कोई नहीं भी जानते (kahani)

September 1979

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

सृष्टि का निर्माण कार्य पूर्ण हो गया। मनुष्य, पशु, पक्षी, कीट, पतंग, देव, दानव सभी ने अपने कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों को समझा और अपने-अपने क्षेत्र में काम करने के लिए चल दिये।

अन्त के लिए शैतान बच गया। उसने भगवान से प्रार्थना की कि मुझे भी कोई काम और दीजिए। भगवान चिन्ता में पड़ गये। यदि शैतान को शरीर मिल गया तो फिर इसके द्वारा उत्पन्न हुए उपद्रवों का पारावार न रहेगा। इसलिए इसे शरीर ता नहीं दिया जा सकता, पर कुछ न कुछ काम तो बताना ही पड़ेगा।

बहुत सोच कर भगवान ने शैतान से कहा-तुम्हें क्रोध का रूप दिया गया है। इस संसार में जिन्हें तुम नष्ट होने वाला समझो, उनके शिर पर चढ़ जाया करना।

तब से लेकर अब तक शैतान मारा-मारा फिरता है। उसे कोई निश्चित स्थान और काम तो नहीं मिला। पर जिसकी दुर्गति होने वाली भवितव्यता उसे दीखती है उसी के सिर पर क्रोध बनकर चढ़ जाता है।

यह तथ्य सर्व विदित है कि जिसे क्रोध आता है उसका सर्वनाश होकर रहता है। शैतान के कानून को कोई तो जानते हैं और कोई नहीं भी जानते।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118