स्वस्थता पूर्वक जीवन धारण करने के लिए निद्रा का भली प्रकार आना आवश्यक है। किसी दिन यदि अधूरी नींद आती है या नहीं आती तो दूसरे दिन शरीर भारी, सुस्त, थका तथा शक्तिहीन सा प्रतीत होता है। यदि कई दिन लगातार नींद न आवे तो बीमार पड़ जाने की आशंका उत्पन्न हो जाती है। जिन्हें अनिद्रा रोग हो जाता है उनकी जीवन सम्पत्ति बड़ी तेजी से घटने लगती है। थकान को मिटाकर नवीन जीवन शक्ति प्रदान करने के लिए निद्रा आती है। वह महत्वपूर्ण कार्य जिसे निद्रा देवी नित्य करती है जीवन की स्थिरता के लिए बहुत ही आवश्यक है।
डाक्टरों के मतानुसार निद्रा के समय का निर्धारण इस प्रकार हैः-
जन्म से लेकर 2 मास के बच्चे के लिए 20 घंटे तक
1 से 2 साल तक 16-17 घण्टे
2 से 3 साल तक 15-16 “
4 से 5 साल तक 14-15 “
5 से 6 साल तक 13-14 “
6 से 9 साल तक 10-12 “
10 से 12 साल तक 8-10 “
15 से 22 साल तक 8-9 “
22 से 45 साल तक 7-8 “
45 से 60 साल तक 6 “
60 से 100 साल तक 4-5 “
अधिक परिश्रम करने वालों के लिए कुछ निद्रा की आवश्यकता होती है जब कि कम परिश्रम करने वालों का काम अपेक्षाकृत कुछ कम समय में चल जाता हैं। नींद के समय शरीर शिथिल हो जाता है, दिमाग में दौड़ने वाले खून का दौरा मन्द पड़ जाता है, नाड़ी धीमी हो जाती है और स्नायुओं पर का तनाव कम हो जाता है, जिससे शरीर को बड़ा आराम मिलता है। अच्छा विश्राम मिल जाने के कारण थके हुए अंग फिर से चैतन्य हो जाते हैं। सोकर उठने पर सबसे पहले सुनने की शक्ति वापिस आती है अन्त में आँख खुल जाती है।
अच्छी निद्रा के लिए अन्धकार और शान्त वातावरण की बड़ी आवश्यकता है। दिन में प्रकाश रहने के कारण अधिक देर तक एवं अधिक गहरी निद्रा नहीं आती। वातावरण में शब्दों का कोलाहल रहने से उनका आघात कान के पर्दों पर पड़ता है और नींद उचट जाती है। मन में यदि कोई आवेश काम कर रहा होगा, हर्ष, शोक चिन्ता, भय, आशा, प्रतीक्षा आदि की उत्तेजना होगी तब भी नींद पूरी न आवेगी। इसके पश्चात् मच्छर, खटमल, पिस्सू दुर्गन्धि आदि से युक्त चारपाई पर भी निद्रा आने में बाधा पड़ती है इन बातों के न होते हुए भी यदि नींद न आवे तो उसे अनिद्रा का रोग कहना चाहिए।
बीमार आदमियों को सिरदर्द, खाँसी, दर्द ज्वर आदि के कारण नींद नहीं आती, बदहजमी के कारण पेट में पड़ा हुआ अन्न सड़ता है और उसकी गैस बनकर दिमाग में पहुँचती है और नींद को उचटा देती हैं। चित को अव्यवस्थित रखने वाले मनुष्यों के मन में नाना प्रकार के संकल्प विकल्प उठा करते हैं। रात के सोते समय उनकी प्रतिक्रिया स्वरूप दुःस्वप्न आते हैं और आँख खुल जाती है। बहुत अधिक मानसिक श्रम करने से मस्तिष्क में गर्मी बढ़ जाती है और उस उत्तेजना के कारण नींद नहीं आती।
अनिद्रा निवारण के लिए उपरोक्त कारणों को दूर करना चाहिए। इन कारणों में से जो अपने साथ जुड़ा हुआ दिखाई पड़े उसे हटा दिया जाय तो अनिद्रा रोग, दूर हो जाता है। क्योंकि दूसरे कारण ही नींद में प्रायः बाधक हुआ करते हैं, स्वतन्त्र रूप से अनिद्रा रोग तो बहुत ही कम होता है। अच्छी निद्रा लेने के लिए सोने का कमरा खुला हुआ हवादार होना चाहिए जहाँ प्रकाश की उचित मात्रा में पहुँच होती हो। गर्मी के दिनों में नीले आकाश के नीचे खुली हवा में सोना चाहिये। बिस्तर स्वच्छ तथा मुलायम हो। सोने के स्थान पर अन्धकार रहना चाहिए। पास में बत्ती जलती रहने से नींद में बाधा पड़ती है। उत्तर की तरफ सिर करके नहीं सोना चाहिए। ध्रुवों की चुम्बन शक्ति उत्तर में प्रवाहित होती है, उधर को सिर करके सोने से तिरछी विद्युत तरंगें मस्तिष्क में बहने लगती हैं, जिनके कारण बार-बार नींद खुलती है और नेत्रों की ज्योति कम होती हैं। बहुत बड़े एवं ऊँचे तकिये लगाना बुरी आदत हैं तकिया तीन चार इंच से अधिक ऊँचा न होना चाहिए।
सोने का समय नियत न रखने से भी अनिद्रा का शिकार होना पड़ता है। कई व्यक्ति रात को अधिक जागते हैं। नाच तमाशे या व्यापार आदि के कार्यों की वजह से आधी रात गये सोते हैं। कभी जल्दी कभी देर में सोने की कुव्यवस्था रखना भी ऐसा ही दुर्गुण है जिसके कारण नींद सम्बन्धी अनियमितता उत्पन्न होती है। अच्छा यह है कि दो तीन घण्टे रात जाने से अधिक न जगा जाय। जल्दी सोने और प्रातःकाल जल्दी उठने से स्वास्थ्य ठीक रहता है और अच्छी नींद आती है। चाय, शराब, गाँजा, अफीम आदि नशीली चीजों का सेवन भी निद्रा उत्पन्न करने वाला होता है।
(1)पेट को साफ रखें। कब्ज न होने दें। सात्विक आहार ग्रहण करें। सोने से कम से कम 2 घंटा पूर्व भोजन से निवृत्त हो लें। रात का भोजन हल्का और थोड़ा होना चाहिये।
(2) संध्या समय 3-4 मील टहलने जरूर जावें। टहलने में जरा तेजी से कदम उठाने चाहिये जिससे शरीर को एक हल्की कसरत मिल जाय। परिश्रम करके थक जाने वालों को निद्रा अच्छी आती है।
(3) भोजन में चिकने पदार्थों की मात्रा बढ़ा दें। दूध, दही, घी, मक्खन की मात्रा अधिक रखनी चाहिये।
(4) गर्मी के दिनों में ठण्डे पानी से स्नान करके, जाड़े के दिनों गरम पानी से हाथ मुँह धोकर सोना चाहिये।
(5) सोते समय किसी धार्मिक पुस्तक को पढ़ना चाहिये। इससे जल्दी नींद आती है।
(6) नेत्र बन्द करके ऐसा ध्यान रखना चाहिए कि चारों ओर नील आकाश है। भूतल पर एक स्वच्छ नीले जल की नदी धीरे-धीरे बह रही है। उस नदी के जल पर लेटा हुआ मैं आनन्द पूर्वक बहता चला जा रहा हूँ। ऐसी भावना करने से आंखें जल्दी झपक ने लगती हैं।
(7) अपने ध्यान को श्वासों के आवागमन पर केन्द्रित करें। साँस की वायु नासिका द्वारा फेफड़ों में होती हुई पेट तक पहुँचती है और पेट से नाक तक आती है। इस क्रिया का ध्यान करना नींद बुलाने में बड़ा सहायक होता है।
(8) तालमखाने का चूर्ण 3 मासे, मक्खन 1 तोला, मिश्री 6 मासे इन सब को मिलाकर सोने से दो घण्टे पूर्व सेवन करना चाहिये।
(9) सोते समय शरीर को इस प्रकार बिल्कुल शिथिल करने का प्रयत्न करें मानो देह निष्प्राण हो गई है। इससे स्नायुओं का तनाव कम होकर नींद आ जाती है।
(10) मन को सब ओर से हटा लें और ऐसा ध्यान करें शंख की मंद-मंद ध्वनि अन्तरिक्ष लोकों से आ रही है। शंख की ॐकार ध्वनि पर चित्त केन्द्रीभूत करने से शारीरिक समाधि निद्रा का तुरन्त प्रादुर्भाव होता है।
इन नियमों के अनुसार अभ्यास करने से अनिद्रा जाती है और गहरी नींद का आनन्द प्राप्त होता है।