अदभुत, आश्चर्यजनक किन्तु सत्य -1

काल के गाल से निकाला महाकाल ने

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नौ साल पहले की बात है। तब मैं लखनऊ में कार्यरत था- उत्तर प्रदेश के कृषि शिक्षा एवं अनुसंधान विभाग में। मासिक पत्रिका अखण्ड ज्योति के वैज्ञानिकता से भरे अध्यात्मपरक आलेखों से मेरी दृष्टि बदल चुकी थी। युग निर्माण योजना के क्रान्तिकारी विचार मेरे मानस पटल पर अंकित हो चुके थे। रविवार के साप्ताहिक अवकाश तथा अन्य सभी छोटी- बड़ी छुट्टियों में सुबह सात बजे से रात के दस बजे तक मिशन के काम में डूबा रहता था।

    उन दिनों मिशन के विभिन्न कार्यक्रमों में ग्राम स्वावलम्बन पर विशेष ध्यान दिया जा रहा था। सभी परिजनों ने मिलकर एक विशेष इकाई- गौ ग्राम उत्कर्ष संस्थान की स्थापना की थी। इसी इकाई के तत्वावधान में सीतापुर के परिजनों ने ग्राम स्वावलम्बन विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया था। गोष्ठी का समय सुबह १० बजे से १२ बजे तक का था। उसी दिन, शाम के चार बजे लखनऊ में कारगिल में शहीद हुए नौजवान लेफ्टीनेंट हरि सिंह बिष्ट का श्रद्धांजलि समारोह आयोजित था। इस समारोह में तत्कालीन गवर्नर महामहिम विष्णुकान्त शास्त्री आमन्त्रित थे, जिसमें मुझे मुख्य कार्यकर्ता के दायित्व का निर्वहन करना था।सीतापुर जनपद लखनऊ से ६०- ७० कि.मी. दूर दिल्ली राजमार्ग पर स्थित है। रास्ता लगभग दो घंटे का है। सीतापुर जाने के लिए मड़ियांव थाने के पास से टाटा सूमो और बसें मिल जाती है।

    मैंने सोचा कि मड़ियांव थाने तक अपने स्कूटर से जाकर उसे पास के मेडिकल स्टोर पर खड़ा करके टाटा सूमो से सीतापुर जाया जाये, ताकि वापसी में मड़ियांव थाने से श्रद्धांजलि समारोह स्थल तक समय पर पहुँचा जा सके। मैं सुबह सवेरे संस्थान के नैष्ठिक कार्यकर्त्ता डॉ. रामकिशोर गुप्ता को साथ लेकर घर से सीतापुर के लिए चला। स्कूटर (यू.पी. ३२ ए.एफ. ०२३३) से मड़ियांव थाने पहुँचा।

   वहाँ पहुँचकर मैंने देखा कि एक टाटा सूमो जाने के लिए तैयार खड़ी है और उसकी आगे की दो सीटें खाली हैं। मैंने गुप्ता जी से कहा- दौड़कर दोनों खाली सीटें कवर कर लीजिए। गुप्ता जी स्कूटर से उतरकर टाटा सूमो की ओर दौड़ पड़े। मैं स्कूटर पार्क करने के लिए मेडिकल स्टोर के पास पहुँचा, तो देखा कि स्टोर बन्द है। मैंने तुरंत यू टर्न लिया और गुप्ता जी को आवाज दी- गुप्ता जी, वापस आइए। स्कूटर पार्किंग के लिए हमें कहीं और जाना पड़ेगा।

    गुप्ता जी को आगे की सीट मिल चुकी थी, उन्होंने अपने हाथों में स्वावलम्बन गोष्ठी में प्रदर्शित की जाने वाली विभिन्न सामग्रियों की एक पोटली भी संभाल रखी थी, इसलिए कुछ- एक पल उनकी आनाकानी में बीत गए। दूसरी बार आवाज देने पर वे मन मारकर टाटा सूमो से उतरे और आकर स्कूटर पर बैठ गए।

   पार्किंग के लिए मैंने मड़ियांव थाने जाने का मन बनाया, क्योंकि वहाँ के एक सिपाही श्री इन्द्रपाल यादव मिशन के सक्रिय कार्यकर्ता थे। उनका नाम मुझे आज भी याद है, किन्तु आश्चर्य कि थाने के अन्दर जाते ही मैं उसका नाम भूल गया।

   जब दिमाग पर बहुत जोर डालने के बाद भी नाम याद नहीं आया, तो मुझे लगा कि यहाँ भी मेरा काम नहीं बनेगा। थाने में किसी अपरिचित पुलिस वाले से इस प्रकार की अपेक्षा की नहीं जा सकती थी। स्कूटर थाने से बाहर निकालकर मैं सोचने लगा कि अब इसे कहाँ खड़ा किया जाए। तभी मुझे बक्शी का तालाब कस्बे के ठाकुर साहब याद आए। आठ- दस कि.मी. आगे की ही बात थी। वहाँ सड़क के किनारे ही ठाकुर साहब की दुकान थी। यह विचार इसलिए भी जँच गया कि ठाकुर साहब मेरे पुराने परिचित थे और व्यस्तताओं के कारण उनसे मिले हुए एक अर्सा गुजर चुका था। मैंने सीतापुर जाने वाली सड़क पर स्कूटर बढ़ाया, मुश्किल से ५० गज ही आगे बढ़ा था कि मैंने देखा- सड़क कीदाहिनी ओर एक दुकान के ऊपर एक बड़ा- सा बोर्ड लगा है। उस पर लिखा है- तिवारी फोटो स्टूडियो। मैंने हँसी- हँसी में गुप्ता जी से कहा- सामने तिवारी जी की दुकान है, क्यों न ब्राह्मणवॅाद का कुछ लाभ उठा लूँ। गुप्ता जी ने ठहाका लगाकर सहमति जताई।

मैंने स्टूडियो के आगे स्कूटर खड़ा किया और काउन्टर के पीछे बैठे युवक से कहा- तिवारी जी, नमस्कार। मैं राम महेश मिश्र हूँ, गायत्री परिवार से जुड़ा हूँ। मुझे सीतापुर जाना है। क्या मैं वापस आने तक अपना स्कूटर यहाँ खड़ा कर सकता हूँ?

युवक ने आदर भाव से हाथ जोड़कर मुझसे कहा- आप ही श्री राम महेश मिश्र जी हैं? मेरे मामा जी आपकी बहुत चर्चा करते हैं।

मैने पूछा- क्या नाम है आपके मामा जी का?

उसने कहा- श्री रामगोपाल बाजपेयी। ये सीतापुर में रहते हैं।

मैं सुखद आश्चर्य से बोल पड़ा- अरे मैं तो उन्हीं के यहाँ जा रहा हूँ। उन्होंने ही तो गोष्ठी का आयोजन किया है।

इतना सुनते ही वह युवक आव भगत की मुद्रा में आ गया। मैं बड़ी मुश्किल से उसके चाय नाश्ते के आग्रह को टालने में सफल हो सका।

स्कूटर खड़ा करने की चिंता से मुक्त होकर हम दोनों पैदल ही वापस टैक्सी स्टैण्ड की ओर बढ़ चले। वहाँ पहुँचकर हमने देखा कि जिसमें गुप्ता जी पहले बैठे थे, वह टाटा सूमो जा चुकी थी। दूसरी टाटा सूमो आधी खाली थी। बीच वाली सीट पर हम दोनों आराम से बैठ गये।

सवारियों से पूरी तरह लद जाने के बाद टाटा सूमो सीतापुर के लिए रवाना हुई। सफर शुरू होने के कोई २० मिनट बाद की बात है। गाड़ी बक्शी का तालाब को पीछे छोड़ती हुई इटांैजा बाजार से गुजर चुकी थी।

अचानक हमारी टाटा सूमो की रफ्तार धीमी हो गई। हमने गर्दन उचकाकर देखा- आगे एक टाटा सूमो क्षत- विक्षत हुई पड़ी थी, उसके ऊपर शीशम का एक विशाल दरख्त गिर पड़ा था। हमारी गाड़ी दुर्घटना स्थल के पास आकर रुक गई।

हमने खिड़की से सिर निकालकर सड़क पर खड़े एक व्यक्ति से पूछा- क्या यह एक्सीडेंट रात में हुआ है? उसका उत्तर था- नहीं, थोड़ी देर पहले। तभी ड्राइवर ने पलटकर मुझसे कहा- साहब, ये वही गाड़ी है, जो मड़ियांव थाना स्टैण्ड पर मेरी गाड़ी के आगे खड़ी थी और आपके साथी सीतापुर जाने के लिए उसमें बैठ भी चुके थे।

यह सुनकर हम दोनों सन्न रह गए। नीचे उतर कर देखा, सामने लाशें पड़ी हुई थीं। बाकी लोगों को अस्पताल ले जाया जा चुका था। बाद में पता चला कि उस टाटा सूमो की एक भी सवारी जिन्दा नहीं बची थी।

तब हमने समझा कि मेडिकल स्टोर का बन्द होना, थाने जाकर सिपाही का नाम भूल जाना और थोड़ी देर बाद ही तिवारी फोटो स्टूडियो के मालिक से घनिष्ठ परिचय हो जाना संयोग मात्र नहीं था। यह व्यवस्था महाकाल के अवतार द्वारा हम दोनों गायत्री परिजनों को मौत के मुँह से निकाल लेने के लिए ही बनाई गई थी।

प्रस्तुतिः राम महेश मिश्र
देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार (उत्तराखण्ड)
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