से अधिक चित्र लिए गये। इन चित्रों की 64 किलोमीटर लम्बी जानकारी एवं आँकड़ा पट्टी तैयार हुई है। सूर्य की इलेक्ट्रानिक आकृतियाँ टेलीस्कोपिक चित्र एक्सरे अल्ट्रावायलेट और दृष्टिगोचर प्रकाश में बनाए गये।

स्काईलैब में अनुसन्धान कर्ता अपने साथ दो मकड़ियाँ एवं हजार ‘जिप्सी’ पतंगे ले गये थे। उद्देश्य यह था कि मकड़ियाँ क्या अन्तरिक्ष में भी जाला बना सकती हैं। आरम्भ में तो वे असफल रही, किन्तु कुछ समय बाद जाला बनाने में सफल हो गई। पतंगों ने अन्तरिक्ष में भी उसी प्रकार अण्डा दिया जैसे पृथ्वी पर?

बताया गया है कि सूर्य की लपटें अत्यधिक बढ़ जाने से उस यान पर प्रभाव पड़ा और उसके यन्त्र गड़बड़ा गये। ईंधन की भी कमी पड़ी। फलतः वह नीचे की ओर खिसकने लगा और जैसे-जैसे नीचे उतरता आया वैसे ही वैसे अनियन्त्रित होता गया।

गिरते-मरते समय तक उसने अपनी विचित्र गतिविधियों से नियन्त्रण कर्ताओं को बुरी तरह छकाया वे कम्प्यूटर, उसकी गतिविधियों के सम्बन्ध में जो आशा करते थे उससे विपरीत ही घटित होता रहा। अन्तिम क्षणों उसने सीधी चाल छोड़ दी और लहराता, उछलता और थरथराता हुआ चलने लगा। पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश करते समय न जाने उसे किसी बिच्छू ने काटा कि अचानक साठ मील ऊँचा उछल गया और फिर औंधे मुँह उसी दहलीज पर आ गिरा। घुसने को छेद तो बना लिया, पर वायु के घर्षण से जिस तरह अन्य उल्काएँ जल जाती हैं वैसा उसे सहन नहीं करना पड़ा। अनुमान था कि बहुत ऊपर ही वह जलने लगेगा और उसके छोटे-छोटे टुकड़े बड़े क्षेत्र में छितराते दिखाई देंगे, पर वैसा तो नहीं हुआ। पृथ्वी से टकराने में कुछ ही क्षण शेष रह गये तब कहीं उसके दो टुकड़े हुए और वे टुकड़े धरती के अति निकट आने पर ही छोटे टुकड़ों में विभाजित हुए। ‘नासा’ के सूचना केन्द्र यही कहते रहे, स्काईलैब के सम्बन्ध में लगाये गये अनुमानों में से अधिकाँश गलत साबित हो रहे हैं। वह कब गिरेगा, कहाँ गिरेगा, इसकी पूर्व सूचना दे सकना सम्भव नहीं रहा। कुछ मिनट पहले ही वस्तुस्थिति बताई जा सकेगी।

स्काईलैब के अन्तिम क्षण बड़े रोमाँचकारी रहे। धरती से जब वह 63 मील ऊपर रह गया तो अफ्रीका के ऊपर से गुजरते समय 11 जुलाई की रात को 3 बजकर कुछ मिनट पर उसके ‘सोलर पैनल’ उखड़े। फिर भी गिरे नहीं, उसी में अटके रहे। उसका कुछ भाग आस्ट्रेलिया के दक्षिण, पच्छिम और कुछ हिन्द महासागर कुछ अटलाँटिक में जा गिरा। जब वह धरती से कुल 22 मील दूर था तो वैज्ञानिकों ने फिर उस पर एक घूँसा मारा। उसका इतना ही प्रभाव हुआ कि अमरीका के असोसियन द्वीप पर गिरने की उसकी सम्भावना टल गई और उपरोक्त स्थानों पर उसके टुकड़े 10 जुलाई की रात्रि को प्रायः दस बजे जा गिरे। यह यान छः वर्ष के लगभग जिया इस अवधि में उसने पृथ्वी की 35000 परिक्रमाएँ करने का पुण्य अर्जित करने के लिए 416 किलोमीटर की गति से अनवरत परिभ्रमण किया।

यूनाइटेडस्टेट्स, की सूचना के अनुसार पृथ्वी की कक्षा में पहुँचते ही स्काईलैब विखण्डित हो गया। बीस से लेकर तीस टन तक के टुकड़े पृथ्वी पर गिरने के पूर्व अग्नि गोलों के रूप में घूमते देखे गये। ‘रे स्मिथ’ नामक एक आस्ट्रेलियन अधिकारी का कहना है कि स्काईलैब के टुकड़ों के गिरत समय वर्षा एवं आँधी से मिश्रित ध्वनि के समान आवाज सुनायी पड़ी रेंकर रे सेलर’ नामक वैलोडोनिया के एक व्यक्ति का कहना है कि यह एक अविश्वसनीय दृश्य था। वैलोडोनिया के दस मील दूर स्थित छुट-पुट बस्तियों के चारों ओर ऐसा लगा कि एक साथ सैंकड़ों तीव्र प्रकाश से युक्त टुकड़े एक साथ नीचे आ रहे हों। पहले तो प्रकाश का रंग सफेद था किन्तु पृथ्वी के निकट आने पर मन्द लाल में परिवर्तित हो गया। लगभग एक मिनट तक शब्द तरंगी भयंकर गर्जन सुनायी पड़ा। इस तीव्र ध्वनि को सुनकर अस्तबल में बँधे घोड़े बन्धन तोड़कर पागलों की भाँति भागने लगे। कुत्ते भौंकने लगे देखने वालों का कहना है कि जानवरों के स्वभाव में इस प्रकार का परिवर्तन पहले कभी नहीं देखा गया। पृथ्वी से टकराने के उपरान्त समीपवर्ती क्षेत्रों से लगभग आधे घण्टे तक विचित्र प्रकार की दुर्गन्ध आती रही। ‘सेलर’ की पत्नी एलिजावेथ ने पत्रकारों को बताया कि प्रचण्ड गर्जन के कारण हृदय काँप उठा। उन्होंने कहा कि मेघ गर्जन से तीन गुनी तीव्र आवाज गिरते हुए टुकड़ों की थी। एक पत्रकार का कहना है कि मात्र 18 मिनट के विलम्ब के कारण स्काईलैब आस्ट्रेलिया में गिरा अन्यथा वह अमेरिका में ही गिरता। कैप्टन विल एंडरसन ने जो ‘पर्थ’ नामक स्थान से 130 मील दूर मरीजों की देखभाल में लगे थे, कमरे की खिड़की से दूर तीव्र नीले प्रकाश से युक्त टुकड़ों को गिरते देखा। जो नीचे आते ही गुलाबी-लाल में परिवर्तित हो गया।

पर्थ के आपत्तिकालीन सुरक्षा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि मात्र 8 मिनट पूर्व उन्हें यह सूचना दी गई कि स्काईलैब वहाँ पृथ्वी से टकराने जा रहा है। उक्त अधिकारियों ने कहा कि इस आकस्मिक सूचना से ऐसा लगा जैसे कि हृदय की धड़कन रुक गई हो। निरीक्षण करने वाले “व्राडिया स्मिथ” नामक एक ‘पर्थ’ अधिकारी का कहना है कि आग से भरी ट्रेन के समान चारों ओर टुकड़े गिरने लगे जो सुनहरे पीले एवं गहरे लाल रंग के थे।

77 टन भारी महादानव 1.8 कि.मी. प्रतिदिन की गति से पृथ्वी की कक्षा में प्रविष्ट कर रहा था। नासा के उद्घोषकों ने यह सम्भावना व्यक्त की है कि 12 मंजिली इमारत जैसी ऊँची यह आकृति जो लगभग 822 फीट ऊँची तथा 30 मिलिट्री ट्रक के वजन के बराबर है, भयंकर क्षति पहुँचा सकती है। 82.2 फीट लम्बी एवं 22 फीट व्यास वाली स्काईलैब पृथ्वी कक्षा में पहुँचकर लगभग 500 टुकड़ों में बँट जायेगी इनमें कुछ टुकड़ों का भार एक टन से भी अधिक होगा। जो 6400 कि.मी. लम्बे और 160 कि.मी. चौड़े भाग को प्रभावित करेगा। एल्युमीनियम के बने 5000 पौण्ड भारी तथा 22 फीट व्यास वाले अनेकों टुकड़े पृथ्वी से टकरायेंगे। पर वे सभी घोषणाएँ आँशिक रूप से ही सत्य सिद्ध हुई।

स्काईलैब में 4000 पौण्ड भारी फिल्म वाल्ट लगी थी। 2600 पौण्ड के छः टाइटेनियम के आक्सीजन टैंक जुड़े थे। जिन्हें पृथ्वी की कक्षा में आते ही टूट कर अलग होना था। पर “नासा” के वैज्ञानिक सारे प्रयत्न करने के बावजूद उसके गिरने का समय और स्थान सुनिश्चित रूप से नहीं बता सके। वे इतना ही कह सके- अन्तिम 48 घण्टे अधिक खतरनाक सिद्ध हो सकते हैं। उस अवधि में भारत के घनी बस्ती के किसी क्षेत्र को तत्काल खाली कराना पड़ सकता हैं। एयर इंडिया की उड़ानें 2 दिन बन्द रखनी होगी। ऐसी सम्भावना व्यक्त की गई है कि स्काईलैब का 60 प्रतिशत मलवा पृथ्वी की कक्षा में पहुँचते ही जल जायेगा। 40 प्रतिशत लाल धातु के गोले जिनका वजन 2 से 200 कि.ग्रा. होंगे, पृथ्वी से टकरायेंगे। इनका तापक्रम 4000 से.ग्रे. होगा।

नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार प्रत्येक 150 व्यक्तियों में से 1 को चोट लगने की सम्भावना है। इन्दौर के होल्कर विश्वविद्यालय के अन्तरिक्ष विज्ञान के प्रो.डा. आर.यस. श्रीवास्तव का कहना है कि महाराष्ट्र गुजरात, मध्यप्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, दक्षिण बिहार, उड़ीसा प॰ बंगाल में गिरने की अधिक सम्भावना है। उनका कथन था कि उसे गिरता हुआ देखने में अन्धता होने का भय है। उससे उत्पन्न विषैले पदार्थों से कैन्सर रक्त स्राव, रक्ताल्पता, आँखों में जलन, सिर दर्द जैसी बीमारियों के होने का खतरा है। आनुवांशिकता पर भी गहरा प्रभाव पड़ सकता है।

अमेरिकन सरकार ने संसार की प्रमुख सरकारों को खतरे की सम्भावना से अवगत रखा और सुरक्षा उपाय क्या हो सकते हैं उसकी जानकारी दी। क्षतिग्रस्तों की सहायता करने का आश्वासन भी दिया गया। सम्भावना भारत पर भी गिरने की थी इसलिए अपने देश की सरकार ने अग्निशामक दलों को तैयार रहने का प्रबन्ध किया। हवाई उड़ाने रोकी तथा दूसरे सुरक्षा प्रबन्ध किये।

उल्काओं के इतिहास में यह मनुष्य कृत खगोल पिण्ड धरती पर गिरने का प्रथम अवसर था इसलिए उसके टुकड़े संग्रह करने की होड़ बढ़ी और उसके लिए कई प्रकार के इनाम घोषित किये गये।

स्काईलैब के टुकड़े खोज निकालने वाली के लिए कई संस्थानों ने लम्बे चौड़े इनामों की घोषणा की। ओहियो रेडियो स्टेशन ने घोषणा की कि स्थानीय क्षेत्र में गिरा स्काईलैब खण्ड जो सर्वप्रथम लायेगा उसे 98 हजार डालर इनाम मिलेगा। सान फ्रांसिस्को के ‘इक्जामिनर’ पत्र ने ऐसा टुकड़ा लाने वाले को 10 हजार डालर का पुरस्कार घोषित किया। अमेरिका के ‘क्रानिकल’ अखबार ने स्काईलैब के क्षतिग्रस्तों को दो लाख डालर देने घोषणा की। डीक एण्ड कम्पनी ने स्काईलैब के टुकड़े सोने के बराबर मोल में खरीदने का विज्ञापन छपाया।

स्थिर जलाशय में भारी पत्थर जोर से फेंका जाय तो पानी उछलेगा और असाधारण स्तर की लहरें उत्पन्न होंगी और समूचे जलाशय में फैलती दिखाई पड़ेगी। उल्काओं के उपद्रव इसी प्रकार के होते है। पृथ्वी के चारों ओर वायु मंडल तथा अन्याय पदार्थों के कई आवरण चढ़े हैं। सूर्य की प्रचण्ड किरणों तथा अन्तरिक्ष में विद्यमान भयंकर शक्ति प्रवाहों से यह कवच ही सुरक्षा व्यवस्था बनाता है। उल्काएँ इस छत्र को तोड़ती हुई जब भीतर घुसती हैं तो पानी में पत्थर पटकने की तरह यहाँ के सुव्यवस्थित क्रम में भारी व्यतिरेक उत्पन्न करती है। इतना ही नहीं अपने साथ ऐसी छूत भी समेटें होती है। जो धरती निवासियों के लिए इस या उस प्रकार की विपत्ति उत्पन्न करें। कवच में प्रवेश करते समय जो छिद्र होता है। उसमें होकर कई प्रकार की ब्रह्माण्डीय किरणें तथा वस्तुएँ भी प्रवेश कर सकती हैं और उस विजातीय द्रव का आगमन पृथ्वी वासियों के लिए कई प्रकार का संकट उत्पन्न कर सकता है। स्काईलैब जिस समुद्री इलाके में गिरा है उसे जल पीने के लिए कुछ समय तक निशिद्ध कर दिया गया है ताकि वहाँ कोई विपत्ति उतरी हो तो उसकी जाँच पड़ताल की जा सकें।

भारतीय खगोल विद्या के अनुसार ‘उल्कापातों को अशुभ माना गया है और उसके होने का प्रतिफल पृथ्वी के वातावरण और प्राणि समुदाय के लिए हानिकारक कहाँ गया है। जिस वर्ष अधिक उल्कापात हों उस वर्ष प्रकृति सन्तुलन गड़बड़ाने और कई प्रकार के संकट आने की फल श्रुति बताई जाती है। कारण स्पष्ट है उल्काएँ असंतुलन और संकट ही उत्पन्न कर सकती हैं।

स्काईलैब को जन संकुल क्षेत्र से दूर गिराने और उसके द्वारा होने वाली क्षति को हलका करने के लिए वैज्ञानिकों के अपने ढंग से प्रयत्न किये हैं। प्रसन्नता की बात है कि इस क्षेत्र में आध्यात्म उपचार भी हुए यह इस बात का चिन्ह है कि स्थूल को प्रभावित करने वाले विज्ञान की तरह सूक्ष्म जगत को प्रभावित करने वाले ‘अध्यात्म’ भी सामयिक समस्याओं के सम्बन्ध में जागरूक है। यह उज्ज्वल भविष्य का शुभ चिन्ह है। गायत्री परिवार के लाखों परिजनों ने जुलाई मास में जो निर्धारित साधना की उसे सूक्ष्म संरक्षण की दृष्टि से अत्यन्त शक्तिशाली एवं अत्यन्त महत्वपूर्ण ही माना जायगा। इसी से मिलता-जुलता एक साधनाक्रम अमेरिका में भी उन दिनों पाया गया था। बुलियन नगर के मनःशक्ति संस्थान के अधिष्ठाता सी. क्रिल्हन ने अपने प्रायः एक लाख अनुयायियों सहित ऐसी ही सुरक्षा साधना सम्पन्न की थी।

विघातक शक्तियों और परिस्थितियों के दुष्परिणाम सर्वविदित हैं। विघातक शक्तियाँ यदि जागरूक हो सकें और सुरक्षा एवं सृजन प्रयत्नों में जुट सकें तो प्रवाह ही उलट सकता है और आतंक का स्थान उल्लास ले सकता है। स्काईलैब पतन ने विज्ञान को झकझोरा और नये सिरे से विचार करने के लिए विवश किया है। उसने अध्यात्म क्षेत्र में भी संरक्षण एवं सृजन के लिए बड़े पग उठाने का उत्साह उत्पन्न किया है। इसे बुराई के पीछे विद्यमान भलाई की शक्ति का दर्शन कह सकते हैं।


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