निश्चय ही दुनिया बदलेगी (kavita)

March 2000

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है यह सत्य अटल यह दुनिया बदलेगी, आज नहीं तो कल यह दुनिया बदलेगी। बदलेगी, निश्चय ही दुनिया बदलेगी।

होगे तब भी धरती और आकाश यही, अग्नि, वायु, जल का होगा आभास यही,

सूरज, चाँद, सितारे ऐसे ही होगे, दृश्य प्रकृति के सारे ऐसे ही होगे,

केवल दृष्टि बदल जाएगी मानव की, मन होगा निर्मल, यह दुनिया बदलेगी।

उन्नति नहीं रुकेगी आविष्कारों की, रुक जाएगी किंतु होड़ हथियारों की,

वैज्ञानिक जन सृजन-सहायक ही होंगे, साधन फिर सच्चे सुखदायक ही होगे,

होगा युगनिर्माण, रुकेगा युद्धों का भीषण दावानल, यह दुनिया बदलेगी।

नहीं स्वयं को फिर शरीर हम समझेंगे, सत्यसाधक को शूरवीर हम समझेंगे,

आत्मा का आनंद अमर हम जानेंगे हम है। कौन? स्वयं को हम पहचानेंगे,

होगी, मूर्च्छा दूर सगर-संतानों की पाकर गंगाजल, यह दुनिया बदलेगी।

संघबद्ध सब नेक-सदाचारी होंगे सज्जन-संत दुर्जनों पर भारी होंगे,

दुष्ट-दुराचारी में शक्ति नहीं होगी, कर्म करेंगे सब, आसक्ति नहीं होगी,

सदाचार सम्मानित होगा धरती पर, होगा जनमंगल, यह दुनिया बदलेगी।

जरा सोच लें, अब हमको क्या करना है, पाना है अमरत्व कि पल-पल मरना है,

ऐसा जीवन जिएँ कि अपराजेय बनें, पीड़ित मानवता के हित पाथेय बनें,

वर्तमान में प्रभु के सहयोगी हो, फिर है भविष्य उज्ज्वल, यह दुनिया बदलेगी।

*समाप्त*


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