(श्रीमती लिली एल. ऐलन)
यह बात कभी न स्वीकार की जानी चाहिए कि एक आदमी ज्यों-ज्यों बड़ी अवस्था को प्राप्त हो त्यों-त्यों उसे अवश्य ही कम सुन्दर होना चाहिये, यह एक झूँठा विश्वास है इसी प्रकार एक स्त्री को अपने यौवन के दिन ढलने के साथ अपने सौंदर्य को भी न खोना चाहिये। उसे तो दिन प्रतिदिन अधिक सुन्दर बनना चाहिए। अनुभव से उसके मुख तथा शरीर को शक्ति और सौंदर्य प्राप्त होना चाहिये आदमी की अधेड़ अवस्था तथा वृद्धावस्था उसकी युवावस्था की अपेक्षा उतनी ही सुन्दर होनी चाहिये जितनी कि डूबते हुए सूर्य की छटा उसके दोपहर के प्रकाशमान तेज के समान सुन्दर होती है। पूर्णरूप से खिला हुआ फूल एक कली से अधिक सुन्दर होता है। पका हुआ फल और भी अधिक सुन्दर होता है और पतझड़ के दिनों में मुरझाते हुए पत्ते कभी-कभी वसन्त ऋतु के हरे-हरे तथा चमकदार पत्तों से भी अधिक उत्कृष्ट सौंदर्य रखते हैं। जब ये बातें ठीक हैं तब प्रकृति देवी की उच्च और श्रेष्ठ रचनाएं स्त्री-पुरुष अपनी प्रतिभा सौंदर्य और प्रेम के उच्च आदर्श से क्यों कम रह जायेंगे? यदि वे प्रकृति के साथ सहयोग करें और अपने कर्त्तव्यों का पालन करें, तो ऐसा कदापि नहीं हो सकता। वे कभी प्राकृतिक सौंदर्य के माप से, आदर्श से, नीचे नहीं गिर सकते, शोक की बात तो यह है कि बहुत से आदमी उस दुःख को एक अत्यन्त कठोर वस्तु में पलट लेते हैं जो कि आदमी को पवित्र बना सकता है। इसी प्रकार जीवन के अनुभव से आदमी के चरित्र में दृढ़ता तथा बड़प्पन आना चाहिए और व्यक्तित्व में एक विशेष जादू सा आना चाहिये परन्तु उसी अनुभव से आदमी अपने सुखों को कठोर सा बना लेते हैं, उन पर झुर्रियाँ और त्यौरियों पड़ जाती हैं और वे समय से पहले वृद्ध बनने लगते हैं। कहने का मतलब यह है कि जीवन के अनुभव से आदमी को शक्ति प्राप्त होनी चाहिये और उसके व्यक्तित्व में आकर्षण पैदा होना चाहिए। परन्तु होता क्या है? ज्यों-ज्यों आदमी अनुभवी होता है, त्यों-त्यों वह बहुत गम्भीर बनने लगता है और वृद्धावस्था को प्राप्त होता जाता है।