(श्री स्वामी विवेकानन्द जी)
ऐ भारत! क्या दूसरों की हाँ में हाँ मिलाकर दूसरों की ही नकल कर दूसरों का ही मुँह ताक कर इसी घृणित, जघन्य निष्ठुरता, इसी दासों की सी दुर्बलता से तुम बड़े-बड़े अधिकार प्राप्त कर सकोगे? क्या इसी निन्दनीय कापुरुषता से तुम वीर भोग्य स्वाधीनता लाभ करोगे?
ऐ भारत! यह न भूलना कि तुम्हारी स्त्रियों का आदर्श सीता, सावित्री, दमयन्ती हैं, यह न भूलना कि तुम्हारे उपास्य सर्व त्यागी उमानाथ शंकर हैं, यह स्मरण रखना कि तुम्हारा विवाह, तुम्हारा धन और तुम्हारा जीवन इन्द्रिय-सुख के लिए-अपने व्यक्तिगत सुख के लिये नहीं, यह न भूलना कि जन्म से ही ‘माता’ के लिये बलि स्वरूप रखे गये हो,
यह न भूलना कि तुम्हारा समाज उस विराट महामाया की छाया मात्र है, और यह भी भूल जाना कि नीच, मूर्ख, दरिद्र, चमार और मेहतर तुम्हारा रक्त हैं, तुम्हारे भाई हैं।,
ऐ वीर, साहस का अवलम्बन करो। गर्व से कहो कि मैं- भारतवासी हूँ और प्रत्येक भारतवासी मेरे भाई हैं। भारत के दीन दुःखियों के साथ एक होकर गर्व से पुकार कर कहो-’प्रत्येक भारतवासी मेरा है, भारतवासी मेरे प्राण हैं, भारत की देव देवियाँ मेरे ईश्वर हैं, भारत का समाज मेरे बचपन का झूला, जवानी की फुलवारी और बुढ़ापे की आशा है।’ भाई, कहो कि भारत की मिट्टी मेरा स्वर्ग है, भारत के कल्याण में मेरा कल्याण है और रात दिन तुम्हारी यही रट लगी रहे-
‘हे गौरीनाथ, हे जगदम्बे, मुझे मनुष्यत्व दो।’ मेरी दुर्बलता और कापुरुषता दूर कर दो।
माँ मुझे मनुष्य बना दो।