मनुष्य का व्यक्तित्व उसकी आदतों के मिलने से बनता है। मन में तो भले और बुरे दोनों ही प्रकार के विचार रहते हैं, वे जल्दी बदलते भी रहते हैं। परन्तु आदतें चिर-स्थायी होती हैं, वे देर में बनती हैं और देर तक कायम रहती हैं। यह आदतें ही व्यक्तित्व का निर्माण करती हैं। कोई व्यक्ति जवान से क्या कहता है, इसका कोई विशेष महत्व नहीं है, महत्व इस बात का हैं कि उसकी आदतें कैसी हैं, वह व्यवहार रूप में अपना आचरण किस प्रकार करता है?
जैसे शराब की दुकान देखकर शराबी को वहाँ गये बिना रहा नहीं जाता, उसी प्रकार यह भी आदत हो सकती है कि किसी को बुरी दशा देखकर उसको स्थिति पर दया अवश्य उत्पन्न हो। दया करने से दया की आदत बनती है, हिंसा से हिंसा की प्रवृत्ति उत्पन्न होती है। जिस भी प्रकार की कार्य प्रणाली को हम व्यवहार में लाते हैं बारबार के अभ्यास से वह आदत का रूप धारण कर लेती है। इन आदतों के अनुरूप ही मनुष्य की स्थिति समझी जाती है।
आप जिन बातों को अपने व्यक्तित्व की उन्नति के लिए आवश्यक समझते हैं उन्हें बार-बार कार्य रूप में परिणत करना आरम्भ कर दीजिए। कुछ दिनों में वह बात आपके स्वभाव में शामिल हो जायगी और आदत बन जायगी। दया, सेवा, उदारता, सदाचार, संयम, मधुर भाषण आदि सात्विक आत्मिक गुण किसी को अकस्मात ही नहीं वरन् उन्हें बार-बार कार्य रूप में परिणित करने से व्यक्तित्व का अंग बन जाते हैं।