मूर्ख लोगों का परिहास अश्लीलता से भरा हुआ होता है जिसे कोई पसन्द नहीं करता बल्कि जिसके साथ परिहास किया जाता वह खुश न होकर अपना अपमान समझता है किन्तु जो लोग सुशिक्षित हैं और शिष्ट हैं उनका परिहास सबके हृदय को प्रसन्न करता है सभी लोग उस परिहास को पसन्द करते हैं। कभी-कभी तो उस परिहास से विनय और शिष्टता का विशेष परिचय मिलता है। कितने लोग यह समझते हैं कि जो विद्वान और शिष्ट हैं सर्वदा ही गम्भीर भाव धारण किये रहते हैं वे किसी के साथ हास्य परिहास नहीं करते हैं। किन्तु वास्तव में विद्वान शिष्ट गण जैसे प्रफुल्ल हृदय, सरस बात बोलने में प्रवीण और समीचीन परिहास के प्रिय होते हैं वैसे संसार में और लोग नहीं होते।
शिष्ट जनों के परिहास से शिक्षा मिलती है। बुद्धि बढ़ती है और सुरुचि पूर्ण प्रसन्नता प्राप्त होती है यदि तुम लोग शिष्ट जनों के सदृश परिहास करने में समर्थन हो तो उन परिहासों को अवश्य त्याग दो जो दूसरे को बुरे लगे और जिससे किसी के मन में विनोद न होकर प्रत्युत घृणा उत्पन्न हो। मान लो कि जिस परिहास से तुम केवल अपने को ही मन विनोद पाने की इच्छा रखते हो वही परिहास यदि कोई दूसरा व्यक्ति तुम्हारे साथ करे तो क्या उसे वैसा ही विनोदास्पद समझोगे? फिर वह परिहास ही क्या काम का जो सब के हृदय में हर्ष प्रद न हुआ। दूसरे के हृदय में दुःख पहुँचाकर आनन्द अपने हृदय में मनाना बड़ी ही घृणा का विषय है।