(प्रो. मोहनलाल जी वर्मा एम. ए. एल. एल.बी.)
चीन में क्यूच प्रान्त में टारिंग जिले के अन्दर एक गाँव हैं, जहाँ के अधिकतर निवासी 100 वर्ष से अधिक अवस्था के हैं। उस गाँव की आबादी 100 कुटुम्ब से कम की है। इस समय जितने व्यक्ति वहाँ जीवित हैं, थोड़े से लोगों को छोड़कर प्रायः सभी की आयु लगभग सौ वर्ष की है। एक व्यक्ति की आयु तो 180 वर्ष की है। इस समय भी उस व्यक्ति में पूरी-पूरी ताकत है। वह अपनी जीविका के लिए लकड़ी के गट्ठे सिर पर रखकर बेचने जाया करता है। 160 वर्ष से वह नियम पूर्वक सूर्य डूबते ही सो जाया करता है और प्रातः सूर्य उदय होने के पश्चात् जागता है। उसको नींद खूब आती है।
उसका कहना है कि उसके दीर्घजीवी होने का प्रधान रहस्य यही है कि वह खूब सोया करता है रात में भूल कर भी जागता या नेत्रों पर जोर नहीं देता साथ ही दिन में कभी नहीं सोता। सारा दिन डट कर काम करता है, लकड़ी काटता, घूमता फिरता तथा विशेषतः जंगल में रहता है। खुली हवा में विचरण करने के कारण उसके अंगों में अभी तक स्फूर्ति है। सायंकाल तक उसका शरीर खूब थक जाता है। सादा भोजन कर, एक घण्टे पश्चात् वह निर्विघ्न निश्चिन्त होकर सोता है। उसका कथन है -
“मुझे दुःस्वप्न कभी नहीं सताते।” सोने के पश्चात मुझे यह मालूम नहीं पड़ता कि मैं हूँ भी या नहीं। सुबह जब नींद की खुमारी उतरती है तो ऐसा मालूम होता है, जैसे शरीर में नई जान हो, नए अंग हों, जैसे सब कुछ नया हो। मेरी राय में नींद हमारा सबसे बड़ा डॉक्टर है। सचमुच, निद्रा की अल्पमात्रा के कारण अनेक व्यक्ति रोग ग्रस्त, थके माँदे, निष्प्रेम होकर अल्पायु में जीवन लीला समाप्त करते हैं, नींद के साथ यह अत्याचार क्यों?