कहते हैं, पहाड़ पर से गिराने, साँपों से कटवाने तथा आग से जलाने का प्रयास भी प्रह्लाद की जीवन लीला समाप्त नहीं कर सका। उसके पिता ने उसे बुलाकर पूछा- तुम्हारी मृत्यु के इतने सारे उपाय किए जाने के बाद भी तुम बच कैसे गये? तब प्रह्लाद ने यही जवाब दिया था, इन भयंकर साँपों में, इस आग में कण- कण में हरि विराजमान हैं। जब मौत मेरे सामने खड़ी थी, उस समय मैं भी उन्हें ही स्मरण कर रहा था। इसलिए मेरे चित्त में भी वही विराज रहे थे। दोनों एकधर्मा होने के कारण ये एक- दूसरे को नष्ट नहीं कर सकते थे।
कुछ ऐसी ही घटना है जो जीवट नगर के मुकेश सोनी के १८ वर्षीय बेटे अनमोल के साथ पिछले दिनों घटित हुई। वसंत पर्व का समय था। जन्म शताब्दी वर्ष की निर्धारित कार्यक्रम श्रृंखला के तहत ६ से ८ फरवरी तक गुरुदेव के विचारों को प्रत्येक गाँव में पहुँचाने के लिए संकल्पित युवा भाई- बहनों की टोली पूर्व निर्धारित क्षेत्रों की ओर चल चुकी थी।
आदिवासी अंचल का यह इलाका उपजोन बड़वानी में पड़ता है जिसमें छह जिले आते हैं- खरगौन, खंडवा, बड़वानी, बुरहानपुर, अलीराजपुर और झाबुआ। उत्साही परिजनों द्वारा इन सभी स्थानों में गायत्री यज्ञ कराए जाने के कारण पूरा परिवेश ही गायत्रीमय हो चुका था। सरकार की विभिन्न प्रगतिशील परियोजनाओं के बावजूद जहाँ आज तक आधुनिक संसाधन और सुविधाएँ नहीं पहुँच सकीं, वहाँ ये प्राणवान युवा परिजन पूज्य गुरुदेव के विचारों को जन- जन तक पहुँचा रहे थे।
उपजोन के चार हजार गाँवों में, छह हजार स्थलों पर दीपयज्ञ का आयोजन कर ऋषिवर को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। २०० स्थानों पर मंगल कलश यात्रा निकाली गई। अखण्ड जप सम्पन्न किए गए। ७ फरवरी की शाम को सभी धर्मों के लोगों ने लाखों दीप जलाकर नवयुग के आगमन का स्वागत किया। हर्षोल्लास के वातावरण में यह दीपोत्सव सम्पन्न हुआ। देशवाराय से दीपयज्ञ सम्पन्न कराकर अनमोल और उसके पिता मुकेश सोनी अपनी टोली के साथ लौट रहे थे। रास्ते में राजमलिया फाटक के पास चौराहा पार करते समय अचानक ८- १० आदिवासियों ने हमला कर दिया। नीयत लूटपाट की थी।
हमलावरों के पास तीर कमान थे, जबकि ये सभी निहत्थे थे। यज्ञायोजन के लिए जा रही पुरोहितों की टोली में हथियार का क्या काम? सभी परिजन मोटर साइकिल पर सवार थे। छह मोटर साइकिलों में सबसे आगे अनमोल अपने ममेरे भाई संकेत के साथ था। संकेत मोटर साइकिल चला रहा था। अनमोल पीछे बैठा भव्य आयोजन की सफलता के श्रेय को लेकर मन ही मन परम पूज्य गुरुदेव के प्रति कृतज्ञता व्यक्त कर रहा था।
हमलावर सड़क के किनारे तीर कमान लिए घात लगाकर बैठे थे। मोटर साइकिल सवारों पर तीरों की बौछार होने लगी। एक तीर सनसनाता हुआ आया और अनमोल के सिर के पिछले हिस्से में जा लगा। पूरी ताकत से चलाया गया तीर सिर को भेदकर अन्दर घुस गया। अनमोल ने बाएँ हाथ से मोटर साइकिल की सीट को जोर से पकड़ा, दाहिने हाथ से तीर लगे हिस्से को दबाया और भाई संकेत को मोटर साइकिल तेजी से भगाने का इशारा किया।
संकेत ने गाड़ी की रफ्तार तेज कर दी। तीस किलोमीटर दूर, जाबेर पहुँचकर उसने प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में गाड़ी रोकी। टोली के सभी भाई साथ ही थे। रात के साढ़े दस बज चुके थे। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए डॉक्टरों ने तत्काल गुजरात के सबसे बड़े अस्पताल, दाहौद हास्पिटल के लिए रेफर कर दिया। राजन सोनी उसे लेकर दाहौद हॉस्पिटल पहुँचे। वहाँ डॉक्टरों ने रात में ही ऑपरेशन करने का निर्णय लिया। सारी तैयारियाँ तेजी से होने लगीं। २० मिनट के बाद ही ऑपरेशन शुरू हो गया।
जब ऑपरेशन से नुकीला तीर निकाला गया तो सभी डॉक्टर तीर की हालत देखकर आश्चर्यचकित रह गए। तीर माथे के पिछले हिस्से में आधा इंच अन्दर घुस जाने के बाद आश्चर्यजनक ढंग से मुड़ गया था। नुकीला तीर मस्तिष्क को कोई नुकसान नहीं पहुँचा सका था, मानो वह मानव मस्तिष्क नहीं वरन् किसी वज्र का बना हो।
ऑपरेशन के बाद सभी डॉक्टर देर तक इसी घटना पर चर्चा करते रहे। सबने यही कहा कि ऐसी विचित्र घटना पहली बार देखी है। तीर जैसी नुकीली वस्तु कपाल की कठोरता को भेदकर अंदर तो चली जाये, पर सुकोमल मानव मस्तिष्क को न भेद सके, इससे बड़ा आश्चर्य और क्या होगा? अनमोल ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया- मैं गुरुजी का काम कर रहा था, इसलिए मेरा नुकसान हो ही नहीं सकता था। इस साधारण तीर की क्या बिसात कि गुरुजी का काम रोक दे।
सभी डॉक्टर अनमोल की बातें सुनकर सहमति सूचक शैली में जोर- जोर से सिर हिलाने लगे। एक सीनियर डॉक्टर ने कहा- अपने गुरुदेव के प्रति तुम्हारे इस अटल विश्वास ने ही तुम्हें बचाया है। भक्त का विश्वास अटल हो तो भगवान उसे किसी भी आसन्न खतरे से बचा ही लेते हैं और कठिन से कठिन परिस्थिति में भी अविचल बनाये रखते हैं।
प्रस्तुतिः
महेन्द्र भावसार ,अंजड़, बड़वानी (म.प्र.)