(प्रोफेसर नरायणजी गोविन्द जी नाबर)
विचार कीजिए- रामा, पेशवाओं का एक साधारण नौकर था वह बिल्कुल अशिक्षित था। परिस्थिति और बुद्धि आदि भी अनुकूल न थे। बेचारा “पीर बबर्ची, भिश्ती खर” था। किन्तु पेशवा के कटु शब्दों का तीव्र अंजन आँखों में पड़ते ही उसका आत्म विश्वास जैसे सोते-2 यकायक जाग उठा। गुम शक्ति का वृहत स्रोत एकदम फूट पड़ा। शक्तियाँ जागृत हो उठीं और एक बावर्ची विद्वान आचार्य बन गया।
आश्चर्य की बात तो अवश्य है, किन्तु ऐसे आश्चर्य संसार के इतिहास में इतने भरे पड़े हैं कि सूक्ष्म दृष्टि से विचार करने वाले इसको मानवी समाज की सहज लीला समझते हैं। जो दृश्य मानवी या स्थूल दृष्टि में दिखाते हैं वे ही आत्मविश्वासी मनुष्य को स्पष्ट दिखाई देते हैं। हमारे जीवन क्रम को बदल कर उन्नति कराने वाला यही तो देवदूत है। निराशावस्था में धैर्य, मेरु को थर्राने वाले, संकटी और प्रगति मार्ग के गहन जंगलों में से दूर से स्पष्ट दिखाई देने वाला, उन्नति शिखर की ओर उँगली निर्देश करने वाला, नवजीवन प्रद स्वर्गीय संगीत गाने वाला और संजीवनी मंत्र ज्ञाता आत्मविश्वास ही हमारा सच्चा मित्र है।
एक कहता है ‘मैंने शिक्षा बहुत कम पाई है। इस कारण से मैं इस प्रकार ठोकरें खाता फिरता हूँ।’ दूसरा कहता है कि ‘मैं जी तोड़ परिश्रम करता हूँ तो भी मेरे वेतन में वृद्धि नहीं होती, मैं बड़ा अभागा हूँ।’ तीसरा कहता हैं ‘मैं क्या करूं? मेरे माता-पिता ने मुझे शिक्षा प्राप्ति का अवसर ही न दिया।’ किन्तु हमारी राय में ये सब काम न करने के बहाने मात्र हैं। केवल विद्वत्ता, शिक्षा, चातुर्य ही यश प्राप्ति के साधन नहीं हैं। अनेक जगत प्रसिद्ध पुरुष आपको ऐसे मिलेंगे जिन्होंने मदरसे का द्वार भी न देखा और जो विद्यार्थी जीवन में कभी सफल न रहे। जब जिसका आत्म-विश्वास जाग उठे तभी सवेरा समझना चाहिए।