अदभुत, आश्चर्यजनक किन्तु सत्य -1

दीपयज्ञ ने दिया बेटी को जीवन दान

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        यह मेरे जीवन की ऐसी घटना है, जिसके स्मरण मात्र से मन ही मन सिहर उठता हूँ। किसी को शायद विश्वास हो या न हो किन्तु मैं उसे परम पूज्य गुरुदेव का प्रत्यक्ष आशीर्वाद मानता हूँ। घटना २ जुलाई १९९९ की है। उस दिन हमारे घर में दीपयज्ञ था। कार्यक्रम शाम के समय था, मगर सुबह से ही हम सभी तैयारी में लगे थे। घर बर्तन सब धोये जा रहे थे। उस समय सुबह के करीब ६ बजे होंगे। मेरी ९ साल की बेटी अणिमा दौड़- दौड़ कर माँ के काम में हाथ बँटा रही थी। किसी काम से उसकी माँ ने उसे पड़ोसी के यहाँ भेजा। घर के सामने बिजली का एक खम्भा था। उस दिन उसमें करण्ट आ रहा था। बच्ची इस बात से अनजान थी। असावधानीवश खम्भा उसे छू गया। छूते ही बच्ची करण्ट के चपेट में आ गई।

        अचानक पड़ोसी ललऊ सिंह गौर और उनकी पत्नी की पुकार सुनी। वे चिल्लाकर कह रहे थे- बच्ची को करण्ट लग गया, जल्दी दौड़ो। हम जल्दी से निकल आए। देखा घर के सामने बिजली के खम्भे के साथ चिपककर वह खड़ी है। आँखें फटी की फटी रह गईं। उसे उस अर्ध मृत अवस्था में देखकर हम जल्दी से उसके पास गए। संयोग से मैंने प्लास्टिक की चप्पल पहन रखी थी। एक चप्पल निकालकर उसी के सहारे खम्भे से बच्ची को अलग किया।

        तब तक मेरी धर्मपत्नी भी आ गईं। बच्ची को इस तरह अचेत अवस्था में देख वह रोने लगी। यह सब देख मैं घबरा गया। पत्नी को सँभालूँ या बच्ची को लेकर डॉक्टर के पास जाऊँ। मन में सोचा गुरुजी भी अजीब परीक्षा लेते हैं। आज शाम को घर में पूजा है और इधर यह परिस्थिति आन पड़ी। फिर अचानक न जाने कहाँ से मेरे अन्दर स्फूर्ति आई। पूरे विश्वास के साथ मैंने धर्मपत्नी से कहा ‘गुरुजी को याद करो, गायत्री मंत्र का जप करो। सब अच्छा होगा।’

        पत्नी को शांत कराकर मैं बच्ची के उपचार में लग गया। करण्ट लगने के जो भी उपचार होते हैं वह सब पड़ोसियों की मदद से कर रहा था। कोई प्रभाव न होता देख मेरी प्रार्थना और आकुल होती गई। करीब दस- पन्द्रह मिनट बाद उसे होश आया। वह जोर से चिल्लाई। उसे होश में आई देख जल्दी से डॉ. भगवती प्रसाद शुक्ला जी के पास ले गया। वहाँ दो- तीन घण्टे के उपचार के बाद वह स्वस्थ हो गई। उसे लेकर घर वापस आया तो देखा धर्मपत्नी सब काम छोड़कर प्रार्थना में तल्लीन है। बच्ची को स्वस्थ देखकर उसने सजल नयनों से गुरुदेव का धन्यवाद किया और फिर शाम के कार्यक्रम की व्यवस्था में लग गई।

        हमारे घर की नन्ही सी वह दीया उस दिन बुझने से बच गई। इसे मैं गुरुदेव का दिया उपहार ही मानता हूँ। हमारा दीपयज्ञ वास्तव में सफल हो गया।
                        
प्रस्तुति:- रामसेवक पाल, रमाबाई नगर (उ.प्र.)

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