घटना अगस्त १९९७ की है। पटना जिले के ग्रामीण क्षेत्र के लगभग ६५ भाई बहनों के साथ शांतिकुञ्ज हरिद्वार ९ दिवसीय साधना सत्र में भाग लेने के लिए आया था। सत्र बहुत ही अच्छे तरीके से सम्पन्न हुआ। जब हम पटना वापस जा रहे थे तो मेरे पेट में हल्का दर्द महसूस हुआ। प्रातः घर पहुँचा। उसी दिन शाम को असहनीय दर्द होने लगा, जिसके कारण मैं बेहोश हो गया था। घर के लोग परेशान हो गए। पिताजी ने तुरन्त डॉक्टर को बुलवाया, लेकिन तब तक मुझे होश आ गया था। परीक्षण के उपरान्त पता चला कि हमें अपेन्डिसाइटिस है। डॉक्टर ने दवा दी। उस दवा से दर्द कुछ कम हुआ।
दूसरे दिन पटना के प्रख्यात सर्जन डॉ० बसन्त कुमार सिंह को उनके लक्ष्मी नर्सिंग होम, राजापुर में जाकर दिखाया। उन्होंने भी कहा कि अपेन्डिसाइटिस है। फिर मेरा अल्ट्रासाउण्ड कराया गया। रिपोर्ट देखकर ऑपरेशन की सलाह दी गई। इस दौरान पेट का दर्द समाप्त हो चुका था। केवल पेट में भारीपन अनुभव हो रहा था। लक्ष्मी नर्सिंग होम में मेरा ऑपरेशन हुआ था। जिस कमरे में मैं रह रहा था उसमें मैंने रैक पर प० पूज्य गुरुदेव, वंदनीया माताजी एवं गायत्री माँ के चित्र को लगा रखे थे। मैं ऑपरेशन थियेटर में जाते समय गुरु जी एवं माताजी से अपने स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करके गया था। ऑपरेशन के उपरान्त होश आने पर डॉ० साहब मुझसे मिलने आए। कमरे में प्रवेश करते ही उन्होंने कहा कि आप बड़े भाग्यशाली हैं; आपका अपेण्डिक्स दो दिन पहले फट गया था, लेकिन एक झिल्ली उसके जहरीले मवाद को आपके पेट में फैलने से रोके हुए थी। इस कारण आप बच गए।
मैंने गुरु देव के चित्र की ओर देखा। मुँह से निकला- सब इन्हीं का कमाल है। लगता है अभी और कुछ काम कराना चाहते हैं मुझसे। डॉक्टर ने जानना चाहा- कौन हैं ये? मैंने गुरु देव और गायत्री परिवार के बारे में संक्षेप में बताया। शान्तिकुञ्ज के संजीवनी साधना सत्र के विषय में भी बताया। मुझे ऐसा महसूस हो रहा था कि गुरु देव ने इसीलिए इस समय मुझसे संजीवनी साधना करवाई। यह बात भी मैंने डॉ० साहब को बताई। इसके बाद १० दिन अस्पताल में और रहना हुआ। इस दौरान वहाँ के सभी लोग आत्मीय बंधु हो गए। इस प्रकार मेरी इस बीमारी के जरिए डॉ० बसन्त कुमार सिंह जैसे परिजन गायत्री परिवार से जुड़े।
प्रस्तुति :: दिनकर सिंह
चाँदपुर बेला,पटना (बिहार)