आज से सात साल पहले की बात है। गर्मियों के दिन थे। एक दिन मेरे बेटे कृष्ण कुमार के पेट में अचानक दर्द शुरू हुआ। रविवार होने के कारण मैं घर पर ही था। दोपहर के बारह बजे थे। कड़ी धूप थी, लेकिन उसकी हालत देखकर तुरन्त उसे साइकिल पर बिठाया और डॉक्टर के पास लेकर गया।
डॉक्टर का नाम था जी.एल. कुशवाहा। वे उस इलाके में नये- नये आए थे। इस तरह का दर्द मेरे बेटे को चार महीने पहले शुरू हो चुका था, लेकिन उसे चेकअप के लिए डॉक्टर के पास उसी दिन लेकर आया था।
मैं चाहता था कि अच्छे से चेकअप हो, लेकिन डॉक्टर ने उसे एक नजर देखकर दवा दे दी। जब बच्चा दवाई खाता तो, दर्द कम हो जाता और थोड़ी देर के बाद फिर पहले जैसी हालत हो जाती। एक महीने तक ऐसा ही चलता रहा। फिर एक दिन डॉक्टर ने कहा इसे नर्सिंग होम ले जाना पड़ेगा। वहाँ के बड़े डाक्टर इसकी जाँच करेंगे तभी रोग के बारे में कुछ पता चल पाएगा। वहाँ भी कई प्रकार की जाँच के बाद एक महीने तक इलाज चला, लेकिन बच्चे के स्वास्थ्य में किसी प्रकार का कोई सुधार नहीं हुआ।
इसके बाद डॉ. रोहित गुप्ता ने जाँच करने के बाद किसी घातक बीमारी के होने का संदेह व्यक्त किया। शंका निवारण के लिए उन्होंने इन्डोस्कोपी कराने की सलाह दी। हमने बच्चे का इन्डोस्कोपी कराया। उसकी रिपोर्ट हमें १५ दिन बाद प्राप्त हुई। लेकिन उस रिपोर्ट से भी बीमारी पकड़ में नहीं आई।
तब तक ऐसा होता रहा कि कभी बच्चे के पेट में दर्द हो जाता कभी सिर में। लगातार की इस पीड़ा से वह सूखकर कंकाल बनता जा रहा था और इधर हम बच्चे का दर्द देखकर बहुत परेशान हो रहे थे। अब तक बच्चे के इलाज में इतने रुपये खर्च हो चुके थे कि मेरी आर्थिक स्थिति बुरी तरह से खराब हो चुकी थी। मैं अन्दर से टूटता जा रहा था। इसी तरह से ढाई महीने और बीत गए; लेकिन बच्चे के स्वास्थ्य में कोई परिवर्तन नहीं आया।
तभी मुझे एक दिन ‘गायत्री साधना के प्रत्यक्ष चमत्कार’ नामक पुस्तक मिली। उस पुस्तक में ऐसे बहुत से लोगों का उल्लेख था, जिन्होंने पूज्य गुरुदेव के अजस्र अनुदान पाए थे। इसे पढ़कर मैंने सोचा कि इतने सारे लोगों को गायत्री मंत्र के अनुष्ठान से आश्चर्यजनक रूप से लाभ हुआ है, तो शायद इसका अनुष्ठान करने से माँ गायत्री थोड़ी कृपा हम पर भी कर दें।
यह सोचकर मैंने निश्चय किया कि मैं एक महीने का गायत्री मंत्र का अनुष्ठान करूँगा। अगले ही दिन मैंने संकल्प लेकर अनुष्ठान प्रारम्भ कर दिया। अनुष्ठान अभी चल ही रहा था कि एक दिन डॉक्टर ने मुझे बुलाकर कहा- बच्चे का स्वास्थ्य थोड़ा बहुत ठीक होने लगा है। एक और जाँच करनी पड़ेगी। जाँच से पता चला कि उसकी आँत में एक छोटा- सा छेद हो गया है, जो इलाज से ठीक किया जा सकता है। डॉक्टर की बातें सुनकर मेरा हौसला बढ़ा। मेरे मन में प्रेरणा जगी कि मैं अपने बच्चे को एक बार शान्तिकुञ्ज ले जाऊँ। वहाँ जाते ही मेरा बच्चा बिल्कुल ठीक हो जाएगा।
मैं बच्चे को लेकर शान्तिकुञ्ज के लिए चल पड़ा। लेकिन वहाँ पहुँचते- पहुँचते बच्चे की तबियत बहुत ज्यादा खराब हो गए। तुरन्त डॉक्टर को दिखाया गया। डॉक्टर ने कहा तुरन्त ऑपरेशन करना पड़ेगा। आप कल सुबह ठीक ९.३० बजे बच्चे को ऑपरेशन के लिए ले आइए।
हम रात में शान्तिकुञ्ज में ही रुके। देर रात तक मैं पूज्य गुरुदेव की समाधि पर रो- रोकर प्रार्थना करता रहा- गुरुदेव! मेरे बच्चे को बचा लीजिए। यह नहीं रहा तो इसकी माँ भी रो- रोकर अपनी जान दे देगी। अब तो बस आपका ही सहारा है, गुरुदेव! सुबह ऑपरेशन के लिए हॉस्पिटल पहुँचे तो बच्चे की हालत देखकर डॉक्टर ने कहा- बच्चा ऑपरेशन के लायक बिल्कुल भी नहीं है। ऑपरेशन से पहले इसे खून चढ़ाना पड़ेगा।
मैंने कहा- मेरा खून ले लीजिए। खून की जाँच हुई। संयोग से दोनों का ब्लड ग्रुप एक ही निकला। उसी समय मेरा खून निकालकर बच्चे को चढ़ाया जाने लगा। खून चढ़ते ही बच्चे को अचानक से तेज बुखार आ गया। आखिरकार उस दिन ऑपरेशन रोकना पड़ा।
रात भर असमंजस की स्थिति बनी रही। अगले दिन सुबह डॉक्टर आए। उन्होंने बच्चे का चेक- अप किया और चकित स्वर में बोले कि बच्चा अब तेजी से स्वस्थ हो रहा है। अगर इसी तरह सुधार होता रहा, तो ऑपरेशन की जरूरत नहीं रह जाएगी। फिलहाल आप बच्चे को साथ ले जा सकते हैं।
मैं बच्चे को वापस ले आया। अगले दो- तीन दिनों में बिना किसी दवा के ही बच्चा पूरी तरह से स्वस्थ दिखने लगा। फिर से जाँच की गई तो पता चला कि आँत का घाव बिल्कुल भर चुका है। यह गुरुदेव की कृपा थी, कि बच्चे की बीमारी बिना ऑपरेशन के ही ठीक हो गई और हम एक बहुत बड़े आर्थिक संकट में भी पड़ने से बच गए। शान्तिकुञ्ज से वापस जाते समय मैं बहुत देर तक पूज्य गुरुदेव तथा वन्दनीया माताजी की समाधि के आगे हाथ जोड़कर चुपचाप खड़ा रहा, क्योंकि उनके अनुदान के लिए कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं थे।
प्रस्तुतिः रामबाबू पटेल
बादलपुर, इलाहाबाद (उ.प्र.)