कल्पना और सत्य मात्र संयोग या तथ्य

September 1979

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सन् 1898 में एक अमेरिकी लेखक रावर्टसन का उपन्यास ‘द रैंक आफ टाइरन’ प्रकाशित हुआ था। उपन्यास की कथावस्तु टाइरन नाम विशाल जलयान से सम्बन्धित थी। यह जहाज 75 हजार टन का विशाल यात्री जलयान था। टाइरन की लम्बाई 882 फीट की थी और इसमें तीन प्रोपेलर थे। जहाज में सवार यात्रियों की संख्या लगभग तीन हजार यात्री थे और लेखक ने पूरे उपन्यास में काल्पनिक टाइरैन को कभी न डूबने वाला जहाज बताया लेकिन एक वर्ष अप्रैल के महीने में जहाज की पेंदी में बर्फ की चट्टान से टकराने के कारण एक छेद हो जाता है और जहाज में पानी भर जाता है। फलतः जहाज पानी में डूब जाता है। लेखक ने काल्पनिक जहाज और उसमें सवार यात्रियों में से सबके डूब जाने का कारण नावों का अभाव बताया था।

प्रकाशित होते ही उपन्यास की हजारों प्रतियाँ हाथों-हाथ बिक गयीं। रोमाँचकारी उपन्यासों की लोकप्रियता प्रायः वर्ष दो वर्ष तक ही रहती है, परन्तु 14 वर्ष बाद उस उपन्यास की माँग एकदम अब तक के सभी उपन्यासों की लोकप्रियता का रिकार्ड तोड़ने लगी। कारण था कि उपन्यास में वर्णित काल्पनिक जहाज, काल्पनिक जहाज, काल्पनिक दुर्घटना और काल्पनिक यात्रियों की काल्पनिक जल समाधि शब्दशः सत्य सिद्ध हो उठी थी।

लोगों ने सन् 1912 की अप्रैल 15-16 के समाचार पत्रों में पढ़ा 14 अप्रैल की रात्रि को 11 बजकर 40 मिनट पर एक यात्री जहाज एस. एस. टाइरैनकि इंग्लैण्ड से अमेरिका जाते हुए उत्तर अटलाँटिक में बर्फ की चट्टान से टकराकर पेंदी में सूराख होने से डूब गया है। यह उस प्रसिद्ध यात्री प्रसिद्ध यात्री जहाज की प्रथम यात्रा थी। कितना आश्चर्यजनक संयोग था कि 14 वर्ष पूर्व मारगट रावर्टसन के उपन्यास ‘द रैंक आफ टाइरन’ का काल्पनिक जहाज भी टाइरन था। वह भी अपनी प्रथम यात्रा में ही डूब जाता है। उसमें वर्णित दुर्घटना टाइरैनिक दुर्घटना के विवरण से सटीक मेल खाती थी।

टाइरैनिक जहाज का भार भी लगभग 75000 टन था उसकी ऊँचाई 882 फीट थी, उस जहाज में तीन प्रौपैलर लगे हुए थे और उसमें लगभग ढाई हजार यात्री सवार थे। काल्पनिक टाइरन जहाज से यह विवरण कितना संगति खाता है यह प्रस्तुत लेख की प्रारम्भिक पंक्तियों में देखा जा सकता है। आश्चर्य की बात तो यह कि काल्पनिक टाइरन के बारे में भी उन्हीं विशेषताओं का उल्लेख किया गया था। जिनके दावे टाइरैनिक जहाज का निर्माण करने वाली जहाज कम्पनी ने किये थे। जैसे उक्त जहाज कम्पनी का दावा था कि यह जहाज कभी न डूबने वाला अद्वितीय जहाज था। 14 वर्ष पूर्व प्रकाशित उपन्यास टाइरन के बारे में भी उपन्यास लेखक ने इसी प्रकार का कथानक विकसित किया।

इसी तरह के और भी वर्णन उपन्यास में थे, जिन्हें टाइटैनिक दुर्घटना का पूर्वाभास कहा गया है। स्वाभाविक ही यह प्रश्न उठता है कि यह मात्र एक संयोग था अथवा लेखक मार्गन राबर्टसन ने किसी अन्तःप्रेरणा या पूर्वाभास से प्रेरित होकर आने वाले कल का चित्र अपने उपन्यास में खींच दिया था।

किसी युग में भले ही यह कहा जा सकता था कि इस प्रकार की घटनायें मात्र संयोग के अतिरिक्त और कुछ नहीं हैं। परन्तु अब वैज्ञानिक और डॉक्टर भी यह मानते हैं कि शरीर में इन्द्रियों की चेतना का भी अस्थायी महत्व है। स्थायी रूप से दर्शन, श्रवण, घ्राण उत्प्रेरण और सम्वेदन की सभी क्षमतायें मस्तिष्क में विद्यमान हैं। थैलामस नामक पिण्डली (गैलियन) भीतरी मस्तिष्क में होती है, जो सिर के केन्द्र में अवस्थित हैं। यही केन्द्र सभी तन्मात्राओं के ठहरने का स्थान (स्टेशन) है। यही सी पीनियल ग्रन्थि (ग्लैण्डस् ) निकलती है जो देखने का काम करती है। “पीनियल ग्लैण्ड” को तीसरा नेत्र भी कहते हैं। पिट्यूटरी ग्लैण्डस् और सुषुम्ना शीर्ष (मेडुला आफ लाँगलेटा) जो शरीर के सम्पूर्ण अवयवों का नियंत्रण करती हैं, वे सब भी मन से संबंधित हैं। मस्तिष्क का यदि वह केन्द्र काट दिया जाए तो शरीर के अन्य सब संस्थान बेकार हो जायेंगे।

विज्ञान और शरीर रचना शास्त्र (एनाटॉमी) की इन आधुनिक जानकारियों का भण्डार यद्यपि बहुत समृद्ध हो चुका है किन्तु योग और भारतीय तत्व-दर्शन की तुलना में यह जानकारियाँ समुद्र में एक बूँद की तरह हैं। भारतीय तत्ववेत्ताओं ने मन को सर्वशक्ति मय इन्द्रियातीत ज्ञान का आधार माना है। उसकी शक्तियों को ही ब्रह्मा में लीन कर देने से हाड़ माँस का मनुष्य सर्वजयी और कालदर्शी हो जाता है। महर्षि पातंजली ने इस तत्वदर्शन का साधन स्वरूप बताते हुए कहा है-

परिणाम त्रय संयमाद तीतानागत ज्ञानस्। ( योगदर्शन, विभूतिपरिषद )

तीनों में परिणामों में ( चित का ) संयम करने से भूत और भविष्य का ज्ञान होता है।

योग वशिष्ठ में बताया गया है-

मनो हि जगताँ कतृ मनो हि पुरुषः स्मृतः। 3। 9114

अर्थात्- संसार को रचने वाला पुरुष भी स्वयं मन ही है, मन में सब प्रकार की शक्तियाँ हैं। हमारे मन में चूँकि ईश्वरीय शक्ति का बढ़ा-चढ़ा रूप है, इसलिए इन बातों पर यकायक विश्वास नहीं होता। मन की शक्तियों से सम्बन्ध न होने के कारण यह बातें भ्रम लगती हैं कि प्रत्येक मनुष्य के मन में सब कुछ जान लेने, दूसरों के अन्तरंग को पढ़ लेने और जो अभी अनागत है, उसे किस प्रकार जाना जा सकता है स्वाभाविक भी है। यह शंका उठना कि जो अभी घटा ही नहीं है उसे किस प्रकार जाना जा सकता है?

उपरोक्त घटना के संदर्भ में, उपन्यास और जहाज दुर्घटना की सभी बातें समान रूप से घटित होने के बारे में किसी निष्कर्ष पर पहुँचने से पहले कुछ और विवरणों को जान लेना उचित होगा। उपन्यास में वर्णित घटनाक्रम तो 14 वर्ष पूर्व का था, परन्तु उसी समय जब “टाइटैनिक जहाज” का जलवितरण होने वाला था कुछ और लोगों को भी इसी प्रकार का आभास हुआ। एक अंग्रेज व्यापारी जे. कैनन मिडिलटन ने 23 मार्च 1912 को टाइटैनिक से यात्रा करने के लिए टिकट खरीदा। लेकिन यात्रा से दस दिन पूर्व ही कैनन ने एक स्वप्न देखा। स्वप्न में उसे एक बड़ा जहाज समुद्र में उल्टा तैरता दिखाई दिया। उसकी तली टूटी हुई दिखाई दे रही थी और बहुत से यात्री चीखते चिल्लाते पानी में हाथ-पैर मार रहे थे।

स्वप्न इतना भयावह था कि घबराकर कैनन की आँख खुली गयी। उसने सोचा ऐसे ही कोई स्वप्न होगा और वह उस बात को भूल गया। अगली रात जब वह फिर सोने लगा तो सोते ही फिर वही स्वप्न देखने लगा। इस बार उसने अपने आपको जहाज के ऊपर हवा में तैरते हुए देखा। दो दिन तक लगातार यही स्वप्न देखने के कारण कैनन इतना सन्देहग्रस्त हो गया कि उसने अपनी यात्रा ही स्थगित कर दी। दुर्घटना के बाद उसने लन्दन की ‘सोसायटी फार साइकोलॉजिकल रिसर्च’ को पत्र लिखकर अपने स्वप्न की जानकारी दी। यह विवरण सोसायटी की पत्रिका में भी प्रकाशित हुआ था।

बैरी ग्राण्ट ने एक-दूसरे ही प्रकार का विवरण “फार मेमोरी” नामक पुस्तक में लिख है जो सन् 1956 में न्यूयार्क से प्रकाशित हुई थी। बैरी ग्राण्ट ने लिखा है कि जिस दिन टाइटैनिक जहाज अपनी पहली यात्रा का आरम्भ कर रहा था। जहाज का भौंपू बज चुका था और इंजिन भी स्टार्ट हो चुका था, तब उसके पिता जेक मार्शल और उसकी माँ आइल आफ ह्वाइट दूसरी ओर मकान की छत पर जहाज को रवाना होते देख रहे थे। एकाएक न जाने क्या हुआ कि श्रीमती मार्शल अपने पति की बाँह पकड़ कर जोर से चीखी “अरे.......रे! वह जहाज तो अमेरिका पहुँचने से पहले ही डूब जायगा। कुछ करो, रोकी उसे।’

जैक मार्शल ने अपनी पत्नी को सहलाया और कहा- ‘चिन्ता मत करो टाइटैनिक कभी भी डूब नहीं सकता।’ लेकिन श्रीमती मार्शल अपने पति को इस प्रकार कहते देख कर गुस्सा हो गयी और कहने लगी-तुम कैसी बातें कर रहे हो। मैं सैंकड़ों लोगों को अपनी आँखों से पानी में डूबते हुए देख रही हूँ। क्या तुम उन्हें मरने दोगे।’

इस प्रकार के अनुभव और भी कितने ही व्यक्तियों को हुए तो क्या उन सबके आभासों और टाइटैनिक जहाज की जल समाधि को मात्र संयोग ही कहा जाय। कहना कठिन है। सामान्य मस्तिष्क की शक्ति इन्द्रिय गम्य जानकारियों तक ही सीमित है-शरीर विज्ञानियों द्वारा अब तक कहा जाता है। किन्तु अब न्यूरोलॉजी-पैरासाइकोलॉजी-मैटाफिजिक्स आदि विज्ञान के जानकार यह स्वीकार करने लगे हैं कि मानवी मन-विराट विश्व मन का ही एक अंश हैं और जो कुछ निकट भविष्य में होने जा रहा है उसकी सम्वेदनायें मानवी मन को भी मिल सकती हैं।

स्थूल जानकारियाँ संग्रहित करने वाले चेतन मस्तिष्क और स्वसंचालित नाड़ी संस्थान को प्रभावित करने वाले अचेतन मस्तिष्क का ही ज्ञान अभी विज्ञान क्षेत्र की परिधि में आया है, पर अब अतीन्द्रिय मस्तिष्क के अस्तित्व को भी स्वीकारा जा रहा है, क्योंकि ऐसी अनेकानेक घटनायें घटित होती रहती हैं जिनसे भविष्य में होने वाली घटनाओं का पूर्वाभास मिलने और उनके अक्षरशः सही उतरने के प्रमाण मिलते हैं।

सुप्रसिद्ध साहित्यकार गेटे ने लिखा है कि एक बार वह अपने निवास स्थान वाइक्नर में था तो अचानक उन्हें ऐसा अनुभव होने लगा कि वहाँ से हजारों मील दूर सिसली में एक भयंकर भूकम्प आया है। यह बात उसने अपने मित्रों को बतायी पर किसी को विश्वास न हुआ कि बिना किसी आधार के इतनी दूर की बात कैसे मालूम हो सकती है, पर कुछ ही महीनों बाद सिसली में भयंकर भूकम्प आया। जैसा कि गेटे ने अपने मित्र को बताया था।

प्रसिद्ध लेखक जानेथन स्विफ्ट ने अपनी पुस्तक ‘गुलिवर की यात्रायें’ में लिखा था कि- मंगल ग्रह के चारों ओर दो चन्द्रमा परिक्रमा करते हैं। इसमें एक की चाल दूसरे से दुगुनी है।’ उस समय यह बात निरी कल्पना के सिवा कुछ नहीं लगती थी। क्योंकि तब इस बात का किसी को तनिक भी आभास नहीं था कि मंगल के इर्द-गिर्द चन्द्रमा भी हो सकता है। पीछे डेढ़ सौ वर्ष बाद सन् 1877 में वाशिंगटन की नेबल आबजरवेटरी में एक शक्ति शाली दुर्बीन के सहारे यह देख लिया गया कि वास्तव में मंगल ग्रह के दो चन्द्रमा हैं और एक की चाल दूसरे से दूनी है तो लोग आश्चर्यचकित रह गये कि उस साधन हीन जमाने में जब इस तरह की कल्पना कर सकना भी सम्भव नहीं था, तब किस प्रकार स्विफ्ट ने मंगल ग्रह की स्थिति बतायी।

विज्ञान कथा लेखिका मेरिनिवेन ने अपने प्रसिद्ध उपन्यास “ए होल इन द स्पेस” में एक ऐसे तारे की कल्पना की थी जो सूर्य से आकार में दस गुना था और अरबों वर्ष बाद एक काला पिण्ड भर रह गया। यही नहीं वह सिकुड़ कर साठ किलोमीटर अर्द्धव्यास का रह गया किन्तु उसका भार अभी भी सूर्य से दस गुना अधिक है।

उस समय जब यह उपन्यास लिखा गया तब वैज्ञानिकों का इस ओर ध्यान भी नहीं गया था। सन् 1672 में ‘साइगनस-एक्स वन’ नामक एक ब्लैक होल के अस्तित्व का पता चला जिसका अर्द्धव्यास साठ किलोमीटर है और वजन सूर्य से दस गुना अधिक। पृथ्वी से उसकी दूरी, घनत्व, गुरुत्वाकर्षण वहाँ की गतीय सम्भावना, आकर्षण शक्ति आदि सब कुछ उपन्यास में वर्णित विशेषताओं से मेल खाती थी।

क्या इन सब घटनाओं से मात्र संयोग कह कर छुटकारा पा लिया जाय। विज्ञान के लिए इतने प्रबल प्रमाण होने के बाद उनकी उपेक्षा कर पाना सम्भव नहीं है। भारतीय तत्वदर्शन तो पहले ही मानता है-अतीन्द्रिय चेतना मानवी सत्ता के अस्तित्व में विद्यमान है। योगी सिद्ध पुरुष जिस शक्ति को अपनी तप, साधना के माध्यम से विकसित करते है वह कई बार बिजली की चमक के समान अनायास ही सामने आ प्रस्तुत होती है। इस सत्ता का विकास करके मनुष्य सीमित परिधि के बन्धन काट कर असीम के साथ अपने सम्बन्ध मिला सकता है और अपनी ज्ञान परिधि को उतना ही विस्तृत कर सकता है।


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