मुझे सन् १९८४ में शान्तिकुञ्ज हरिद्वार में विशेष सत्र के आयोजन में भाग लेने का मौका मिला और उसी दौरान शान्तिकुञ्ज परिसर में ही गुरुजी एवं माताजी के दर्शनोपरांत गुरु दीक्षा ग्रहण की। तब से मैं और मेरी धर्मपत्नी गुरु देव के सत्साहित्य का निरंतर अध्ययन करते रहे और उनके बताए मार्ग पर बिल्कुल निश्छल भाव से, श्रद्धापूर्वक यथासंभव चलने का प्रयत्न करते रहे हैं। उस असीम सत्ता से जुड़ने के बाद जीवन में छोटी- बड़ी कई ऐसी घटनाएँ घटीं, जहाँ हम लोगों ने स्पष्टतः गुरुजी- माताजी की कृपा को महसूस किया। हमारी श्रद्धा और भी प्रगाढ़ होती चली गई। चार भाइयों के परिवार से बना हमारा बड़ा परिवार भी इष्ट सत्ता से जुड़ता चला गया। इस बड़े परिवार की ही एक घटना है, जिसे यहाँ उद्घोषित कर रहा हूँ :-
बात अप्रैल १९८९ की है। मेरे बड़े भाई की एक लड़की विनीता, जो उस समय मात्र ग्यारह वर्ष की थी। उसे घुटने के नीचे असह्य दर्द प्रारंभ हुआ और उस दर्द का आवेग बढ़ता ही चला गया। स्थानीय हड्डी रोग विशेषज्ञ को दिखाया गया, तो उन्होंने अस्थि कैंसर की संभावना बताई। पूरा परिवार यह बात सुनकर त्राहि−त्राहि कर उठा। हम लोग उसे लेकर पटना के प्रसिद्ध हड्डी रोग विशेषज्ञ को यहाँ पहुँचे। उन्होंने ऑपरेशन कर उसकी हड्डी का कुछ हिस्सा दो अलग- अलग जाँच घरों में जाँच के लिए भेज दिया। उन्होंने भी कह दिया कि यह कैंसर ही है; और अगर इसकी जान बचानी है तो टाटा कैंसर इंस्टीट्यूट में ले जाकर इसका पैर कटवा दीजिए।
उसकी देख- रेख मैं और मेरी पत्नी ही कर रहे थे। हम लोग बिल्कुल निराश हो गए और गुरुजी- माताजी का स्मरण करने लगे। हम दोनों में से एक गायत्री शक्तिपीठ, पटना में गायत्री मंत्र तथा महामृत्युञ्जय मंत्र का जप करता तो दूसरा उसकी देख−रेख करता। यह सिलसिला बारी- बारी से जाँच रिपोर्ट आने तक निरंतर चलता रहा। इस बीच डॉक्टर लगातार कहते रहे कि आप पैसा बर्बाद न करे इसका पैर कटवा दें। क्योंकि इलाज से रोग दूर होने की संभावना कम ही है पर जो समय उसमें लगाना है उससे रोग के फैल जाने का डर है। मैं सोचने लगा कि गुरु जी सर्वज्ञ और अन्तर्यामी हैं, हमारी पुकार जरूर सुनेंगे। मैंने निर्णय कर लिया कि अगर इसके पैर काटने की बारी आएगी तो इसका जीवन बर्बाद करने के बजाय इसे शान्तिकुञ्ज में गुरुजी की शरण में रखकर चले आएँगे। हम लोग काफी शोकग्रस्त और विचलित थे। दिन- रात पूरा परिवार गुरु जी- माताजी पर ध्यान लगाए हुए था।
इसी दौरान आश्चर्यजनक तरीके से उसका दर्द धीरे- धीरे कम होने लगा और वह काफी राहत महसूस करने लगी। कुछ दिनों के बाद एक जगह से जाँच रिपोर्ट आ गई। यह रिपोर्ट भी आश्चर्यजनक थी। रिपोर्ट में कैंसर का नामोनिशान तक नहीं था। अन्य किसी बीमारी का भी उल्लेख नहीं था। डॉक्टर रिपोर्ट पढ़ते ही पूरे गुस्से में आ गए और रिपोर्ट को जमीन पर फेंक दिया यह बोलते हुए कि ऐसा असंभव है। कहीं न कहीं जाँच में गलती हुई है, दूसरे रिपोर्ट का इंतजार कीजिए। एक दिन बाद दूसरी रिपोर्ट आने पर चिकित्सक उसे काफी उत्सुकता के साथ पढ़ने लगे पर यह क्या! यहाँ भी कैंसर या किसी अन्य बीमारी का भी उल्लेख नहीं किया गया था। डॉक्टर आश्चर्य में पड़ गए। इसके बावजूद उन्होंने कहा कि मेरा अनुभव झूठा हो नहीं सकता, उसे कैंसर ही है। परन्तु मुझे विश्वास हो चला था कि यह हमारे गुरु देव की कृपा है। हमारी प्रार्थना सुन ली गई है। यह सोचते हुए मैं उसे घर ले आया। धीरे- धीरे वह स्वस्थ हो गई और आज वह एक खुशहाल जीवन व्यतीत कर रही है तथा एक सरकारी विद्यालय में शिक्षिका के पद पर कार्यरत है।
प्रस्तुति :: वीरेन्द्र कुमार सिंह, वैशाली (बिहार)