विपत्ति काल में धैर्य की आवश्यकता

August 1946

<<   |   <   | |   >   |   >>

(श्री निरंजन प्रसाद गौतम, पट लौनी)

अक्सर ऐसा होता है कि जब कोई कठिन प्रश्न सामने आता है तो मनुष्य घबरा जाता है, मानसिक उत्तेजना के कारण उसकी निर्णय शक्ति कठिन हो जाती है। जो कठिनाई सामने आई है उसे वह बहुत बड़ी मान लेता है उसके कारण बड़ी आपत्तियाँ आने की आशंका करता है और निवारण के उपायों को निर्बल एवं निराशाप्रद देखता है। ऐसी अवस्था में मानसिक संतुलन बिगड़ जाने के कारण वह असंबद्ध, अधूरी एवं अनिष्टकारक कल्पनाएं करके अपने आपको निराशा क्लेश, भय और चिन्ता के गर्त में डुबा लेता है। उसे सूझ नहीं पड़ता कि वह क्या करे क्या न करे? आवेश और उद्विनिता में किये हुये निर्णय उलटे पड़ते हैं, उनसे समस्या सुलझने की अपेक्षा और उलटी उलझती है।

विपत्ति के निवारण का सबसे अच्छा तरीका यह है कि शान्त चित्त से धैर्य पूर्वक यह विचार किया जाय कि समस्या का वास्तविक रूप क्या है? घबराया हुआ मनुष्य अपने कष्ट को जितना बड़ा समझता है वास्तव में वह उससे बहुत ही कम होता है। दार्शनिक अरस्तू कहा करते थे कि दुनिया में जितनी बेचैनी है उसमें एक प्रतिशत वास्तविकता है और शेष 99 प्रतिशत दुष्कल्पना मात्र होती है। भय आवेश और घबराहट को हटाकर स्वस्थ चित्त से सोचने पर कठिनाई का सच्चा स्वरूप मालूम हो जाता है तब उसके निवारण का उपाय ढूँढ़ना भी सुगम पड़ता है। कठिनाई के समय धैर्य और साहस से बढ़कर और कोई मित्र नहीं। कठिनाई का वास्तविक रूप जान लेना और उसे सुलझाने का हल मालूम कर लेना आधी कठिनाई पार कर लेने के बराबर है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118