आइये, अपनी आत्म परीक्षा करें।

August 1946

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[गताँक से आगे]

(प्रोफे सर श्री रामचरण महेन्द्र एम. ए.)

आपका दूसरों के प्रति व्यवहार

यदि आप अन्य व्यक्तियों के संपर्क में आकर सरलता से मित्र बना लेते हैं, दूसरों को अच्छे लगते हैं, वे आपके संग रहकर मृदुता का अनुभव करते हैं, तब आपका व्यक्तित्व संतुलित (Well adopted to the world) है। उसका विकास ठीक चल रहा है। आपका व्यवहार धीरे-धीरे बढ़ कर ऐसा हो जायगा कि आपके मुख्य कार्य से सम्बन्धित प्रत्येक व्यक्ति आपसे प्रसन्न होने लगेगा, साथ ही आपके आन्तरिक उल्लास की भी वृद्धि होगी।

यदि आपके मित्र कम हैं, या आपके संपर्क में आने वाले व्यक्तियों से आपकी मित्रता नहीं जुड़ी है, तो समझ लीजिये कि दूसरों के प्रति आपका रुख ठीक नहीं है। आप शायद मिथ्या गर्व में फँसे हैं। साथ ही आत्म हीनता, आत्म ग्लानि के भी शिकार हो सकते है। क्या आपको किसी ने ठेस पहुँचाई है? शायद आप यह समझने लगे हैं कि एकाकी जीवन ही सर्वश्रेष्ठ है अथवा आप दूसरों से भिन्न हैं। आपमें न्यूनताएं हैं, कमजोरियाँ हैं, मजबूरियाँ हैं? इन मिथ्या विचारों से मुक्ति पाइये और मृदुता, सौम्यता तथा सहानुभूति को अपना मित्र बनाइये।

जब आप दूसरों से मिलते हैं, तो लज्जा से आपका सिर झुक जाता है। नए मनुष्यों से मिलने उनके संपर्क में आने में आपको हिचकिचाहट होती है। यह इसलिए होता है कि आप समझते हैं कि वे लोग आपके मन की बातें गूढ़ रहस्य, मन की छिपी हुई प्रतिक्रियाएँ, गुप्त तत्व न जान लें और अपनी नजर से नीचे न गिरा दें।

आपका अपना अन्दाजा ठीक नहीं हैं। जो कुछ निम्नधारणाएं आपने अपने विषय में निर्धारित की हैं वे पंगु हैं। उनमें जीवन की श्वाँस फूँकिए और कमजोरी की केंचुली उतार फेंकिये। अपने मन में गोता लगाकर उन कंकड़ों, पत्थरों को, उन मिथ्या न्यूनताओं का वार्हिगत कीजिये। दूसरे नहीं, आप अपने विचारों का प्रतिबिंब स्वयं दूसरों पर डाल कर कमजोर बनते हैं। अभद्र विचार आपके व्यक्तित्व को पंगु बना रहे हैं।

यदि अजनबी व्यक्तियों में आप स्थिर प्रफुल्ल एवं शान्त (Ease) रहते हैं, तो इसका अर्थ यह है कि आपकी भावनाएं विचार शक्ति को विचलित नहीं करतीं। भावना से विचार अधिक मूल्यवान हैं।

घर में, अपने भाई, बहिनों, माता-पिता, पत्नी, बच्चे, मेहमानों से आपका व्यवहार कैसा है? किसी को अत्यधिक सहानुभूति, किसी से नाराजी क्रोध-ऐसा तो नहीं रहता? यदि ऐसी बात है तो समझ लीजिये आपमें बचपन के मिथ्या विचार आरुढ़ हैं। बचपन में किसी की ओर अत्यधिक रुचि रहती है तो दूसरे की ओर से विरक्ति। यह स्मरण रखिए कि सभी आपसे उत्तम मृदु, सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार की आशा रखते हैं। अपनी प्रशंसा, सहानुभूति, दया, प्रेम-इन सभी को बराबर-2 दीजिए।

यदि आप में केवल उन्हीं गुणों का विकास हुआ है जो आपके कुटुम्ब वालों में से प्रत्येक में हैं, तो समझ लीजिये कि एक बड़ी कमी के शिकार आप बन गए हैं। आपने अपनी मौलिकता खो दी है। आप अपनी विशेषता खोजिये। आपमें एक खूबी है। एक खासियत है। इस विशेषता की वृद्धि कीजिये। यह आप में मुख्य तत्व है। आत्मपरीक्षा द्वारा ही यह संभव है। दूसरों को अनुकरण करना बन्द कर दीजिये। अपना मार्ग स्वयं निर्धारित करना मौलिकता का विकास करना है।

यदि घर वालों में से आप किसी विशेष पर आश्रित रहते हैं, उसकी मर्जी के बिना कुछ नहीं कर पाते, उसके इशारों पर नाचते हैं, तो समझ लीजिये, कि अभी आप बचपन की आदतों से मुक्ति नहीं पा सके हैं। घरवालों की सहायता पर आश्रित रहने से आप जीवन पर्यन्त बालक ही बने रहेंगे। यदि आप किसी विशेष व्यक्ति के प्रति विद्वेष दिखाते हैं, तो याद रखिये आप उसका बड़प्पन मानते हैं, उससे मन ही मन डरते हैं अपनी कमजोरी को छिपाने के लिए आप विद्वेष धारण किए हुये हैं।

बचपन में यदि आप दूसरे बच्चों के साथ निर्भयता (Freely) से खेलते रहते थे, तो आप सामान्य (Normal) बालक थे। अब भी आपका व्यवहार वैसा ही चलेगा तो आप अपने पुरुषोचित गुणों की वृद्धि कर सकेंगे। यदि आप एकाकी रहे हैं, तो सामाजिक गुण पंगु रहेंगे। व्यक्तित्व के सामाजिक गुण मिलनसारी, बातचीत, दूसरों से रिश्ते-विकसित न कर सकेंगे।

यदि आप स्वार्थी हैं, तो अपनी सफलताओं पर केवल आपको ही हर्ष होगा, दूसरे उसमें कोई विशेष दिलचस्पी न लेंगे। सच्चा सुख एवं संतोष तभी प्राप्त जब दूसरे भी आपके सुख सफलता में भाग लें। हो सकता है कि आपके ऊँचे पद के कारण वे दिखावे के रूप में आपका आदर करें किन्तु दिखावा सच्ची सफलता कदापि नहीं है। अपने मित्रों, आसपास वालों की सम्मतियाँ-विचार तथा आदर आपके लिए रुपये से अधिक मूल्यवान हैं।

यदि आप अपने कार्य सहानुभूति से स्निग्ध रखते हैं तो आपको सफलता के साथ-साथ अपने मित्रों तथा सम्बन्धियों की शुभ भावनाएं भी मिलेंगी, संभव है, इस व्यवहार से कुछ अर्थ प्राप्ति भी हो सके।

आप स्वाधीनता चाहते हैं, अपने अधिकारों के लिए मर मिटने को प्रस्तुत रहते हैं किन्तु क्या आप अपने से नीचे वालों को स्वाधीनता देने के लिए प्रस्तुत हैं? आप दूसरों के अधिकारों की रक्षा कहाँ तक करते हैं? जीओ और जीने दो इस महान् तत्व को आपने किस हद तक जीवन में ढाला है? आपने कितनों को सताया है? कितनों को आपसे वास्तविक लाभ पहुँचा है? अहंभाव से प्रेरित होकर आपने कितनों की स्वाधीनता में रोड़ा अटकाया है।

-क्रमशः


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