उन दिनों मैं जमालपुर शक्तिपीठ में समयदान कर रहा था। दो- तीन महीने के अन्तराल में घर भी हो आता था। इसी दौरान एक दिन मेरी पीठ पर छोटा- सा फोड़ा निकल आया। मैंने सोचा कि यह तो साधारण सी बात है। राई भर का फोड़ा है, ठीक हो जायेगा अपने आप। लेकिन फोड़ा था कि दिन- प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा था। कुछ दिनों बाद जब घर पहुँचा, तो पत्नी को दिखाया। उसने फोड़े का मवाद निकालकर घर में रखा मरहम लगा दिया। लेकिन वह फोड़ा ठीक होने के बजाय और बड़ा हो गया। कार्य की व्यस्तताओं के कारण फोड़े की उपेक्षा होती रही। डॉक्टर को दिखाने के बजाय पत्नी का इलाज ही चलता रहा। साल बीतते- बीतते उसका आकार काफी बड़ा हो गया था। हमेशा असहनीय दर्द रहता। अब तो फोड़े से दुर्गन्ध भी आने लगी थी।
अन्ततः डॉक्टर अशोक मुखर्जी के क्लीनिक में दिखाया, तो उन्होंने चिन्तित स्वर में कहा- इतने दिन डिले नहीं करना चाहिए था। ऐसी देर से साधारण फोड़ा भी कैन्सर में बदल जाता है। आप अच्छी तरह से चेकअप करवाइये। कैन्सर टेस्ट भी अवश्य करा लें। कम- से निश्चिंत तो हो जाएँगे।
डॉ. मुखर्जी की बातों से मन चिंतित हो गया। किसी दूसरे डॉक्टर की राय भी ले ली जाए, यह सोचकर धनबाद के एक सर्जन डॉ. ए.के. सहाय से मिला। उन्होंने भी फोड़े को देखकर यही संदेह जताया कि कैन्सर हो सकता है। उन्होंने कई प्रकार की दवाएँ दीं, लेकिन बीमारी घटने के बजाय बढ़ती ही गई। मवाद का निकलना इस कदर बढ़ गया था कि एक दिन के अन्तराल पर ड्रेसिंग कराना अनिवार्य हो गया।
कैन्सर के अन्देशे के कारण कोई भी डॉक्टर ऑपरेशन करने के लिए तैयार नहीं था। जब फोड़ा बढ़ते- बढ़ते नीबू के आकार का हो गया तो बनारस के कैन्सर के विशेषज्ञ डॉ. एस.पी. सिंह के पास पहुँचा। वे भी खतरे की आशंका से ऑपरेशन के लिए तैयार नहीं हुए।
मेरे इस कष्ट के निवारण के लिए मेरी पत्नी ने शांतिकुंज जाकर विशेष अनुष्ठान किया। वापस आकर उसने बताया- पूज्य गुरुदेव ने कहा है, कुछ नहीं होगा। साधारण सा फोड़ा है, काटकर हटा दे।
पूज्य गुरुदेव का आश्वासन मिल जाने के बाद मैंने एक बार फिर अपने पुराने डॉ. ए.के. सहाय से बात की। वे बड़ी मुश्किल से ऑपरेशन के लिए राजी हुए। उन्होंने फोड़ा काट कर हटा दिया। गुरुकृपा से बड़े- बड़े डॉक्टरों द्वारा व्यक्त की गई कैन्सर की आशंका निर्मूल सिद्ध हुई।
प्रस्तुतिः त्रिवेणी प्रसाद अग्रवाल,
गिरीडीह (झारखण्ड)